प्रवीण परिमल: मगही प्रेम- गीत :
#चितचोर
मन-अँगना कुदलक हे चोर,मोर सखिया!
मन-अँगना कुदलक हे चोर!!
ओही से धक्-धक् करेजवा करित हे...
ओही से अँखिया में लोर,मोर सखिया!
मन-अँगना कुदलक हे चोर!!
पोरसा से उँच्चा छड़प के देवलिया
अँखिया के कोलकी लुकाएल बवलिया
हिरदा के डहुँगी पे बइठल कोइलिया...
कैले हे केतना अनोर,मोर सखिया!
मन-अँगना कुदलक हे चोर!!
अइसन बेयार जाने कन्ने से आएल
तनिके में होसवा के ढिबरी मिंझाएल
निंदियो न बैरिन तखनिंये से आएल...
कँपसित हे अँखिया के कोर,मोर सखिया!
मन- अँगना कुदलक हे चोर!!
खोइँछा के सब्भे सबुरवा लुटाएल
जब से मुदइया नजरिया में आएल
अइसन उमिरिया ई लिलकी, धधाएल...
रहलइ न मनवाँ पे जोर,मोर सखिया!
मन-अँगना कुदलक हे चोर!!
ओही से धक्-धक् करेजवा करित हे...
ओही से अँखिया में लोर,मोर सखिया!
मन-अँगना कुदलक हे चोर!!
■■
* मगही श्रमिक गीत ***
तूँही ह पुनियाँ के चान , हमर सजनी....
तूँही ह पुनियाँ के चान !
तोरे से बगबग हे मन के अँगनवाँ
तोरे से झकझक परान , हमर सजनी
तूँही ह पुनियाँ के चान !
तोरा बतावित ही सच्चे , संघतिया
पहिले त दिनवों अमावस के रतिया
लेकिन गोरइया से तोरे , अन्हरिया --
भागल हे टिकियाउड़ान , हमर सजनी
तूँही ह पुनियाँ के चान !
खुब्बे झोलंगा हल झुलझुल उमिरिया
ठोंकलs तू पउअन में प्रीत के पचरिया
नेहिया के डोरिया से फिन तू ओरचलs
जिनगी के खटिया उतान , हमर सजनी
तूँही ह पुनियाँ के चान !
हेंगा में हरदम ही रहली नधाएल
तइयो दरदिया न देहिया में आएल
ठेहुँनाभर कादो - बिपतिया में , कहिनों
गिरली न औंधे - चितान , हमर सजनी
तूँही ह पुनियाँ के चान !
रोपल असरवा के हरिअर बनैलs
मन के कियारी तू मन से पटैलs
खुसिया के हुलसित जजतिया अगोरलs
बइठल तू मँडुकी - मचान , हमर सजनी
तूँही ह पुनियाँ के चान !
मन के ओसरवा के घुन्नल बँड़ेरी
ठेघनी लगावे में कैलs न देरी
अप्पन पसेनवाँ से घर लेवकरलs
कहिनों न होलs हरान , हमर सजनी
तूँही ह पुनियाँ के चान !
तोरे से बगबग हे मन के अँगनवाँ
तोरे से झकझक परान , हमर सजनी
तूँही ह पुनियाँ के चान !
तूँही ह पुनियाँ के चान !!
तूँही ह पुनियाँ के चान !!!
.... प्रवीण परिमल....
:
परदेस बसल अपन पिया से , एगो बिरहिन के निहोरा .........
मगही गीत
अब चलि आ...
अब चलि आ रे पियवा ...
अब चलि आ रे पियवा .......
अब चलि आ ;
कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...
अब चलि आ !!
छितिजा के छोरवा ले , मन के सबुरवा
पहुँचल ढाहे लागी , हिरदा के कोरवा
सोतिया सुखलs जा हे...
सोतिया सुखलs जा हे , नदिया - नयनवां के ;
अब चलि आ !
कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...
अब चलि आ !!
आँख पियरा गेल , ओठ पपड़ा गेल
देहिया के कोंपला भी , सभ्भे मुरझा गेल
हई अब उड़हीं पs...
हई अब उड़हीं पs , सुगवा परनवां के ;
अब चलि आ !
कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...
अब चलि आ !!
अँखिया पियासल , तोर दरसनियां के
कनवों पियासल , तोर तनी बनियां के
धुरिया ला ककुला हई ...
धुरिया ला ककुला हई .. मंगिया , चरनवां के ;
अब चलि आ !
कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...
अब चलि आ !!
छतिया पs तिरिया , चलावे अब गितिया
देहिया पs बिर्हनी - सन , सखियन के बतिया
अरिया करेजवा पs ...
अरिया करेजवा पs , रतिया गवनवां के ;
अब चलि आ !
कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...
अब चलि आ !!
©
प्रवीण परिमल: मगही गीत --
दुधवा-नेहाएल चनरमा हो
बगुला नींयन गोर !
देलकइ इँजोरिया के झरना हो
अँगना के पँडोर !!
उमगल पिरितिया के अजगुत कोइलिया
बजवित हे मनवाँ ई नेह के बँसुलिया
चन्नन- लपेसल चननियाँ हो
नाचइ मन के मोर !
आन्हर कोठरिया लुकाएल तरेगन
जइसे डेरा के छेकुनियाँ से रेंगन
चंदा - सन अइना अन्हरिया के
देलकइ झकझोर !
पुरलइ ई बच्छर के मानल मनउती
लबलब हे मनवाँ के झाँपी अउ पउती
अमरित के होइत हे बरखा हो
भिंजलइ पोरे -पोर !
पसरल परकिरती के मनहर बिछउना
लम्हर से लम्हर दुख आज लगे बउना
मदमातल पुनियाँ के रतिया हो
धमकउआ हे भोर !
#आझ_नैं_बरस
▪प्रवीण परिमल
आझ नैं बरस रे बदरा ...
आझ नैं बरस रे बदरा .......
आझ नैं बरस !
तनी आवे दे सजन के परदेसवा से ;
आझ नैं बरस !!
जाग - जाग कटऽली रे , असढ़ा के रतिया
तब कहीं आएल एगो पियवा के पतिया
लिखऽ हई अजुए तऽ , आवे ला सनेसवा से ;
आझ नैं बरस !
काम - काज सभ्भे आझ , छोड़ - छाड़ घर के
असरा में भोरहीं से , सजऽ के सँवर के
बइठल ही दुअरे पर , घिर अनदेसवा से ;
आझ नैं बरस !
साज - सिंगार मोरा , कर गुरमाटी नैं रे
रह जाए अखरे ई , बिछवल खाटी नैं रे
धोखा ऐन मोकवा पर , देले हरमेसवा से ;
आझ नैं बरस !
आझ जे बरसबे तू , नटखट बदरा रे
किचकिल गली - कूची , होय जैतई सगरा रे
पिया मोर अयतन फिन , कउन निरदेसवा से ;
आझ नैं बरस !
साफा तनी होय देहीं , करिया अकास रे
पुन बड़ी होतऊ तोरा , रोक लेहीं साँस रे
फिन तू बरस लीहें , चाहे जउन भेसवा से ;
आझ नैं बरस !
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मगही गीत
▪प्रवीण परिमल
ई पुनिया के रात हे निरमल,
बँसुरी तनिक बजावऽ न !
हम्मर अँगना में पिरीत के,
अमरित तू बरसावऽ न !!
फिन तऽ ओही दुपहरिया हे,
ओही घाम कँटैला हे
फँसरी पर लटकल जिनगी के
छुँच्छे स्वाद कँसैला है
मिठका तू पनियाँ चिरुआ भर,
फिन से तनिक पिआवऽ न !
संख नियन गोरकी माटी के,
देख लगल हे कठमुरकी
मुस्काइत हे हरियर मन,
नदिया में मारे ला डुबकी
ढेंढी गदराएल केराव के,
फिन नेवान करवावऽ न !
अइपन,अक्षत,फूल,धूप,
नैवेद चढ़ा के, टउआएल
अनगुतिये से मनवाँ हे ई,
हवन- कुंड में ढेमनाएल
चन्नन से कोहबर लिपले ही,
आके अलख जगावऽ न !
हम्मर अँगना में पिरीत के,
अमरित तू बरसावऽ न !!
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