#लघुकथा11#/ कहानीआजकी
"ये मेरी बच्ची नहीं है।", अतुल गुस्से में कड़कते हुए बोला।
"ये क्या कह दिया तुमने,जानते भी हो इसका मतलब।", ऋतु अतुल की बात सुनकर रुआँसी हो गई।
"हाँ-हाँ अच्छी तरह जानता हूँ और ये भी जानता हूँ कि तुम मेरी गैरहाज़िरी में क्या-क्या गुल खिलाती फिरती थीं। माँ और भाभी ने मुझे सब बता दिया है।", अतुल की आवाज़ और तेज़ हो गई।
"ओह, अब समझी तो ये आग उन दोनों की लगाई है।", ऋतु ने व्यंग्यात्मक लहज़े में कहा।
"खबरदार जो तुमने उनके बारे में एक शब्द भी कहा।", चिल्लाते हुए अतुल ने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा।
"तुम्हे इतनी सी बात समझ नहीं आती कि वो तुम्हारा घर उजाड़ना चाहते हैं।", ऋतु की आवाज़ में अनुनय था।
"सब समझ आता है मुझे, बच्चा नहीं हूँ मैं, जो कुछ देख न सकूँ।"
"सब समझती हूँ मैं, क्या देख सकते हो तुम। तुम वही देखते हो जो वो दोनो तुम्हे दिखाती हैं। क्या तुम्हें मुझ पर इतना सा भी यकीन नहीं? मेरा यकीन करो अतुल, ये तुम्हारी ही बच्ची है।
"मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। मैं ये कभी नहीं मान सकता। तुम अभी के अभी इसे लेकर यहां से चली जाओ, अपने बाप के घर।"
कहकर अतुल निकल गया और ऋतु जस की तस खड़ी रह गई।
बाहर दोनो औरतों के लबों पर कुटिल हँसी थी।
ऋतु की बच्ची अभी 4 महीने की होने वाली थी।अतुल पूरे साल भर के बाद लौटा था।
बस इसी बात को मुद्दा बनाकर उसकी गृहस्थी में आग लगाई जा रही थी।कारण था अतुल की कमाई हड़पना।
इसलिए उन दोनों औरतों ने मिलकर ऋतु और उसकी बच्ची को अतुल की ज़िंदगी से बाहर निकालने के लिए ये योजना बनाई और आते ही अतुल के कान भर दिए।
अतुल भी ठहरा कान का कच्चा। उसने आव देखा न ताव सीधा ऋतु पर इल्ज़ाम लगा दिया।
शाम होते-होते ऋतु ने भी ठान लिया था कि वो अतुल के आगे और नहीं गिड़गिड़ाएगी।
बच्ची के होने से पहले तक वो जॉब करती थी। उसने दोबारा से जॉब के लिए अप्लाई कर दिया।
रात को अतुल के आने के बाद----
"तुम गई नहीं अभी तक इस_ _ _ _ _ _ को लेकर", अतुल आते ही गरजा।
"क्या यह तुम्हारा अंतिम फ़ैसला है।", ऋतु ने अतुल से पूछा।उसकी आवाज़ में तटस्थता थी।
"हाँ..हाँ।"
"तो ठीक है। बीवी हूँ तुम्हारी। ब्याह के लाये थे तुम मुझे समाज के सामने। अपनी ज़िंदगी के 2 साल दिए हैं तुम्हारी गृहस्थी को।वैसे भी तुम्हारे इस घिनौने इल्ज़ाम के बाद मैं भी इस घर में नहीं रहना चाहती। पर ऐसे नहीं जाऊँगी, फुल एंड फाइनल सेटलमेंट करो अभी। मेरा और मेरी बच्ची का हक़ दो और मेरा-तुम्हारा रिश्ता खत्म।"
"हक़....कैसा हक़...?"
"अच्छा! तुम्हे नहीं पता?", ऋतु के लबों पर व्यंग्यात्मक हँसी उभर आई, "मिस्टर हस्बैंड! मुझे अबला नारी मत समझना।सीधी तरह से मेरी बात मान लो, वरना जो मैं अपनी सी पर आ गई, तो तुम और तुम्हारे घर वाले न घर के रहेंगे न घाट के।", ऋतु की आँखें अचानक अंगारों सी दहक उठीं।
अतुल ने ये एक्सपेक्ट नहीं किया था। उसने ऋतु का ये रूप कभी नहीं देखा था।
एक पल को वो सकते में आ गया। फिर खुद को सँभालते हुए बोला,"जो तुम्हें चाहिए मिल जाएगा,पर उसके बाद मै तुम्हारी और इसकी सूरत भी नहीं देखना चाहता।"
ऋतु इस बात के लिए पहले की तैयार थी, इसलिए उसने अपना बैग पहले ही पैक कर लिया था।
"मुझे भी कोई शौक नहीं तुम्हारे साथ रहने का, तुम्हारी सूरत देखने का। सो मैं दूसरे रूम में शिफ्ट हो रही हूँ। जब डाइवोर्स पेपर्स रेडी हो जाए तो बता देना। तब तक मेरा तुम्हारा कोई संबंध नहीं होगा।"
और वो कमरे से निकल गई।
अब वो बस अपना और अपनी बच्ची का काम करती, बाकी किसी काम को हाथ तक न लगाती और अतुल उसकी तरफ तो वो देखती तक नहीं।
महीने भर तक ऐसा ही चलता रहा।
एक महीने बाद अतुल ने ऋतु के सामने डाइवोर्स पेपर रख दिये।अब तक ऋतु ने जॉब भी जॉइन कर ली थी और अपनी बच्ची के लिए एक बेबी केअर सेंटर भी तलाश लिया था।
ऋतु ने पेपर्स पढ़े और साइन कर दिए।
इसके बाद ऋतु ने अतुल की ओर एक एनवोल्प बढ़ाया।
"ये क्या है?", अतुल ने पूछा।
"ये तुम्हारी बेवकूफी का सबूत है, जो ये साबित करेगा कि तुम पढ़े लिखे बेवकूफ हो। जा रही हूँ मैं, बस एक बात जरूर कहूँगी जब तक तुम्हारी ज़िंदगी मे तुम्हारी माँ और भाभी ये दो औरतें हैं, तब तक तुम्हारा कभी भला नहीं हो सकता।"
"री........तू।", अतुल चिल्लाया।
"ना ना.....",अतुल के हाथ मे दिए पेपर्स की तरफ इशारा करते हुए ऋतु बोली।
अतुल एनवोल्प खोलने लगा।
ऋतु अपना बैग उठाया और बच्ची को थामकर कहा, "तू सिर्फ मेरी है।" और चल दी। दरवाज़े पर पहुँचकर उसने पलट कर अतुल की ओर देखा।
अतुल के चेहरे पर हैरानी और पश्चाताप के भाव थे और हाथ में डीएनए रिपोर्ट उसकी और उसकी बच्ची की।
उसकी हालत देखकर ऋतु के लबों पर एक स्वाभिमानी हँसी उभर आई। उसने अतुल के घिनोने इल्ज़ाम के जवाब में ये करारा प्रहार किया था।
आत्मविश्वास से भरी ऋतु कमरे से बाहर निकल गई।
अतुल रिपोर्ट हाथ मे पकड़े ठगा सा, उसे देखता रह गया।
समाप्त।
(मौलिक व स्वरचित)
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