झारखंड के चर्चित कवि, कहानीकार और चित्रकार बिनोद कुमार राज ’विद्रोही’ जी की हिंदी कविता ’जीवन बचा रहे’ का संताली अनुवाद
* Jion Bańcao Tahe̠nma*
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–Binod Kumar Raj Vidrohi
Ọh!
Iń do̠ cedaḱ unạḱ iń mõ̠ńja
Ińre cedaḱ unạḱ niro̠la o̠nto̠r menaḱa
Ce̠t́ ińaḱ mõ̠ńjtet́ge ińaḱ sarapkana
Hẽ̠ iń do̠ ona dhạrtikạnạń
O̠ne̠ okare sạṅgiń-sạṅgiń hạbić raṭen bir menaḱa
Ona reaḱ kukhire menaḱa lak-lak ṭan he̠nde̠ hirạ
Lagaoakanam iń lilạm
Benaoińem me̠neda iń bạṛij
Binạ hudiskate je
No̠ṇḍenaḱ raṭen bir meṭao cabaḱa
No̠ṇḍen ạdiwạsi somajko uchạdo̠ḱa
Unkoren ạsul maljal do̠ onko sãoko calaḱa
Me̠nkhan eṭaḱ jiv jiạliko be̠bạṛićko gujuḱa
Dhạrti reaḱ kukhireko jivedo̠ḱkan hajar-hajar jivianko gujuḱa
Dela achań manaokeda (me̠nkhan noṅka do̠ baṅ hoyoḱkana)
Am do̠ ale̠m uchạdgo̠t́kalea
Napae jaegate
Me̠nkhan onkoaḱ he̠ṛe̠m haṛhat́ unuihạrko do̠ cekatem uchạdtakoa
Uchạdtakoam cekate
O̠ṇḍe̠naḱ akhṛa, dupuṛuṕ piṇḍa, sũṛũkuć ḍahar,
Ạyubo̠ḱ reaḱ sonḍhaṛ mo̠ho̠k
Matko̠m ar murut́ baha
Onkoren hapṛamkoaḱ atmako.
Noa baḍaekaḱpe ape
Iń do̠ koela khadanko reaḱ bạnijo̠ḱren baṅ kạnạń birudić
Sumuṅ ninạḱge me̠n sanaidińkana
Jãhãnaḱ noṅkaepe la lahare
Je bir ṭotha reaḱ khas loksan alo hoyoḱ
Bańcao tahe̠nma o̠ṇḍenaḱ ạri-cạli, ạn-ạri
Somajiạ ar kạuḍi ạri rup alo cirạḱma
Alo hoyoḱma go̠ć aohal reaḱ
Bańcao tahe̠nma ạksijan
Bańcao tahe̠nma jion
Rukhiạ tahe̠nma aḱ sar, tumdaḱ, ṭamak, tirio
Bạhu biṭikoaḱ man bo̠ro̠m.....!
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जीवन बचा रहे
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बिनोद कुमार राज ’विद्रोही’
ओह!
मैं इतनी सुंदर क्यों हूं
मुझमें इतना कोमल हृदय क्यों है
क्या मेरी सुंदरता ही मेरा अभिशाप है
हां मैं वही धरती हूं
जहां दूर-दूर तक फैले घने जंगल
जिसके गर्भ में मौजूद है लाखों टन काला हीरा
कर रहे हो तुम मेरी नीलामी
बनाना चाहते हो मुझे बदरंग
बगैर ये सोचे कि
यहां के घने जंगल मिट जाएंगे
यहां का जनजाति समाज विस्थापित हो जायेगा
उनके पालतू डोर-डांगर तो उनके साथ चले जाएंगे
धरती के गर्भ में कुलबुला रहे अरबों जीव मारे जाएंगे
चलो मान लिया (हालांकि ऐसा होता नहीं)
तुम हमें विस्थापित कर दोगे
अच्छी जगह
लेकिन उनकी खट्टी-मीठी यादों को
कैसे विस्थापित करोगे
कैसे करोगे विस्थापित
वहां का अखड़ा, चबूतरा, पगडंडी
गोधूली की सौंधी महक
महुआ और पलाश के फूल
उनके पुरखों की आत्माएं
यह जान लो तुम
मैं कोल खदानों के ब्यावसायीकरण का नहीं हूं विरोधी
फकत इतना कहना चाहता हूं
कुछ ऐसा करो खुदाई से पहले
कि वन क्षेत्र का विशेष नुकसान ना हो
बची रहे वहां की लोक-संस्कृति, रीति-रिवाज
सामाजिक और आर्थिक ढांचा दरके नहीं
न हो कत्ल पर्यावरण का
बचा रहे ऑक्सीजन
बचा रहे जीवन
सुरक्षित रहे तीर-धनुष, मंदार, नगाड़ा, बासुरी
बहू-बेटियों की इज्जत....।
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बेसरा ’बेपारी’
फोटो:– getty images
साभार :– विनोद कुमार राज ’विद्रोही’ // इश्क-ए-हजारीबाग कविता संग्रह पुस्तक से
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