शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

प्रवीण परिमल की कुछ मगही कविताएं

 प्रवीण परिमल: मगही प्रेम- गीत :


                      #चितचोर

                              


मन-अँगना कुदलक हे चोर,मोर सखिया!

मन-अँगना कुदलक हे चोर!!


ओही से धक्-धक् करेजवा करित हे...

ओही से अँखिया में लोर,मोर सखिया!

मन-अँगना कुदलक हे चोर!! 


पोरसा से उँच्चा छड़प के देवलिया 

अँखिया के कोलकी लुकाएल बवलिया 

हिरदा के डहुँगी पे बइठल कोइलिया...

कैले हे केतना अनोर,मोर सखिया!

मन-अँगना कुदलक हे चोर!!


अइसन बेयार जाने कन्ने से आएल 

तनिके में होसवा के ढिबरी मिंझाएल

निंदियो न बैरिन तखनिंये से आएल...

कँपसित हे अँखिया के कोर,मोर सखिया!

मन- अँगना कुदलक हे चोर!!


खोइँछा के सब्भे सबुरवा लुटाएल 

जब से मुदइया नजरिया में आएल

अइसन उमिरिया ई लिलकी, धधाएल...

रहलइ न मनवाँ पे जोर,मोर सखिया! 

मन-अँगना कुदलक हे चोर!!

 

ओही से धक्-धक् करेजवा करित हे...

ओही से अँखिया में लोर,मोर सखिया! 

मन-अँगना कुदलक हे चोर!!

■■

* मगही श्रमिक गीत ***


तूँही ह पुनियाँ के चान ,  हमर सजनी....

तूँही ह पुनियाँ के चान !


तोरे से बगबग हे मन के अँगनवाँ

तोरे से झकझक परान , हमर सजनी

तूँही ह पुनियाँ के चान !


तोरा बतावित ही सच्चे , संघतिया

पहिले त दिनवों अमावस के रतिया

लेकिन गोरइया से तोरे , अन्हरिया --

भागल हे टिकियाउड़ान , हमर सजनी

तूँही ह पुनियाँ के चान !


खुब्बे झोलंगा हल झुलझुल उमिरिया

ठोंकलs तू पउअन में प्रीत के पचरिया

नेहिया के डोरिया से फिन तू ओरचलs

जिनगी के खटिया उतान , हमर सजनी

तूँही ह पुनियाँ के चान !


हेंगा में हरदम ही रहली नधाएल

तइयो दरदिया न देहिया में आएल

ठेहुँनाभर कादो - बिपतिया में , कहिनों

गिरली न औंधे - चितान , हमर सजनी

तूँही ह पुनियाँ के चान !


रोपल असरवा के हरिअर बनैलs

मन के कियारी तू मन से पटैलs

खुसिया के हुलसित जजतिया अगोरलs

बइठल तू मँडुकी - मचान , हमर सजनी

तूँही ह पुनियाँ के चान !


मन के ओसरवा के घुन्नल बँड़ेरी

ठेघनी लगावे में कैलs न देरी

अप्पन पसेनवाँ से घर लेवकरलs

कहिनों न होलs हरान , हमर सजनी

तूँही ह पुनियाँ के चान !


तोरे से बगबग हे मन के अँगनवाँ

तोरे से झकझक परान , हमर सजनी

तूँही ह पुनियाँ के चान !

तूँही ह पुनियाँ के चान !!

तूँही ह पुनियाँ के चान !!!



.... प्रवीण परिमल....

:

 परदेस बसल अपन पिया से , एगो बिरहिन के निहोरा .........


मगही गीत

               अब चलि आ...


अब चलि आ रे पियवा ...

अब चलि आ रे पियवा .......

अब चलि आ ;

कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...

अब चलि आ !!


छितिजा के छोरवा ले , मन के सबुरवा

पहुँचल ढाहे लागी , हिरदा के कोरवा

सोतिया सुखलs जा हे...

सोतिया सुखलs जा हे , नदिया - नयनवां के ;

अब चलि आ !

कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...

अब चलि आ !!


आँख पियरा गेल , ओठ पपड़ा गेल

देहिया के कोंपला भी , सभ्भे मुरझा गेल

हई अब उड़हीं पs...

हई अब उड़हीं पs , सुगवा परनवां के ;

अब चलि आ !

कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...

अब चलि आ !!


अँखिया पियासल , तोर दरसनियां के

कनवों पियासल , तोर तनी बनियां के

धुरिया ला ककुला हई ...

धुरिया ला ककुला हई .. मंगिया , चरनवां के ;

अब चलि आ !

कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...

अब चलि आ !!


छतिया पs तिरिया , चलावे अब गितिया

देहिया पs बिर्हनी - सन , सखियन के बतिया

अरिया करेजवा पs ...

अरिया करेजवा पs , रतिया गवनवां के ;

अब चलि आ !

कि दिनवां बीतल जा हई सवनवां के ...

अब चलि आ !!


© 


 प्रवीण परिमल: मगही गीत --


दुधवा-नेहाएल चनरमा हो

बगुला नींयन गोर !

देलकइ इँजोरिया के झरना हो

अँगना के पँडोर !!


उमगल पिरितिया के अजगुत कोइलिया 

बजवित हे मनवाँ ई नेह के बँसुलिया 

चन्नन- लपेसल चननियाँ हो 

नाचइ मन के मोर !


आन्हर कोठरिया लुकाएल तरेगन 

जइसे डेरा के छेकुनियाँ से रेंगन 

चंदा - सन अइना अन्हरिया के 

देलकइ झकझोर !


पुरलइ ई बच्छर के मानल मनउती 

लबलब हे मनवाँ के झाँपी अउ पउती 

अमरित के होइत हे बरखा हो

भिंजलइ पोरे -पोर !


पसरल परकिरती के मनहर बिछउना 

लम्हर से लम्हर दुख आज लगे बउना 

मदमातल पुनियाँ के रतिया हो

धमकउआ हे भोर !




#आझ_नैं_बरस

                 ▪प्रवीण परिमल 


आझ नैं बरस रे बदरा ...

आझ नैं बरस रे बदरा .......

आझ नैं बरस !

तनी आवे दे सजन के परदेसवा से ;

आझ नैं बरस !!


जाग - जाग कटऽली रे , असढ़ा के रतिया

तब कहीं आएल एगो पियवा के पतिया

लिखऽ हई अजुए तऽ , आवे ला सनेसवा से ;

आझ नैं बरस !


काम - काज सभ्भे आझ , छोड़ - छाड़ घर के

असरा में भोरहीं से , सजऽ के सँवर के

बइठल ही दुअरे पर , घिर अनदेसवा से ;

आझ नैं बरस !


साज - सिंगार मोरा , कर गुरमाटी नैं रे

रह जाए अखरे ई , बिछवल खाटी नैं रे

धोखा ऐन मोकवा पर , देले हरमेसवा से ;

आझ नैं बरस !


आझ जे बरसबे तू , नटखट बदरा रे

किचकिल गली - कूची , होय जैतई सगरा रे

पिया मोर अयतन फिन , कउन निरदेसवा से ;

आझ नैं बरस !


साफा तनी होय देहीं , करिया अकास रे

पुन बड़ी होतऊ तोरा , रोक लेहीं साँस रे

फिन तू बरस लीहें , चाहे जउन भेसवा से ;

आझ नैं बरस !


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मगही गीत


                 ▪प्रवीण परिमल 


ई पुनिया के रात हे निरमल, 

बँसुरी तनिक बजावऽ न ! 

हम्मर अँगना में पिरीत के, 

अमरित तू बरसावऽ न !!


फिन तऽ ओही दुपहरिया हे,

ओही घाम कँटैला हे 

फँसरी पर लटकल जिनगी के 

छुँच्छे स्वाद कँसैला है 


मिठका तू पनियाँ चिरुआ भर,

फिन से तनिक पिआवऽ न !


संख नियन गोरकी माटी के, 

देख लगल हे कठमुरकी

मुस्काइत हे हरियर मन, 

नदिया में मारे ला डुबकी


ढेंढी गदराएल केराव के,

फिन नेवान करवावऽ न !


अइपन,अक्षत,फूल,धूप, 

नैवेद चढ़ा के, टउआएल

अनगुतिये से मनवाँ हे ई, 

हवन- कुंड में ढेमनाएल


चन्नन से कोहबर लिपले ही, 

आके अलख जगावऽ न ! 

हम्मर अँगना में पिरीत के, 

अमरित तू बरसावऽ न !!


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