रविवार, 31 जनवरी 2021

विदुर का जीवन

 महात्मा विदुर महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक हैं। उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत सी ऐसी नीतियों की रचना की है, जिन्हें अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में अपना लें तो उसका जीवन बहुत ही सरल हो सकता है। उन्होंने व्यक्ति के जीवन से जुड़ी कई समस्याओं का हल बताने के साथ ही उत्तम पुरुष के लक्षण बताए हैं और आज हम आपको उन्हीं लक्ष्णों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।  


विदुर कहते हैं कि परोपकार रहित मानव का जीवन व्यर्थ होता है। लेकिन उत्तम पुरुष उस मरे हुए पशु के समान होते हैं जिसका मृत्यु के बाद चमड़ा भी काम आता है। यानि ऐसे लोगों को मृत्यु के बाद स्वर्ग मिलता है। उत्तम पुरुष को भले ही मृत्यु लोक में कष्टों का सामना करना पड़ता है, लेकिन वह तटस्थ भाव से धर्म निभाता है। उत्तम पुरुष के जीवन में कितने ही दुख क्यों न आ जाएं, लेकिन वह अपना धर्म निभाता है। विदुर जी कहते हैं कि उत्तम पुरुष में हर दुख को सहने की शक्ति होती है।


विदुर जी कहते हैं कि धर्म का पालन, दान करने, सत्य बोलने और मेहनत करने वाले पुरुषों की चर्चा तीनों लोकों में होती है। ऐसे लोगों की मृत्यु के बाद इनकी कई पीढ़ियां इनके द्वारा किए गए पुण्य का लाभ उठाती हैं।


कहते हैं कि ऐसे पुरुष को पति के रूप में पाकर स्त्री स्वर्ग के समान सुख भोगती है। महात्मा विदुर ने ऐसे पुरुष को उत्तम से भी उत्तम बताया है। विदुर नीति के अनुसार, इन पुरुषों पर हमेशा देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।

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हेमन्त किगरं

मनुष्य की ममता

मनुष्य की मोह माया ममता  कहा कहाँ ?

भगवान् श्री रामजी ने विभीषणजी को कहा है कि नौ जगह मनुष्य की ममता रहती है, माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार में, जहाँ जहाँ हमारा मन डूबता है वहाँ वहाँ हम डूब जाते हैं, इन सब ममता के धांगो को बट कर एक रस्सी बना।


* सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥

जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥


भावार्थ:-(श्री रामजी ने कहा-) हे सखा! सुनो, मैं तुम्हें अपना स्वभाव कहता हूँ, जिसे काकभुशुण्डि, शिवजी और पार्वतीजी भी जानती हैं। कोई मनुष्य (संपूर्ण) जड़-चेतन जगत्‌ का द्रोही हो, यदि वह भी भयभीत होकर मेरी शरण तक कर आ जाए,॥


* तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥

जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥


भावार्थ:-और मद, मोह तथा नाना प्रकार के छल-कपट त्याग दे तो मैं उसे बहुत शीघ्र साधु के समान कर देता हूँ। माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार॥


* सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥

समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥


भावार्थ:-इन सबके ममत्व रूपी तागों को बटोरकर और उन सबकी एक डोरी बनाकर उसके द्वारा जो अपने मन को मेरे चरणों में बाँध देता है। (सारे सांसारिक संबंधों का केंद्र मुझे बना लेता है), जो समदर्शी है, जिसे कुछ इच्छा नहीं है और जिसके मन में हर्ष, शोक और भय नहीं है॥


* अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥

तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥


भावार्थ:-ऐसा सज्जन मेरे हृदय में कैसे बसता है, जैसे लोभी के हृदय में धन बसा करता है। तुम सरीखे संत ही मुझे प्रिय हैं। मैं और किसी के निहोरे से (कृतज्ञतावश) देह धारण नहीं करता॥


हनुमानजी कहते हैं सज्जन कौन है, जो बोलते, उठते, सोते, जागते हरि नाम लेता है, भगवान का सुमिरन करता है वह सज्जन हैं, सागर की तरह दूसरे को बढते हुए देख उमड़ता हो वो सज्जन हैं, जो सबकी ममता प्रभु से जोड दे, प्रभु के चरणों में छोड़ दे "सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणंब्रज" वह सज्जन हैं, भगवान् बोले ऐसे सज्जन से हनुमानजी हठपूर्वक मित्रता करते हैं।


#एहि सन हठि करिहउँ पहिचानि।

साधु ते होइ न कारज हानी।।


ऐसे तो हनुमानजी "जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर" हनुमानजी वानरों के रक्षक हैं, "राखेहू सकल कपिन के प्राणा" यह कपियों के वास्तव में ईश्वर है, रक्षक हैं, "जय कपीस तिहुँ लोक उजागर" श्री हनुमानजी का यश तीनों लोकों में हैं, सज्जनों! स्वर्ग में देवता इनका यशोगान करते हैं, 


मृत्युलोक में राम-रावण संग्राम में सारे ऋषि-मुनि, सारे मानव एवं दानव सभी ने यहां तक की दानवराज रावण ने भी हनुमानजी की प्रशंसा की है, पाताललोक में अहिरावण व महिरावण ने भगवान् को हरण करके ले गए थे तो जाकर देवी की प्रतिमा में विराजमान होकर श्री हनुमानजी ने भगवान् की रक्षा की है, बडा मार्मिक प्रसंग है, हनुमानजी देवी की प्रतिमा में प्रवेश कर गयें।


अहिरावण, महिरावण ने देवीजी को प्रसन्न करने के लिए 56 भोग लगायें और हनुमानजी युद्ध में बहुत दिनों तक भोजन नहीं कर पाए थे, टोकरी पे टोकरी चढाये जा रहे हैं, हनुमानजी कह रहे हैं चले आओ और हनुमानजी लडडू खा-खा कर बहुत प्रसन्न हैं, अहिरावण और महिरावण देखकर मन ही मन बहुत प्रसन्न, कि आज देवीजी बहुत प्रसन्न हैं।


हनुमानजी सोच रहे हैं कि बेटा चिंता मत कर, एक साथ इसका फल दूंगा, पाताललोक में और नागलोक में अहिरावण, महिरावण, भूलोक में ऋषि व मुनि, मृत्युलोक में देवता, "लोकउजागर" ऐसे हैं श्री हनुमानजी, जिनका यश सर्वत्र व्याप्त है।


श्री हनुमानजी महाराज जब भगवान् श्रीरामजी के दूत बन कर जानकीजी के पास में गयें तो माँ ने यही प्रश्न किया, तुम हो कौन? अपना पत्ता व परिचय दो, तो हनुमानजी ने अपने परिचय में इतना ही कहा "रामदूतमैं मातु जानकी, सत्य सपथ करूणा निधान की" अपने परिचय में हनुमानजी यहीं बोले माँ मैं भगवान् श्रीरामजी का दूत हूँ।


#हनुमानजी की वाणी सुनकर माँ ने कहा दूत बन कर क्यो आये हो भैया तुम तो पूत बनने के योग्य हो, पूत बन कर क्यो नही आयें? हनुमानजी बोले पूत तो आप बनाओगी तभी तो बनूँगा, हनुमानजी ने इतना कहा तो जानकीजी आगे जब भी बोली हमेशा पूत शब्द का ही प्रयोग किया है, "सुत कपि सब तुमहि समाना" जब-जब बोली है जानकीजी पुत्र बोलकर सम्बोधित किया। 


इसके बाद भगवान् भी बोले हैं "सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाही" क्योंकि पुत्र का जो प्रमाण पत्र है वह माँ देती है, भगवान् अगर पहले पुत्र कह कर संबोधित करते तो जगत की व्यवहारिक कठिनाई खडी हो जाती, क्योंकि पुत्र तो माँ के द्वारा प्रमाणित होता है, क्योंकि माँ जो बोलेगी, माँ ही तो बोलेगी कि मैने जन्म दिया है।



🙏जय जय सियाराम🙏

महाबीर" बिनवउं हनुमाना।

 यहां गोस्वामी जी द्वारा हनुमानजी के लिए "महाबीर" और"हनुमाना" दो शब्दों का प्रयोग क्यों?



"महाबीर"  बिनवउं हनुमाना। 

राम जासु जस आपु बखाना।।



गोस्वामी जी महाराज कहते हैं कि मैं उन अद्वितीय महावीर हनुमानजी की विनती करता हूं जिनके यश और कीर्ति की स्वयं परमात्मा श्रीराम जी ही वर्णन करते हैं।

देखिए यहां गोस्वामी जी महाराज "महाबीर" और "हनुमाना" शब्द के बीच में "बिनवउं" शब्द का प्रयोग करते हैं जबकि महावीर और हनुमान दोनों पवनपुत्र हनुमानजी के ही नाम हैं। यदि यहां कुछ खास उद्देश्य न होता तो हनुमानजी के लिए एक ही नाम का प्रयोग करते या दोनों नामों को एक साथ प्रयोग करते। 

जैसे- बिनवउं महाबीर हनुमाना। राम जासु जस आपु बखाना।।

और इसे पढ़ने में थोड़ा सरल भी होता क्योंकि...

"महाबीर बिनवउं हनुमाना" पढ़ने में एक धक्का जैसा अनुभव होता है। तो चलिए यथामति अवलोकन करने की कोशिश करते हैं...

गोस्वामी जी का कहने का आशय है कि...

मैं उन महावीर की विनती करता हूं जो...

"महाबीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी"।।


इनमें ऐसी सामर्थ्य है कि ये हमारी कुमति के निवारण करेंगे और हमें सुमति प्रदान करेंगे। इन्हीं के शिष्य विभीषण जी (तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।) रावण से कहते हैं कि... "सुमति" "कुमति" सब के उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।। हे स्वामी! पुराणों ,शास्त्रों का यह कथन है कि प्रायः सभी में अच्छे विचार और बुरे विचार का समावेश होता ही है। किन्तु जो अच्छे विचार (सुमति) को महत्व देता है वह सुखी संपन्न रहता है और जो बुरे विचारों (कुमति) को महत्व देता है वह विपत्ति मोल लेता है... जहां सुमति तहं संपत्ति नाना। जहां कुमति तहं बिपति निदाना।। 

विभीषण जी के कहने का तात्पर्य है कि - हे लंकेश! वैसे आप भी महावीर हैं और हनुमानजी भी महावीर हैं लेकिन दोनों में यही अंतर है कि हनुमानजी ने सुमति को महत्व देते हैं... (जामवंत को गुरु मान लेते हैं... उचित सिखावन दीजहु मोही। वे पूछ कर भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और रावण को बिना पूछे भी उचित शिक्षा मिलने लगा तो शिक्षा देने वाले का ही अपमान करने लगा..."मिला हमहिं कपि गुरु बड़ ग्यानी"!!!)

अतः गोस्वामी जी "महाबीर बिनवउं हनुमाना" में सर्वप्रथम

 महाबीर शब्द का प्रयोग कर यह कहना चाहते हैं कि-

 हे महावीर जी! आप हमारे अंदर के कुमति अर्थात गलत सोच, गलत विचार का निवारण करें और हमारे अंदर अच्छे सोच, अच्छे विचार का समावेश करें ।

 क्योंकि मैं ...करन चहउं रघुपति गुन गाहा। 

मैं श्रीराम चरित का वर्णन करना चाहता हूं और दिक्कत ये है कि मेरी मति छोटी है और श्रीराम चरित अथाह सागर है... लघु मति मोरि चरित अवगाहा।।

अतः आप मेरे....

" कुमति निवार"!,

(हमारे दुर्गुणों को दूर करें)

और

"सुमति के संगी"!!

(हमें सद्गुणों के साथी बना दें, संगी अर्थात साथी) 

हे... महाबीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।

बस इसी उद्देश्य के लिए...

"महाबीर बिनवउं" हनुमाना।

( "हनुमाना" शब्द का यथामति विवेचन अगले अंक में)

🙏🙏🙏

सीताराम जय सीताराम

सीताराम जय सीताराम

रामायण

 *श्रीरामचरितमानस* ☀️/ *सप्तम सोपान*/ उत्तरकाण्ड*

                         *दोहा सं० ५५*

              *(चौपाई सं० ६ से ९ एवं दोहा)*


*गौरि    गिरा    सुनि    सरल    सुहाई ।*

*बोले    सिव    सादर     सुख     पाई ।।६।।*

अर्थ – पार्वतीजी की सरल, सुन्दर वाणी सुनकर शिवजी सुख पाकर आदर के साथ बोले –

*धन्य     सती    पावन    मति    तोरी ।*

*रघुपति    चरन    प्रीति   नहिं   थोरी ।।७।।*

*सुनहु     परम     पुनीत     इतिहासा ।*

*जो  सुनि  सकल  लोक  भ्रम   नासा ।।८।।*

*उपजइ     राम      चरन     बिस्वासा ।* 

*भव  निधि  तर  नर  बिनहिं   प्रयासा ।।९।।*

अर्थ –हे सती ! तुम धन्य हो, तुम्हारी बुद्धि अत्यन्त पवित्र है । श्रीरघुनाथजी के चरणों में तुम्हारा कम प्रेम नहीं है (अर्थात् अत्यधिक प्रेम है)। अब वह परम पवित्र इतिहास सुनो, जिसे सुनने से सारे लोक के भ्रम का नाश हो जाता है तथा श्रीरामजी के चरणों में विश्वास उत्पन्न होता है और मनुष्य बिना ही परिश्रम संसार रूपी समुद्र से तर जाता है ।

👉 _*'धन्य सती...'*_ – श्रीपार्वतीजी के पूर्व जन्म में सती-शरीर में मति अपावनी थी इसीलिये तब श्रीरामजी को मनुष्य मान रही थीं । अब रामचरण में प्रेम देखकर महादेव उसी मती को 'पावनि' कहते हैं, जिससे सतीजी का पूर्व पश्चाताप मिट जाय । सती-तन में मोह हुआ था, इसीलिए अब 'पावनि' कहने में वही नाम दिया ।  सती सम्बोधन करने का एक कारण यह भी है कि श्रीशिवजी इस कथा को भगवती के पूर्व-जन्म (सती-अवतार) के प्रसंग से प्रारम्भ करेंगे, यथा – _*'प्रथम दक्ष गृह तव अवतारा । सती नाम तब रहा तुम्हारा ।।'*_ अतः सती नाम से ही सम्बोधन किया ।

                          ।। दोहा ।।

*ऐसिअ प्रस्न बिहंगपति कीन्हि काग सन जाइ।*

*सो सब सादर कहिहउँ, सुनहु उमा मन लाई ।।५५।।*

अर्थ – पक्षीराज गरुड़जी ने भी जाकर काकभुशुण्डिजी से प्रायः ऐसे ही प्रश्न किये थे । हे उमा ! मैं वह सब आदरसहित कहूँगा, तुम मन लगाकर सुनो ।

👉 *'ऐसिअ'* अर्थात जो प्रश्न तुमने मुझसे किये हैं इसी प्रकार के प्रश्न गरुड़जी ने भुशुण्डिजी से किये थे । अर्थात् सभी (पांँच) प्रश्न जो यहांँ किये वे तो गरुड़ ने किये नहीं हैं , अतएव _*'ऐसिअ'*_ का भाव यह है कि मुख्य प्रश्न तुम्हारे यही हैं कि (१) काक शरीर में भक्ति कैसे मिली ? (२) यदि काक शरीर पीछे का है तो रामायण परायण आदि गुण सम्पन्न को काक शरीर कैसे मिला ? तथा (३) काग ने यह चरित्र कहांँ पाया ? जो उत्तर उन्होंने दिया था वही हम तुमसे कहेंगे । ये तीनों प्रश्न श्रीपार्वतीजी ने इस प्रकार किये थे –

(१) _*राम परायन ग्यान रत, गुनागार मति धीर ।*_ 

 _*नाथ कहहु केहि कारन, पायउ काक सरीर ।।*_ 

(२) _*सो हरिभगति  काग किमि पाई ।*_

(३) _*यह प्रभु चरित पवित्र सुहावा ।*_ 

 _*कहहु कृपाल काग कहँ पावा ।।*_ 

 _*'ऐसिअ'*_  तीन प्रश्न गरुड़जी ने काकभुशुण्डिजी से (आगे) किये हैं –

(१) _*तुम्ह सर्वज्ञ तज्ञ तम पारा ।...'*_ 

(२) _*'कारन कलन देह यह पाई ।*_ 

 _*तात सकल मोहि कहहु बुझाई ।।'*_ 

(३) _*'रामचरित सर सुंदर स्वामी ।*_ 

 _*पायेउ कहाँ कहहु नभगामी ।।'*_ 

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 🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏

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चार आने का हिसाब


 हिसाब चार आने का /


प्रस्तुति - सृष्टि, दृष्टि  अम्मी  कृति और मेहर 


बहुत समय पहले की बात है, for चंदनपुर का राजा बड़ा प्रतापी था, दूर-दूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थी, उसके महल में हर एक सुख-सुविधा की वस्तु उपलब्ध थी पर फिर भी अंदर से उसका मन अशांत रहता था। उसने कई ज्योतिषियों और पंडितों से इसका कारण जानना चाहा, बहुत से विद्वानो से मिला, किसी ने कोई अंगूठी पहनाई तो किसी ने यज्ञ कराए, पर फिर भी राजा का दुःख दूर नहीं हुआ, उसे शांति नहीं मिली।


एक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकला। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा , तभी उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी, किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे और वह पेड़ की छाँव में बैठ कर भोजन कर रहा था।


किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन मे कुछ खुशियां आ पाये।


राजा किसान के सम्मुख जा कर बोला–  मैं एक राहगीर हूँ, मुझे तुम्हारे खेत पर ये चार स्वर्ण मुद्राएँ गिरी मिलीं, चूँकि यह खेत तुम्हारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो।


किसान –  ना – ना सेठ जी, ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं, इसे आप ही रखें या किसी और को दान कर दें, मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं।


किसान की यह प्रतिक्रिया राजा को बड़ी अजीब लगी, वह बोला, धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला आप लक्ष्मी को ना कैसे कर सकते हैं?”


सेठ जी, मैं रोज चार आने कमा लेता हूँ, और उतने में ही प्रसन्न रहता हूँ…, किसान बोला।


क्या? आप सिर्फ चार आने की कमाई करते हैं, और उतने में ही प्रसन्न रहते हैं, यह कैसे संभव है!  राजा ने अचरज से पुछा।


सेठ जी, किसान बोला, प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती की आप कितना कमाते हैं या आपके पास कितना धन है…. प्रसन्नता उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है।


तो तुम इन चार आने का क्या-क्या कर लेते हो?, राजा ने उपहास के लहजे में प्रश्न किया।


किसान भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहता था उसने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया, इन चार आनो में से एक मैं कुएं में डाल देता हूँ, दुसरे से कर्ज चुका देता हूँ, तीसरा उधार में दे देता हूँ और चौथा मिट्टी में गाड़ देता हूँ….


राजा सोचने लगा, उसे यह उत्तर समझ नहीं आया। वह किसान से इसका अर्थ पूछना चाहता था, पर वो जा चुका था।


राजा ने अगले दिन ही सभा बुलाई और पूरे दरबार में कल की घटना कह सुनाई और सबसे किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा।


दरबारियों ने अपने-अपने तर्क पेश किये पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया, अंत में किसान को ही दरबार में बुलाने का निर्णय लिया गया।


बहुत खोज-बीन के बाद किसान मिला और उसे कल की सभा में प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया।


राजा ने किसान को उस दिन अपने भेष बदल कर भ्रमण करने के बारे में बताया और सम्मान पूर्वक दरबार में बैठाया।


मैं तुम्हारे उत्तर से प्रभावित हूँ, और तुम्हारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूँ;  बताओ, तुम अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते हो ? राजा ने प्रश्न किया।


किसान बोला, हुजूर, जैसा की मैंने बताया था, मैं एक आना कुएं में डाल देता हूँ, यानि अपने परिवार के भरण-पोषण में लगा देता हूँ, दुसरे से मैं कर्ज चुकता हूँ, यानि इसे मैं अपने वृद्ध माँ-बाप की सेवा में लगा देता हूँ, तीसरा मैं उधार दे देता हूँ, यानि अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में लगा देता हूँ, और चौथा मैं मिटटी में गाड़ देता हूँ, यानि मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूँ ताकि समय आने पर मुझे किसी से माँगना ना पड़े और मैं इसे धार्मिक, सामजिक या अन्य आवश्यक कार्यों में लगा सकूँ।


राजा को अब किसान की बात समझ आ चुकी थी। राजा की समस्या का समाधान हो चुका था, वह जान चुका था की यदि उसे प्रसन्न एवं संतुष्ट रहना है तो उसे भी अपने अर्जित किये धन का सही-सही उपयोग करना होगा।


मित्रों, देखा जाए तो पहले की अपेक्षा लोगों की आमदनी बढ़ी है पर क्या उसी अनुपात में हमारी प्रसन्नता भी बढ़ी है? पैसों के मामलों में हम कहीं न कहीं गलती कर रहे हैं, जिन्दगी को संतुलित बनाना ज़रूरी है और इसके लिए हमें अपनी आमदनी और उसके इस्तेमाल पर ज़रूर गौर करना चाहिए, नहीं तो भले हम लाखों रूपये कमा लें पर फिर भी प्रसन्न एवं संतुष्ट नहीं रह पाएंगे!

शनिवार, 30 जनवरी 2021

नमन विनम्र श्रद्धांजलि

 "महाराणा संग्रामसिंह जी मेवाड़ (राणा सांगा) की 493वीं पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन"


* शरीर पर 84 घावों के कारण महाराणा सांगा को "मानवों का खंडहर" भी कहा जाता है।


* इन महाराणा का कद मंझला, चेहरा मोटा, बड़ी आँखें, लम्बे हाथ व गेहुआँ रंग था। दिल के बड़े मजबूत व नेतृत्व करने में माहिर थे। युद्धों में लड़ने के शौकीन ऐसे कि जहां सिर्फ अपनी फौज भेजकर काम चलाया जा सकता हो, वहां भी खुद लड़ने जाया करते थे।


* महाराणा सांगा अंतिम शासक थे, जिनके ध्वज तले खानवा के युद्ध में समस्त राजपूताना एकजुट हुआ था।


* महाराणा सांगा के समय मेवाड़ दस करोड़ सालाना आमदनी वाला प्रदेश था।


* महाराणा सांगा द्वारा बाबर को हिंदुस्तान में आमंत्रित करने की घटना मात्र एक भ्रम है, जो स्वयं बाबर द्वारा फैलाया गया। जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित धारावाहिक "भारत एक खोज" द्वारा बिना किसी ठोस आधार पर इसे और फैलाया गया, वरना जिन महाराणा ने दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी को 2 बार परास्त कर भगाया हो वे भला बाबर से मदद की आस क्यों रखेंगे। वास्तव में इब्राहिम लोदी से अनबन के चलते पंजाब के गवर्नर दौलत खां लोदी ने बाबर को भारत में आमंत्रित किया था।


* खातोली के युद्ध में महाराणा सांगा का एक हाथ कट गया व एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था।

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

माखनलाल चतुर्वेदी

माखनलाल चतुर्वेदी  


माखनलाल चतुर्वेदी (४ अप्रैल १८८९-३० जनवरी १९६८) भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा।[1] वे सच्चे देशप्रमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। आपकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।

माखनलाल चतुर्वेदी

माटी का चितेरा / शीला पांडे

 । माटी का चितेरा ।।


हर नमी सिंकती गयी है 

आंच पर फुल्का बनी है 


धूल बोई ज़िन्दगी में

खिल उठें कचनार कोई

पर्वतों की लालियों पर

साझेदारी, पार कोई


पर कहाँ कब हो सका यह

जड़, तने, पत्ते लरजते

हल की जोती हर हराई

नई पिंड उल्का बनी है


कण पसीने की न जाने

कैसी ये तासीर पाई

बीज पोषे लहलहाये

ज़िन्दगी नकसीर पाई


जोतता हल अपनी जिनगी

स्वेद में 'घर' बह रहे हैं

कौन रोके धार को, जो

काल भी गुल का बनी हैं 


गुल भी हैं सब खार पहने

बागबां सौदागरों सा

मेड़ खाता खेत सारा

ऊँघता है अजगरों सा


लीलता शिशु और सैनिक,..........

पेड़ सारे 'हल' बने हैं

टांगते नोकों पे फल के

हक़ मिले कुल का, ठनी है 


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                     -------------शीला पांडे

साहित्य साधना के तप: पुरुष - श्री शिव पूजन लाल 'विद्यार्थी'

 साहित्य साधना के तप:पुरुष -श्री शिव पूजन लाल 'विद्यार्थी //विनोद सिंह




वर्षों  सत्कर्म जब पुण्य बन कर धरती पर फलता है।

साहित्य का अलख जगाने को शिवपूजन सा लाल निकलता है।।


आज जब मैं अपने अतीत का विहंगावलोकन करने बैठता हूँ तो वो दिन मेरे लिए सबसे शुभ प्रतीत होता है जिस दिन मेरी चचेरी दीदी ने मुझसे कहा कि तुम्हारे गुरु श्री शिव पूजन लाल विद्यार्थी जी रांची में  इसी बिल्डिंग के चौथे तल्ले पर अपनी बेटी के यहां आए हैं।फिर क्या था उनसे मिलने की उत्कंठा मेरे हृदय में एक ऐसा तरंग उत्पन्न कर दिया  कि अब वह उनके पवित्र चरणों को छूकर ही शांत हो सकता था।  बिना समय गंवाए मैं पहुंच गया चौथे तल्ले पर,और क्यों नहीं , 1983 के बाद अपने इस महान गुरु से मिलने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ था।मिलने की इच्छा पहले से भी थी,और वो घड़ी आखिर आ हीं गई।


जेही कर जा पर सत्य सनेहु।

वा तेही मिलही कछु ना संदेहु।।


घंटी बजाई ,दरवाजा खुला।सामने खड़ा वहीं सोम्यता  सहजता और सादगी की प्रतिमूर्ति ,गोरा चेहरा प्रशस्त ललाट ,सफेद बाल ,सादा लिवास और ओठो पर वही चिर परिचित मृदुल मुस्कान।देखते हीं स्वतः मेरे दोनों हाथ पूर्ण समर्पण और श्रद्धा से उनके दिव्य चरणों पर और उनका वरद हस्त मेरे माथे पर।ऐसा लगा कि मेरे भीतर एक दिव्य ज्योति का संचार हो रहा हो।


सच में कहा गया है।


श्री गुरु पद नख गन मनि गन जोती।

सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती।।


बडे स्नेह से कमरे के भीतर ले गए।लगभग, जीवन के आठ दशकों का उतार चढ़ाव देखने वाले,ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ अनुशासन प्रिय ,हिन्दी साहित्य के अनन्य उपासक ,इसकी महिमा के पोषक और इसके विस्तार के समर्थक और हिंदी तथा भोजपुरी दोनों ही भाषाओं में अपनी रचनाओं से लोगों को  मंत्र मुग्ध कर देने वाले साहित्य के शिखर पुरुष आदरणीय शिवपूजन लाल विद्यार्थी जी से  मिलना एक दिव्य मिलन से कम नही था।

बैठते ही इधर उधर की बात न कर सीधे पूछ बैठे क्या कुछ लिखते -पढते हो या केवल विद्यालय में छात्रों को पढ़ा कर नौकरी करने का दायित्व निभाने तक हीअपने आप को सीमित रखे हो।विद्यार्थी जी शुरू से ही सीधे प्रश्न करने के आदी है और  मेरे पास इस प्रश्नं का कोई उत्तर नहीं था।उन्होने कहा कि साहित्य के शिक्षक यदि साहित्य सृजन से अपने आप को दूर रखते हैं तो यह साहित्य की सबसे बड़ी उपेक्षा है।ईश्वर ने मनुष्य को खुशहाल रखने के लिए तीन तरह के आनंदो  का विधान बनाया है- कामानन्द ,काव्यानंद और ब्रह्मानंद।साहित्य काव्यानंद की प्राप्ति का सबसे बड़ा आधार है।यह समुद्र जैसा विस्तृत और गहरा है।यह न तो कभी खाली होता और न कभी  भरता है।इसकी गहराई में जितना डुबो प्यास उतनी ही बढ़ती जाती है।ठीक उसी तरह जैसे -


राम कथा जे पढत अघाही।

रस विशेष जाना तिमी नहीं ।।


तब मुझे लगा कि आज पच्चासी वर्ष की अवस्था मे, कई किताबों को लिखने के बाद भी वो क्यों साहित्य साधना में लगे रहते हैं। शहर के छोटे या बड़े साहित्यकारों से मिलने के लिए अत्यंत आतुर रहते हैं।उनके लिखने और सीखने की प्रवृत्ति निश्चित रूप से मेरे  जैसे नवसिखुआ  साहित्यानुरागी के लिए प्रेरणा का अगाध स्रोत है।उनका सुखद सानिध्य, शब्दों की कल -कल छल -छल ,शीतल स्वच्छ  मीठा बहता हुआ प्रपात की तरह है जिसके दर्शन - मज्जन और पान से सदैव साहित्य की पिपास बुझती है। जीवन में नई स्फूर्ति, नई ऊर्जा का संचार होता है, कल्पना उर्वर हो जाती है, मौन मुखर हो जाता है और लेखनी को तो साहित्य के अनंत आकाश में उड़ने के लिए पंख मिल जाता है और वह फिर नित्य नई- नई रचनाएं करने में समर्थ हो जाता है।

विद्यार्थी जीआज जितना लोकप्रिय साहित्यकारों के बीच में है उतना ही लोकप्रिय अपने अध्यापक जीवन में अपने छात्रों के बीच में थे।छात्रों को सवारने, सुधारने ,प्रोत्साहित करने और भविष्य के लिए अच्छा नागरिक बनाने के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहा करते थे।हो भी क्यों न-


"पारस के रंग कैसा,पलटा नहीं लोहा।

केते निज पारस नहीं, या बीच रहा बिछोहा।"


इस उक्ति को चरितार्थ करने में वह जीवनभर लगे रहे।उनका मानना है कि गुरु को छात्रों में ऐसा सामर्थ  डालना चाहिए कि वे अपने गुरु से भी ज्यादा नाम और प्रतिष्ठा हासिल करें-जैसे रामानंद के तुलसी,बल्लभाचार्य के सूरदास और और परशुराम के कार्ण।

विद्यार्थी जी के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा आकर्षण है उनका विनोदी स्वभाव यह उन्हें कभी निराश नहीं होने देता बीती बाते  उन्हें उलझा नहीं पाती, आने वाला कल उन पर हावी नहीं हो पाता गंभीर से गंभीर परिस्थितियों में भी वे हमेशा सहज बने रहते हैं।यही कारण है कि उनका विधुर जीवन उन्हें कभी निराश नहीं किया और वे चुंबक की तरह अपनी ओर लोगों को आकर्षित करते रहे।

शिक्षक की नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद वे अपना ज्यादा समय वाराणसी में ही बिताए।यह  उनके साहित्य साधना के लिए उर्वर भूमि है।कहते हैं कि जिस तरह से गंगा गंगोत्री से निकलती है ,उसी तरह से साहित्य की धारा काशी से निकल कर अन्य जगहों में बहती है।

उनका मानना है कि शिक्षक का एक वाक्य भी शिष्य के जीवन में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने का सामर्थ्य रखती है।इसे लोग सही माने या न माने और हाँ मानेंगे ही क्यों आज बातें  किसी को लगती ही कहाँ है - पर उनका कहना कि साहित्य के शिक्षक और विद्यार्थी अगर साहित्य सृजन मैं अपने आप को नहीं लगाते हैं, तो उनके सामर्थ और योग्यता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाता है।और यह बात मुझे वैसी ही लगी जैसे -


आज मैंने देखी है जरा

क्या हो जाएगी एक दिन 

ऐसी ही मेरी यशोधरा?


बातें लग गई और और शाक्य वंश के राज कुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गए और मैं भी विद्यार्थी जी की बातों से प्रभावित होकर अपना अध्यापन कार्य से बचा खुचा समय साहित्य के सामानों में लगा रहा हूँ- मैं मानता हूं कि मेरी लेखनी उतनी मर्मज्ञ, सशक्त और उर्वर नहीं है -

"भूषण अथवा कवि चंद नहीं।

बिजली भर दें वो छंद नहीं।।"


पर इतना जरूर कह सकता हूँ कि शिष्य का अपने एक सामर्थ  गुरु से पुनर्मिलन उसकी जंग लगी हुई प्रतिभा और लेखनी में फिर से नई धार ला दी।

चलते चलते वे मुझे अपनी नई पुस्तक "क्षंदों की छांव में "उपहार नहीं प्रसाद स्वरूप भेंट की,मन गदगद हो गया आँखों में कृतज्ञता के आंसू भर आए।धन्य है विद्यार्थी जी! धन्य है उनका पुत्रवत स्नेह!यदि मैं शब्दों में कृतज्ञता व्यक्त करूं तो यह एक ढिठाई होगी -और हाँ, आज मैं जो कुछ हूं उन्हीं की बदौलत -


करते तुलसी दास भी कैसे मानस नाद।

महावीर का यदि उन्हें  मिलता नही प्रसाद।।

विजयादशमी के समकालीन अर्थ / आलोक तोमर

 विजयादशमी, अर्थात अश्वेनमाघ की पहली दशमी पर जब चंद्रमा भद्रपद में


चला जाता है तो नवरात्रि के बाद दशहरा आता है और उस समय पापियों का नाश करने वाली मा

दुर्गा की प्रचंड पूजा के बाद उन्हें अपने लोक भेजने के लिए उनकी प्रतिमा का विजर्सन

कर दिया जाता है। विजया दशमी युद्व में विजय का पर्व है और इसका इतिहास बुराई पर अच्छाई

की जीत के तौर पर सब जानते हैं। भारत सरकार भी जिसने एक हलफनामा सर्वोच्च न्यायालय

को दे कर वापस लिया था और इसमें कहा गया था कि भगवान राम के होने का कोई ऐतिहासिक अस्तित्व

नहीं है। 


 


बंगाल के समाज में दुर्गा पूजा कुछ अतिरिक्त

हिस्सों में रामचरित्र मानस के सुदंर कांड का नौ दिन पाठ किया जाता है। इस पाठ में

कल्पना है कि रावण के जो दस सिर बताएं गए हैं वे असल में मानसिक संताप और कुरीतियां

हैं। ये कुरीतियां वासना, क्रोध,

मोह, लोभ, मद,र् ईष्या, मानस, बुद्वि,

चित्त और अहंकार है। इन संदर्भों को अगर इतिहास से निकाल कर समकालीन

युग में लाया जाए और विजयादशमी में इन सब पर बुद्वि, मन,

चित्त को छोड़ कर बाकी सबसे मुक्ति पा ली जाए तो दशहरा सबसे आदर्श

होगा। 


 


यह संयोग हो भी सकता है और नहीं भी कि जनरल वी

के सिंह ने दशहरे के दो दिन पहले देश को याद दिलाया कि चीन और पाकिस्तान दोनों मिल

कर भारत को घेर रहे हैं और दोनों का निशाना कश्मीर तो है ही, चीन ने तो अरुणाचल प्रदेश में भी

युद्व की तैयारियां कर ली है। महायोद्वा शिवाजी ने सबसे पहले दशहरे को युद्व का पर्व

बनाया था और वे शिव और दुर्गा दोनों की पूजा कर के ही हर युद्व पर निकलते थे। 


 


भारत का समाज और भारत की सेना अपने स्वभाव और

संस्कार दोनों में धर्म निरपेक्ष है और चीन मे तो खैर धर्म माना ही नहीं जाता। पाकिस्तान

स्थापना से आज तक इस्लामी गणतंत्र हैं इसलिए दशहरे का महत्व उन्हें पता होगा इसकी कल्पना

भी नहीं की जा सकती। जिस नेपाल को चीन आज कल हवाई अड्डों और रेलवे लाइनों से बांधने

में लगा हुआ है वहां का सबसे बड़ा उत्सव ही विजयादशमी है। 


 


जनरल वी के सिंह बहुत जुझारू रहे हैं और पाकिस्तान

को चारों लड़ाईयों में निपटाने में बहुत आगे रहे हैं। वैसे भी वे उस क्षत्रिय समाज के

हैं जहां विजयादशमी के एक दिन पहले बाकायदा शस्त्र पूजन किया जाता है। आदर्श यह है

कि यह शस्त्र आक्रमण के लिए नहीं, आत्मरक्षा के लिए ही इस्तेमाल होने चाहिए। यही शास्त्रो में लिखा है। पाप

के अंत और पापियों के बध पर शास्त्रों में कोई प्रतिबंध नहीं हैं और चीन और पाकिस्तान

मिल कर भारत के साथ जिस महापाप की तैयारी कर रहे हैं उसमें भारत को सिर्फ मर्यादा पुरुषोत्तम

बने रहने से काम नहीं चलने वाला। 


 


लेह के आगे मनाली रोड से चीन सीमा की ओर एक 22 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर तैनात एक

पायलट मेजर का फोन आया। फोन तो विजयादशमी की शुभकामनाओं के लिए था लेकिन मेजर अनुराग

सिंह ने यह भी बताया कि वे बगैर दूरबीन लगाए चीन की सीमा में बन रही सड़कें और तैनात

हो रही तोपें देख सकते हैं। चीन दरअसल अफगानिस्तान तक जाने के लिए रेल मार्ग की योजना

बना चुका है और भूतपूर्व सोवियत संघ के जो देश हैं उन सबसे भी रेल लाइन बिछाने की अनुमति

मांग चुका है। समझौता होने वाला है। अगर यह अनुमति मिल गई तो यह रेलवे लाइन यूरोप होते

हुए अमेरिका की सीमा तक पहुंच जाएगी। 


 


भारत को न अमेरिका का भरोसा है न चीन का। यह

सही है कि चीन की सेना विश्व की सबसे बड़ी सेना है। मगर फिर चीन की आबादी भी दुनिया

में सबसे ज्यादा है। अच्छी बात यह है कि चीन की ज्यादातर सेना आंतरिक विरोधाभासों से

निपटने के लिए तैयार की गई है किंतु इससे हमे आश्वस्त होने की जरूरत नहीं है। दुनिया

में सिर्फ चीन के पास सबसे लंबी दूरी तक वार करने वाले प्रक्षेपास्त्र है। बीजिंग से

न्यूयॉर्क तक मार की जा सकती है। सीमा पर हमारी तैयारियां भी सौभाग्य से अब कम नहीं

है लेकिन अगर कोई युद्व हुआ तो इसका लाभ किसे मिलेगा?


 


अरुणाचल सीमा के पास की सड़कें, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के पार

रेलवे लाइने और जमीन पर कब्जा चीन के जाने माने कारनामे है। उसकी रेल भी अरुणाचल और

सिक्किम सीमा तक पहुंचने वाली है। उधर चीन ने तो अरुणाचल सीमा के एकदम करीब न्यांग्ची

शहर तक रेलवे स्टेशन बना लिया है मगर भारत अभी तक सिक्किम के गंगटोक और अरुणाचल के

ईटानगर को नहीं जोड़ पाया है। काराकोरम राजमार्ग पर भी चीन हावी है और यह जगह तथाकथित

वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास है। 


 


पाकिस्तान में हसन अब्दाल यानी इस्लामाबाद से

चालीस किलोमीटर दूर तक चीन की सड़के बन गई है और जाहिर है कि ये सड़के पर्यटकों के लिए

नहीं बनाई जा रही हैं। भारत को चारो तरफ से घेरा जा रहा है और हम कितने भी महाबली हो, एक साथ चीन की जकड़ में आने वाले

म्यामांर, बांग्लादेश, पाकिस्तान,

नेपाल और मालदीव से आने वाली आग का मुकाबला नहीं कर सकते। चीन भारत

को हरा कर उसका विलय नहीं करना चाहेगा। कश्मीर वह तकनीकी रूप से पाकिस्तान को सौंपेगा

मगर उसके सैनिक अड्डे यहीं बने रहेंगे और बनते रहेंगे। 


 


इस विजयादशमी पर समकालीन संदर्भ में हमे हम पर

बुरी नजर रखने वालों के अहंकार, मद,र् ईष्या और हिंसा वाले आननों को नष्ट करने

का संकल्प लेना पड़ेगा। सिर्फ मां दुर्गा की सात्विक आराधना हमें यह नहीं सिखाती कि

हम विजयादशमी को अपने अनेक उत्सवों में से एक मान ले और रावण दहन करने के साथ साथ घर

बैठ कर दीवाली पर ताश की गड्डियां और बोतलें खोलने का इंतजार करने लगे। 


 


इस संकल्प में यह भी शामिल होना अनिवार्य है

कि हम अपनी भारतीयता को फिर से क्षेत्रों,

भाषाओं, जातियों और धर्मों के आधार पर परिभाषित

करने की कोशिश नहीं करें। हमारे लोकतंत्र में बहुत शक्ति है लेकिन इस लोकतंत्र के बहुत

सारे रावणों का दहन करने का संकल्प भी हमें इस अवसर पर करना पड़ेगा। चीन पाकिस्तान या

जिसकी भी बुरी नजर हम पर हैं उन्हे इस विजयादशमी पर संदेश देना है कि प्रार्थना नहीं,

अब रण्ा होगा, संग्राम बहुत भीषण होगा। आप

सबको इन संदर्भो के साथ विजयादशमी की शुभकामनाएं और साथ में यह भी सूचना कि लंका अभी

तक चीन के जाल में नहीं फंसा है।

पाश के आसपास

 हम लड़ेंगे साथी...../ अवतार सिंह पाश 

( यह तस्वीर पाश यादगारी समागम की है दो साल पहले सूरतगढ़ की ...)


    

    


रूह में तो "वो" बैठी है......


पाश जब मिल्खा सिंह की जीवनी लिख रहे थे तो उनसे काम में देरी हो रही थी तो एक दिन "देश प्रदेश" के सम्पादक तरसेम ने उन्हें कहा कि,"पाश तूं जीवनी लिखते समय अपनी रूह में मिल्खा सिंह को बैठा लिया कर।"

     पाश हमे बुदबुदाते हुए कहता,"बताओ भला मैं मिल्खा सिंह को अपनी रूह में कैसे बैठा लूँ,मेरी रूह में तो बहुत अरसे से "वो" बैठी है,तुम सबको तो पता ही है......मैं किसी और को नहीं बैठा सकता"


'               (२)


रात के समय किसे जगाते,हम (अवतार पाश और शमशेर सन्धु) पाश के घर की दिवार फांद के अंदर पहुँच गए क्योंकि बंटवारे के समय चौबारा बड़े भाई के हिस्से चला गया था।भीतर एक मांची थी बहुत ही ढीली....हम उस पर लेट गए,मगर नींद कहाँ...

कुछ देर बाद.....ये क्या,मेरा कंधा आंसुओं से भीग गया.....हमेशा चहकते,हंसते मुस्कुराते रहने वाला पाश रो रहा है...वो कुछ समय बाद उठा और पौड़ियों पर बैठ बुदबुदाने लगा....

"हमारा परिवार यूँ ही बंट बुंट गया....बापू को मुझसे बहुत उम्मीद थी,मगर मैं अच्छा बेटा न बन सका....बड़े भाई को मुझसे उम्मीद थी मगर मैं कमाऊ भाई न बन सका....मैं यूँ ही रहा....हर रोज़ मैं खुद का कत्ल करता हूँ....."


"    (3)


          पाश जब जेल में कैद थे झूठे कत्ल केस में ये बात पुलिस भी जानती थी कि पाश बेकसूर है।मगर नक्सल लहर की दहशत इतनी थी कि पुलिस और सत्ता पाश को खतरनाक मान रही थी और एक घुप्प अँधेरी कोठड़ी में उसे बंद कर दिया गया था।जहां खटमल और अँधेरा ही उसके साथी थे।और उन्ही मुश्किल दिनों में कविताएँ पाश के भीतर ठांठे मारने लगी थी।मगर कागज़ और कलम उस "खतरनाक" आदमी को कौन देता।अपने मुलाकाती सज्जनो को उसने कहा कि "जैसे भी हो कागज़ कलम पहुँचाओ" और फिर अगली मुलाकात में एक अजीब सी तरकीब से कागज़ कलम अंदर पहुंचे।दरअसल एक खाकी और एक सफ़ेद लिफ़ाफ़े में दो सन्तरे और दो केले भेजे गए।इन्ही कागज़ों पर पाश को कविताएँ लिखनी थी।और केलों में खोंसी गयी थी 2 रिफिलें।

ये जज़्बा था पाश के इंकलाबी कवि का....


  (इक पाश इह वी....किताब से अनुवाद सतीश छिम्पा)

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

विकिलीक्स के संस्थापक और संचालक / आलोक तोमर

खगोलीय साहस का एक नया नाम /  आलोक तोमर 

विकिलीक्स के संस्थापक और संचालक जूलियन असांजे ने ब्रिटिश अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया, उन्हें जमानत नहीं मिली और स्वीडन जा कर वे अपने खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोपों का सामना करेंगे। इसी बीच विश्व विख्यात टाइम पत्रिका ने जूलियन को मैंन ऑफ द ईयर घोषित करने की तैयारी कर ली है। 

टाइम मैग्जीन में इंटरनेट पर अपने पाठकों के बीच जो सर्वेक्षण करवाया उसमें दूसरों से बहुत ज्यादा वोट जूलियन असांजे को मिले। अभी तो यह पता नहीं हैं कि जूलियन असांजे ने अपनी गिरफ्तारी या मौत के बाद रखे हुए बहुत सारे विस्फोटक दस्तावेज जारी होने का जो ऐलान किया था उसका क्या हो रहा है मगर टाइम मैग्जीन के इतिहास में पहली बार किसी अभियुक्त को मैन ऑफ द ईयर या वर्ष का व्यक्तित्व माना गया है। 

जूलियन असांजे ने धमकी दी थी कि उन्होंने पहले से एक गीगाबाइट की एक फाइल इंश्योंरेंस डॉट 256 के नाम से इंटरनेट पर चढ़ा रखी है और इसका 256 अक्षरों और अंकों का पासवर्ड है। उन्होंने कहा था कि कुछ हुआ तो यह पासवर्ड सार्वजनिक कर दिया जाएगा और इसमें जो रहस्य छिपे हुए हैं वे सामने आने के बाद अमेरिका को मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा। 

असांजे ने दुनिया भर के इंटरनेट विशेषज्ञों को इस बात की चुनौती भी दी थी कि अगर वे इस पासवर्ड का पता लगा पाएं तो लगा लेें। खुद दुनिया के सबसे योग्य इंटरनेट इंजीनियरों का कहना है कि जो पासवर्ड खुद किसी दूसरे पासवर्ड से सुरक्षित होते हैं उनका पता लगा पाना सौ डेढ़ सौ साल लगा देगा। जूलियन असांजे ने यह पासवर्ड अपने एक विश्वासपात्र के पास रखा है जो एक बटन दबाएगा और सारी सामग्री विकिलीक्स पर आ जाएगी।

हाल ही में विकिलीक्स पर जूलियन असांजे ने लिखा था कि पूरी दुनिया में एक लाख से ज्यादा लोग जो रहस्य जानते हैं, उनकी मदद कर रहे हैं और हमारे भंडार में पूरी दुनिया की बहुत सारी सामग्री है। इससे अच्छाई की जीत होगी। इतिहास में विश्व एक और अच्छी जगह बनेगा। आम तौर पर टाइम पत्रिका ने समाज में बड़े योगदान करने वालों को ही सम्मानित करती है और किसी अमेरिका से ही प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका के लिए यह बड़े साहस की बात कही जाएगी कि अमेरिकी सरकार से सीधे टक्कर और वह भी एक विदेशी नागरिक के लिए ले रहा है। 

जूलियन असांजे ने किया तो वही है जिसे करने की कल्पना कोई भी आम और सताया हुआ नागरिक कर सकता है। मगर साहस नहीं होता। जाहिर है कि जूलियन असांजे के लिए यह फैसला भी आसान नहीं रहा होगा। लेकिन ब्रिटेन में समर्पण करने के उनके फैसले से बहुत लोगों को पहले पहल तो आश्चर्य हुआ होगा। लेकिन अगर सही संदर्भों में देखे तो असांजे ने फैसला गलत नहीं किया। अमेरिका और उसके दूसरे कातिल दोस्त देश जिस तरह उनके पीछे पड़ गए थे उसमें जान चली जाना सबसे आसान था। बहुत सारे रहस्यों को सीने में दबा कर जूलियन नहीं जाना चाहते। ब्रिटिश कानून में प्रतिशोध के लिए कोई जगह नहीं हैं और ब्रिटेन के खिलाफ कोई बड़ा खुलासा विकिलीक्स पर नहीं किया गया। इसलिए जाहिर है कि जूलियन को ब्रिटेन ही सबसे ज्यादा सुरक्षित जगह लगी होगी। 

ब्रिटिश अदालत में जब वे पेश हुए तो उन्हें समझ में आया कि उनका फैसला गलत नहीं था। अदालत में उन्हे बाकायदा इस बात की सफाई देनी पड़ी कि आखिर उन्होंने ब्रिटेन में ही आत्मसमर्पण करने का फैसला क्यों किया? उन्होंने सरेआम कहा कि उन्हें ब्रिटेन सबसे ज्यादा सुरक्षित लग रहा था। जब उन्हें यह बताया गया कि स्वीडन पुलिस की शिकायत पर बलात्कार के मामले में उनके खिलाफ इंटरपोल का वारंट हैं और उन्हें स्वीडन प्रत्यर्पित किया जा सकता है। जूलियन ने सिर्फ यही जवाब दिया उन्हें पता है लेकिन वे कानूनी रूप से अपना बचाव करेंगे और कानून को चुनौती भी देंगे। 

अदालत ने जब उनसे पूछा कि अमेरिका से क्या वाकई उनका कोई बैर है तो उन्होंने कहा कि वे किसी देश के खिलाफ नहीं हैं बल्कि वहां बैठ कर मानवता के खिलाफ काम कर रहे लोगों के खिलाफ है। ये लोग कितने भी ताकतवर हों और उन्हें चाहे जितना नुकसान पहुंचा सकते हो, जूलियन ने कहा कि उनकी लड़ाई जारी रहेगी। जूलियन असांजे ने यह भी कहा कि पूरी दुनिया में बहुत सारे उनके शुभचिंतक बन गए हैं और वे किसी भी देश की सरकार को मनमानी नहीं करने देंगे। 

यह तो कोई अनाड़ी और अनपढ़ भी बता देगा कि स्वीडन में अचानक जूलियन असांजे पर जो बलात्कार और व्यभिचार के आरोप लगाए गए हैं वे निरर्थक हैं और सिर्फ लगाने के लिए लगाए गए हैं। इन्हें सिद्व करना भी आसान नहीं होगा। लेकिन जब कानून अपनी चलाने पर उतर आता है तो जाहिर है कि उस पर किसी का वश नहीं चलता। यहां तो कानून बाकायदा अंधा हो गया हैं और कोई नहीं समझ पा रहा कि आखिर यह कानून किसी तर्क के आधार पर चल भी रहा है या नहीं। 

सबसे विचित्र बात तो यह है कि सबसे ज्यादा मानवाधिकाराें का गाना अमेरिका ही गाता है और अफगानिस्तान और इराक की अपनी लड़ाई को पूरी दुनिया से आतंकवाद खत्म करने का नाम लेता है। विकिलीक्स ने कम से कम इतना तो किया कि दुनिया को यह एहसास दिलाया कि अमेरिका जैसी महाशक्ति भी किसी नागरिक के साहस और इच्छाशक्ति के सामने निरापद नहीं है। अब चूकि पूरी दुनिया की निगाह जूलियन असांजे के मामले पर है इसलिए उन्हें एक चुटकी बजा कर अदृश्य नहीं किया जा सकता और न सद्दाम हुसैन की तरह उन्हें फांसी पर चढ़ाया जा सकता है। 

आखिर पूरी दुनिया में विकिलीक्स की तरह ही हर देश की एक भंडाफोड़ वेबसाइट ऐसे ही रजिस्टर नहीं हो गई। जूलियन असांजे के साथ चाहे जितना अत्याचार कर लिया जाए लेकिन सच यही है कि उन्होने दुनिया को प्रतिरोध और सरकारी तानाशाही रोकने का एक और रास्ता बताया है और इससे एक खगोलीय साहस सामने आया है जो अब सारे सरकारों को और तानाशाहों को भी डराती और सच के बुरे सपने दिखाती रही थी।

अनजाना बंधन तोड़ गए बालू.../ रतन भूषण

 यादें / एस पी बालासुब्रमण्यम/अनजाना बंधन तोड़ गए बालू...


फ़िल्म और फिल्म संगीत प्रेमी के साथ ही संगीत को महसूस करने वाले को 5 जून 1981 को रिलीज हुई फ़िल्म एक दूजे के लिए के गीतों ने मानो पागल कर दिया था। गीतों के सुरीलापन ने जहां आम लोगों के दिलों में जगह बनाया वहीं युवा पीढ़ी ने गीतों को अपनी प्रेमभावना, अपने दिल से निकली बात मान ली। दरअसल इस फ़िल्म के सभी गीत सुरीले थे, लेकिन तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना..., सोलह बरस की बाली उमर को सलाम..., हम बने तुम बने एक दूजे के लिए... को युवाओं ने अपना खयाल समझ लिया। वे अपने प्रियतम को इन गीतों को गाकर दिल की बात व्यक्त करते थे। लता मंगेशकर की आवाज तो निराली थी ही, लेकिन मेल सिंगर के रूप में इन गीतों को गाकर नए गायक एस पी बालासुब्रमण्यम ने धूम मचा दिया। अलग अंदाज़ और अनोखी आवाज़ के स्वामी एस पी बालासुब्रमण्यम की गायकी के लोग दीवाने हो गए। आनंद बक्षी के बोल और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत भी कमाल साबित हुआ।

फ़िल्म एक दूजे के लिये एक दुखान्त प्रेमकहानी है। इसका निर्देशन के बालाचंदर ने किया था। मुख्य कलाकार थे कमल हासन और रति अग्निहोत्री। यह इनकी पहली हिंदी फिल्म थी। यह निर्देशक की अपनी ही एक तेलुगू फ़िल्म की रीमेक थी। फिल्म युवा प्रेम कहानी होने के साथ ही सुरीले गीत-संगीत से सजी होने के कारण सुपर हिट हुई थी। यह फ़िल्म 13 फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित हुई और 3 जीतने में सफल रही। गायक एसपी बालसुब्रमण्यम को पहली ही हिन्दी फिल्म में गायकी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

हिंदी फिल्मों में फिल्म एक दूजे के लिए से गीत गाने वाले एस पी बालासुब्रमण्यम अपने लोगों के बीच एसपी या बालू नाम से चर्चित रहे। बालू पहले साउथ की ज्यादातर फिल्मों में कमल हासन की आवाज़ बने। यही वजह थी कि कमल हासन की पहली हिंदी फिल्म एक दूजे के लिए में भी उनकी आवाज़ का ही इस्तेमाल किया गया, लेकिन हिंदी फिल्मों में वे ज्यादातर सलमान खान की आवाज़ बने। मैंने प्यार किया, पत्थर के फूल, मझधार, साजन, हम आपके हैं कौन के गीत लोगों को याद होंगे। उनके गाये कुछ सदाबहार गीत हैं... दिल दीवाना बिन सजना के माने ना..., मेरे रंग में रंगने वाली..., आजा शाम होने आई..., पहला पहला प्यार है..., दीदी तेरा देवर दीवाना..., मुझसे जुदा होकर..., तुमसे जो देखते ही प्यार हुआ..., बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम..., देखा है पहली बार साजन की आंखों में प्यार..., रूप सुहाना लगता है चांद पुराना लगता है..., जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके..., हम बने तुम बने एक दूजे के लिए..., मेरे जीवनसाथी प्यार किए जा..., तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बंधन अनजाना..., सच मेरे यार है बस यही प्यार है..., मैं तुम में समा जाऊं तुम मुझमें..., हम तुमसे प्यार न करते तो..., देखो देखो ये तो कमाल हो गया..., आके तेरी बांहों में हर शाम लगे..., जीना तेरी गली में..., सागर से गहरा है प्यार हमारा..., प्रियतमा ओ मेरी प्रियतमा...।

बॉलीवुड और साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर सिंगर एसपी बालासुब्रमण्यम की सेहत पिछले दिनों ज्यादा बिगड़ गई थी। 74 साल के बालू को कोरोना होने के बाद चेन्नई के हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था। जब उनकी हालत ज्यादा खराब हो गई, तो उन्हें आईसीयू में रखा गया। एसपी ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो जारी कर बताया था, कुछ दिनों से मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी। सर्दी और बुखार था। मैं इसे आसान समझ रहा था। जब जांच करवाने के लिए अस्पताल गया तो कोरोना निकला। उन्होंने मुझे घर पर रहने और दवा लेने के लिए कहा, लेकिन मैंने रिस्क लेना सही नहीं समझा। मेरा परिवार भी चिंतित हो गया। मैं अस्पताल में भर्ती हो गया। मैं ठीक हो जाऊंगा। आप सभी का कॉल नहीं रिसीव कर सकता। मेरी चिंता के लिए धन्यवाद। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वे हमसे अपना अनजाना बंधन तोड़ कर आज चले गए।

गायकी की दुनिया में अपने अलग अंदाज के लिए मशहूर एसपी का पूरा नाम श्रीपति पंडितराध्युला बालासुब्रमण्यम था। उन्होंने 16 भारतीय भाषाओं में हजारों गाने गाये। सन 2011 में उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया।

4 जून, 1946 को सिम्हापुरी, नेल्लोर, आंध्र प्रदेश में जन्मे एसपी ने इंजीनियंरिंग की पढ़ाई की थी। इसी दौरान उन्होंने संगीत की भी शिक्षा ली। उनकी 15 दिसंबर, 1966 को रिलीज हुई तेलुगु फिल्म श्री श्री मर्यादा रमन्ना से बतौर गायक अपने करियर की शुरुआत हुई। हिंदी फिल्मों में एसपी ने एक दूजे के लिए, मैंने प्यार किया, पत्थर के फूल, हम आपके हैं कौन, रोजा, सागर, मझधार, प्रेम कैदी, जीना तेरी गली में, वंश, ये तो कमाल हो गया, एक ही भूल, द जेंटिलमैन, रास्ते प्यार के आदि फिल्मों के लिए गीत गाये। करीब 15 साल तक हिंदी फिल्मों से दूर रहने के बाद 2013 में उन्होंने शाहरुख खान की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के लिए गीत गाया। 

एसपी बेहतरीन गायक, संगीतकार और निर्माता होने के साथ ही अच्छे वाइस ओवर आर्टिस्ट भी थे। उन्होंने कमल हासन, रजनीकांत, सलमान खान, शाहरुख खान, अनिल कपूर, गिरीश कर्नाड और अर्जुन सरजा जैसे एक्टर्स के लिए वॉइस ओवर किया। इतना ही नहीं फिल्म दशावतारम के तेलुगु वर्जन के लिए उन्होंने कमल हासन के 7 किरदारों की आवाज का वॉइस ओवर भी किया। इसमें बूढ़ी औरत वाले किरदार की आवाज भी उन्होंने ही दी थी। अब उनकी मदिर आवाज़ में गाये गीत हमें जब भी सुनाई देंगे, याद आ जायेंगे बालू...

-रतन

कभी कभी मेरे दिल में..../ रतन भूषण

 चलते चलते.../ कभी कभी मेरे दिल में........


ऐसा मेरा मानना है कि जो भी लोग फ़िल्म संगीत को थोड़ा सा भी पसंद करते या सुनते होंगे, वे कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है... को जरूर चाहे अनचाहे गुनगुना लेते होंगे। ऐसा हो भी क्यों न? यह अनूठे बोल वाला गीत है ही इतना मधुरता लिए कि सहज ही लोगों की जुबान पर चढ़ जाता है। 

यह गीत फ़िल्म कभी कभी का है, जो 27 जनवरी 1976 को रिलीज हुई थीं। वैसे तो इस फ़िल्म के सभी गीत तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती... किशोर कुमार- लता मंगेशकर, मैं पल दो पल का शायर हूं... मुकेश, सुर्ख जोड़े की ये जगमगाहट... लता मंगेशकर, प्यार कर लिया तो क्या... किशोर कुमार, मेरे घर आई एक नन्ही परी... लता मंगेशकर, मैं हर एक पल का शायर हूं... मुकेश और तेरा फूलों जैसा रंग... किशोर कुमार-लता मंगेशकर बेहद सुरीले हैं, लेकिन गीत कभी कभी मेरे दिल में... फ़िल्म में तीन बार बजता है और तीनों बार अलग अलग अंदाज में। एक बार अमिताभ बच्चन की आवाज में, जो नज़्म है। एक बार लता मंगेशकर और मुकेश की आवाज़ में युगल गीत के रूप में और एक बार सिर्फ मुकेश की आवाज़ में। 

कभी कभी एक रूमानी फिल्म है। इसका निर्देशन और निर्माण यश चोपड़ा ने किया था और इसमें अमिताभ बच्चन, राखी, शशि कपूर, वहीदा रहमान, ऋषि कपूर, नीतू सिंह, सिमी गरेवाल, परीक्षित साहनी, इफ़्तिख़ार, देवेन वर्मा आदि कलाकारों ने काम किया था। इस फ़िल्म से विशेषकर खय्याम को उनकी संगीत रचनाओं के लिए ख्याति मिली। उन्हें संगीत के लिए, जबकि फिल्म के गीतकार साहिर लुधियानवी को कभी कभी मेरे दिल में... गीत के लिये और गीत कभी कभी... के लिए गायक मुकेश को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

यह फ़िल्म हर तरह से भव्य थी। यही वजह है कि लोगों ने इसे खूब पसंद किया। इसकी कहानी भी अनोखी थी। अमित मल्होत्रा कॉलेज में अपनी कविताओं में से एक को पढ़ता है, जहां वह सहपाठी पूजा से मिलता है। दोनों प्यार में पड़ते हैं, लेकिन पूजा के माता-पिता उसकी शादी एक वास्तुकार विजय खन्ना से करते हैं। अमित पिता के व्यवसाय में शामिल होता है। वह अंजलि से शादी करता है, जिसकी गुप्त रूप से पिंकी नाम की एक बेटी है, जो पूर्व वैवाहिक संबंध से है। वह कहीं और रहती है। अमित और अंजली की बेटी स्वीटी है। अगली पीढ़ी में पूजा और विजय का बेटा विकी है जो पिंकी से प्यार करता है। एक दिन पिंकी अपनी मां अंजलि को पहचान जान जाती है। अंजलि गुप्त रूप से बेटी पर अपना प्यार दिखाती है, लेकिन अमित सब जानते हुए अनजान बना रहता है, क्योंकि उस कभी में भी उसी का दिल दुखा था और इस कभी में भी उसी का दुखना था।

अब बात गीत कभी कभी... की, हम आज भी इस गीत को सुनकर मुग्ध होते हैं, जिसे शायर साहिर लुधियानवी ने बहुत पहले नज़्म और गीत के रूप में लिखा था। लेकिन हम जिस गीत को सुनते नहीं थकते हैं, उसमें आवाज़ है मुकेश और लता मंगेशकर की। पर सच यही है कि इस गीत को नए अंदाज में गवाया गया। संगीतकार खय्याम साहिर के इस गीत को बहुत पहले दो गायिकाओं से युगल गीत के रूप में गवा चुके थे। यह बात सन 1957 की है और इसमें तब आवाज़ थी गीता दत्त और सुधा मल्होत्रा की। इन दोनों ने गीत को अलग अंदाज में गाया था। सुधा मल्होत्रा इस बारे में बताती हैं, हां, यह गीत तब भी खय्याम साहब ने ही हमसे गवाया था, लेकिन मुझे उसकी धुन अब याद नहीं है। दरअसल उस फ़िल्म को चेतन आनंद बना रहे थे। जिस फ़िल्म के लिए यह गीत रिकॉर्ड हुआ था, वह किसी कारणवश नहीं बनीं, तो गीत खय्याम साहब के पास ही था। जब कभी कभी के संगीत के लिए यश चोपड़ा ने खय्याम साहब को चुना, तो उन्हें इस गीत की याद आ गयी। फ़िल्म के गीतकार भी साहिर ही थे और बोल भी वही, तो बात बन गयी। फिर फ़िल्म का शीर्षक भी यही तय हो गया यानी कभी कभी...। यह जो गीत आज सुना जा रहा है, धुन खय्याम साहब ने कमाल की बनाई है। लता मंगेशकर और मुकेश जी ने बहुत खूब गाया भी है।

लेकिन एक सवाल यह भी तो होता है कि जब सुधा थीं तो खय्याम साहब ने उनसे यह गीत क्यों नहीं गवाया? सुधा मल्होत्रा ने कहा, मेरी शादी 1960 में हो गयी थी और उसके बाद मैंने गाना छोड़ दिया था। मैं फिल्मी दुनिया से पूरी तरह दूर हो गई थी और यह सबको मालूम था। इसलिये मुझे नहीं याद किया गया। 

हालांकि राज कपूर के बहुत कहने पर सुधा मल्होत्रा ने  1982 में आयी उनकी फिल्म प्रेम रोग के लिए एक गीत अनवर के साथ लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में गाया था, जिसके बोल थे, ये प्यार था या कुछ और था, न तुझे पता न मुझे पता....। सच में, कभी कभी मेरे दिल में... गीत को पहले सुधा मलहोत्रा ने गाया था, यह न मुझे पता था, न ही आपको....!

-रतन

ईमानदारी क्या हैँ?/ अखिलेश श्रीवास्तव चमन

 जैसी दाई आप छिनार, वैसा जाने सब संसार

      ईमानदारी राष्ट्रीय अपराध है। ईमानदार लोग देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं और इस कारण राष्ट्रद्रोही हैं। न सिर्फ इतना ईमानदारी की प्रवृत्ति हमारी संस्कुति के भी विरूद्ध है। किसी कार्य के लिए उत्कोच लेने की परम्परा एक धर्मिक कृत्य है। गंगा मइया, यमुना मइया, शीतला मइया, सती मइया आदि आदि सभी देवियाॅं एक अदद रंगीन कपड़े का टुकड़ा चुनरी  और चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि कुछ श्रृगांर सामग्रियाॅं पा कर हमारे बिगड़े काम बनाने निकल पडती  हैं। महावीर हनुमान जी पाव, सवा पाव लड्डू पाते ही सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं। और शंकर भगवान तो इतने भोले हैं कि बस थोड़े भाॅंग, धतूरे और बेलपत्र देने से ही मदद के लिए तैयार हो जाते हैं। हमारे जीवन की गतिविधियों संचालित  करने वाले नव ग्रह भी अपनी पसंद की भेंट-पूजा ले कर मन वांछित काम करा देते हैं। देवी, देवताओं , ग्रहों, उपग्रहों को उत्कोच दे कर अपना  काम कराने के लिए हमारे यहाॅं पण्डों, पुजारियों, और पुरोहितों आदि के रूप में लाईसेंसधारी अधिकृत बिचैलियों की सुदृढ़ परम्परा चली आ रही है। ऐसे देवी देवताओं की संतान भारतवासियों द्वारा बगैर कुछ उत्कोच लिए किसी का काम कर देना न सिर्फ पाप है बल्कि अपनी धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन यानि की धर्म द्रोह  है। हमारे कथा नायक श्रीमान चंदी गुप्ता इस मत के प्रबल समर्थक थे। 

     'चन्द्र टरे, सूरज टरे टरे जगत ब्यवहार, रिश्वतखोरी का मगर टरे न अटल विचार' मंत्री महोदय चंदी गुप्ता का जीवन आदर्श था । वे अपने विभाग में समरसता और एकरूपता के पक्षधर थे। उनका मानना था कि नीचे से ले कर ऊपर तक हर अधिकारी और कर्मचारी को भ्रष्ट होना ही चाहिए। जो भ्रष्ट नहीं हैं वे सिस्टम के लिए खतरा हैं। इसलिए उनको इतना परेशान करो इतना परेशान करो कि वे भ्रष्ट बनने के लिए मजबूर हो जाये।  और यदि परेशान करने के बावजूद भी कोई भ्रष्ट नही होता है तो समझो वह विभाग के लिए कैंसर है। उसको निलंबित या यदि संभव हो तो बर्खास्त कर के सेवा से निकाल देना चाहिए ।

          नियम , कानून से कार्य करने वाले ईमानदार अधिकारियों से चंदी गुप्ता को सख्त नफरत थी और जो अधिकारी जितना अधिक भ्रष्ट था वह उनको उतना ही अधिक प्यारा था। जिस प्रकार मक्खियाँ गंदगी पर अपने आप मंडराने लगती हैं ठीक उसी तरह विभाग के महाभ्रष्ट अधिकारी चंदी गुप्ता के आसपास मंडराने लगे । अपने अधीनस्थ विभाग को चंदी गुप्ता अपनी जमींदारी, विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को अपनी रियाया तथा उनसे लगान की वसूली करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे। 

     विभाग की कार्य-प्रणाली तथा पोल-पट्टी जान चुकने के बाद चंदी गुप्ता ने धन उगाही के लिए एक विस्तृत कार्य-योजना बनायी। पंचतंत्र की कहानी जिसमें जंगल के जानवर शेर के भोजन के लिए प्रति दिन एक शिकार उसकी मांद में भेजने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं को फिर से दुहराया गया। हाॅंका लगा कर, ड़रा कर, धमका कर, बहला कर, फुसला कर, चाहे जैसे भी हो फॅंसा कर शिकार भेजने के लिए विभाग के कुछ चाटुकार अधिकारियों को क्षेत्रीय प्रतिनिधि बनाया गया। चंदी गुप्ता दूध की रखवाली बिल्ली से कराने के खतरे जानते थे इसलिए शिकार को दूहने और निचोड़ने के लिए उन्होंने दूबे नामधारी एक गैर विभागीय विश्वासपात्र को नियुक्त किया।

     मंत्री जी के लिए शिकारी कुत्ते की भूमिका निभाने वाले विभागाध्यक्ष हेमंत कुमार में विभागीय अधिकारियों, कर्मचारियों को भौंक कर ड़राने से ले कर नोचने, बकोटने, दाॅंत गड़ाने , भभोड़ने और बुरी तरह काट कर जान ले लेने तक की ताकत निहित थी। इन सभी लोगों ने मिल कर अपने विभागीय मंत्री चंदी गुप्ता के लिए खजाने का दरवाजा खोल दिया था। कायदे-कानून को ताक पर रख कर शोषण करने के नए-नए तरीके ईजाद किए जाने लगे थे। शिकार को जबरन घेर-घार कर कसाई के बाड़े में भेजा जाने लगा था। चंदी गुप्ता ने दूबे नामधारी जिस कसाई को नियुक्त कर रखा था वह शिकार को वह बेरहमी से हलाल करने लगा था। जल्दी ही इस अत्याचार से विभाग में त्राहि-त्राहि मच गई।

सविता भार्गव की कविता

 "सविता  भार्गव की कविता

-----=====≠========(((

मैं अँधेरे पर भरोसा करती हूँ

जो मुझे सहलाता है अज्ञात पंख से

और मैं काँपती पलकों में

सो जाती हूँ


मैं उजाले पर भरोसा करती हूँ

जो आँखें खोलते ही खिल उठता है

और मैं बहती चली जाती हूँ

उसकी तरफ


मैं अपने इस घर पर भरोसा करती हूँ

जिसमें मैं रहती हूँ सालों से

और जो बस गया है

मेरे भीतर


मैं अपने शहर की गलियों पर भरोसा करती हूँ

जो आपस में जुड़कर इधर से उधर मुड़ जाती हैं

और जहाँ ख़त्म होती है कोई गली

मुझे वहाँ मेरी धड़कन सुनाई पड़ती है


ऐ आदमी!

मुस्कुराते हुए जब तुम मुझमें खो जाते हो

मैं तुम पर भरोसा करती हूँ."

______

राजकमल प्रकाशन संस्थान से प्रकाशित कविता संग्रह ‘अपने आकाश में’ (२०१७) की कविताएँ पढ़ते हुए मैंने कवयित्री सविता भार्गव को जाना, इन कविताओं ने एकदम से वश में कर लिया. प्रेम, सौन्दर्य, स्त्रीत्व और प्रतिकार से बुनी इन कविताओं का अपना स्वर है जो किसी संगीत-संगत की तरह असर डालता है.


चकित हुआ यह देखकर कि इस बेहतरीन कवयित्री की कविताएँ डिजिटल माध्यम में कहीं हैं ही नहीं. उनसे कुछ नई कविताएँ समालोचन ने प्रकाशन के लिए मांगी थीं जो अब आपके समक्ष हैं.


सविता   भार्गव   की   कविताएँ    

https://samalochan.blogspot.com/2018/10/blog-post_23.html                     

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बुधवार, 27 जनवरी 2021

ताशकंद में हिंदी सम्मेलन 2012

 

Friday, 6 July 2012

पाँचवाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ताशकंद में सम्पन्न





ताशकंद। सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ और प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में (सृजनगाथा डॉट कॉम, निराला शिक्षण समिति, नागपुर और ओनजीसी के सहयोग से) पांचवा अन्तरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन 24 जून से 1 जूलाई तक सपलतापूर्वक संपन्न हुआ । मुख्य आयोजन उज़्बेकिस्तान की राजधानी ऐतिहासिक शहर ताशकंद के होटल पार्क तूरियान के भव्य सभागार में 26 जून, 2012 के दिन हुआ । यह उद्घाटन सत्र बुद्धिनाथ मिश्र, देहरादून के मुख्य आतिथ्य एवं प्रवासी साहित्यकार डॉ. रेशमी रामधोनी, मारीशस की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर श्री हरिसुमन बिष्ट, सचिव, हिंदी अकादमी,दिल्ली, डॉ. शभु बादल, सदस्य, साहित्य अकादमी, डॉ. पीयुष गुलेरी, पूर्व सदस्य, साहित्य अकादमी, कादम्बिनी से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार-सम्पादक डॉ. धनंजय सिंह, वागर्थ के सम्पादक व प्रतिभाशाली युवा कवि श्री एकांत श्रीवास्तव एवं निराला शिक्षण समिति, नागपुर के निदेशक डॉ. सूर्यकान्त ठाकुर, आयोजन के प्रमुख समन्यवयक डॉ. जयप्रकाश मानस विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचस्थ थे।
मुख्य अतिथि की आसंदी से वरिष्ठ गीतकार व राजभाषा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने वाले डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि संस्कृति की आवश्यकता की प्रतिपूर्ति करने वाली हिंदी भाषा का विस्तार विश्व व मानव कल्याण के लिये एक अमोघ अस्त्र बन रहा है। सभी को चुनौती दे रहा है। बाज़ार की सर्वमान्य एवं सर्वाधिक भाषा के रूप में हिंदी का जादू दुनिया के सिर चढ़ कर बोल रहा है। उन्होंने कहा कि हिंदी विश्व की सिरमौर भाषा बनने की ओर अग्रसर है। यह समारोह हिन्दी की विश्व-भाषा बनने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण कदम है। यह सिद्ध करता है कि आज हिन्दी विश्व-फलक पर सरकारी बैसाखियों के सहारे नहीं, अपने पांवों पर चलकर आगे बढ़ रही है। आज हिन्दी साहित्य केवल भारत में ही नहीं लिखा जा रहा है, बल्कि तमाम देशों में पूरी ऊर्जा से रचा जा रहा है। इस प्रकार के सम्मेलन उस विराट साहित्य को समग्र रूप में प्रस्तुत करेंगे और भारत से बाहर रहकर प्रतिकूल परिस्थितियों में सृजन करने वाले रचनाकारों का हौसला बढ़ाएंगे। उन्होंने ताशकंद में 1966 में हुए भारत-पाकिस्तान समझौता, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का स्मरण कराते हुए आव्हान किया है हमें उजबेकों से वह उपाय भी सीखना चाहिए,जिससे यह राष्ट्र अल्प अवधि में शत-प्रतिशत भ्रष्टाचार-विहीन और अपराध-मुक्त हो सका।
अध्यक्षीय उद्बोधन में मॉरीशस में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट, भारतीय अध्ययन शाला की प्रमुख डॉ. रेशमी रामधोनी ने कहा कि तकनीकी युग में उसी भाषा का अस्तित्व बना रहेगा जो मनुष्य की जरूरतों को पूरा करती हुई तकनीकी के साथ भी सह-अस्तित्व में रहेगी। हिंदी में अन्यान्य भाषाओं और बोलियों का महासागर बनने की असंदिग्ध क्षमता है, इसे समय भी सिद्ध करता आ रहा है।


3 रचनाकारों का सम्मान
सम्मेलन में नागपुर के युवा आलोचक और नागपुर विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ. प्रमोद शर्मा, को प्रथम निराला काव्य सम्मान प्रदान किया गया । पुरस्कार स्वरूप उन्हें 21,000 रुपये, प्रतीक चिन्ह आदि से अलंकृत किया गया । इसके अलावा संतोष श्रीवास्तव, मुम्बई को कथालेखन एवं अहफ़ाज़ रशीद, रायपुर को इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिये सृजनगाथा सम्मान-2012 से अलंकृत किया गया।
28 कृतियों का विमोचन
5 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में एक साथ 28 साहित्यिक कृतियों का विमोचन हुआ । ये कृतियाँ हैं - श्रीमती सुमन सारस्वत, मुंबई,कथा संग्रह–मादा, डॉ. देवमणि पांडेय, मुंबई, ग़ज़ल संग्रह-अपना तो मिले कई, श्री दिनेश पांचाल, उदयपुर-कथा संग्रह–बहुरूपिये लोग, सुमन अग्रवाल, चैन्नई–ग़ज़ल संग्रह–मुझको महसूस करके देख, रेखा अग्रवाल, चैन्नई–ग़ज़ल–यादों का सफ़र, श्री हेमचन्दर सकलानी,आगरा, यात्रा संस्मरण–विरासत की खोज, डॉ. जे. आर. सोनी, रायपुर, कविता–बस्तर की कविताएं, डॉ. सरोज गुप्ता, गुडगाँव,बाल कविता संग्रह-बाल बगिया, श्री देवकिशन राजपुरोहित, जयपुर–जीवनी–मीरा बाई और मेड़ता, श्री देवकिशन राजपुरोहित, जयपुर- राजस्थानी व्यंग्य–निवान, श्रीमती उमा बंसल,दिल्ली,कविता-कुछ सच कुछ सपने, डॉ. मुनीन्द्र सकलानी, देहरादून–निबंध संग्रह–अभिव्यक्ति, श्री सुनील जाधव,नांदेड,कहानी- मैं भी इंसान हूँ, श्री सुनील जाधव, नांदेड, कविता संग्रह–मैं बंजारा,श्री सुनील जाधव, नांदेड, नाटक–सच का एक टूकड़ा, श्री मिर्जा हासम बेग, नांदेड-दक्षिनी साहित्यकार मुल्ला वजही , श्री मिर्जा हासम बेग, नांदेड,शोध धारा, डॉ. दामोदर मोरे, पुणे, कविता संग्रह– पद्य-रश्मि व सदियों के बहते जख्म, डॉ. सुजाता चौधऱी, भागलपुर–बापू और स्त्री/महात्मा का अध्यात्म/गांधी की नैतिकता, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, कानपुर,काव्य – ओमाय तथा उपमन्यु परीक्षा, श्री भगवान सिंह भास्कर, सिवान, विविध-कसौटी, आईना बोल उठा, वृक्ष कोटर से, श्री शिव प्रकाश जैन, उदयपुर, जीवनी–युगपुरुष महाराणा प्रताप ।
6 वां सम्मेलन संयुक्त राज्य अमीरात में
समारोह के प्रारंभ में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के समन्वयक, प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के निदेशक व सृजनगाथा डॉट कॉम के संपादक डॉ. जयप्रकाश मानस ने स्वागत वक्तव्य देते हुए बताया कि अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में इस वर्ष से एक चयनित साहित्यकार को निराला शिक्षण समिति, नागपुर की ओर से 21 हजार रुपयेवाला निराला काव्य-सम्मान शुरु किया जा रहा है जिसकी नगद राशि अगले वर्ष से 50,000 रूपये की जा रही है । उन्होंने पिछले चारों आयोजनों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि अगला यानी 6 वां अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन आगामी फरवरी 2013 में संयुक्त अरब अमीरात के दुबई, आबूधाबी, शारजाह में होगा ।


उक्त अवसर पर जयपुर की प्रख्यात कोरियोग्राफर सुश्री चित्रा जांगिड ने कत्थक नृत्य की प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया। 6 घंटे तक चलनेवाले मैराथनी उद्घाटन सत्र का सफलतापूर्वक संचालन प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अशोक सिंघई ने किया । आभार माना सृजन-सम्मान के उपाध्यक्ष एच. एस. ठाकुर ने ।
अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का गठन
सृजन-सम्मान द्वारा आयोजित होनेवाले अंतरराष्ट्रीय आयोजन के निरंतर संचालन, समन्वय और लोकव्यापकीकरण के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन’ गठन का प्रस्ताव पारित करते हुए डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र को सर्वसम्मति से प्रथम अध्यक्ष और डॉ. जयप्रकाश मानस को समन्वयक के रूप में मनोनीत किया गया । सम्मेलन के संरक्षक हैं - डॉ. गंगाप्रसाद विमल, खगेन्द्र ठाकुर, विभूति नारायण राय, विश्वरंजन, सत्यनारायण शर्मा और धनंजय सिंह ।
अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के अन्य पदाधिकारी हैं- उपाध्यक्ष- रेशमी रामधुनी (मारीशस), एकांत श्रीवास्तव (पश्चिम बंगाल), हरिसुमन विष्ट (दिल्ली प्रदेश), मीठेश निर्मोही (राजस्थान), श्रीमती संतोष श्रीवास्तव (महाराष्ट्र), डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा (विदर्भ), अशोक सिंघई (छत्तीसगढ़), सुमन अग्रवाल (तमिलनाडू), झारखंड (डॉ. प्रमोदिनी हांसदाक), शरद जायसवाल (मध्यप्रदेश), दिवाकर भट्ट (उत्तराखंड), पीयुष गुलेरी (हिमाचल प्रदेश), डॉ. महेश दिवाकर (उत्तरप्रदेश), डॉ. कामराज सिंधू (कुरुक्षेत्र), रंजन मल्होत्रा (हरियाणा), डॉ. भगवान सिंह भास्कर (बिहार) । मनोनीत राज्य समन्यवक हैं – लालित्य ललित (दिल्ली प्रदेश), आशा पांडेय ओझा (राजस्थान), डॉ. अभिज्ञात (पं. बंगाल), डॉ. देवमणि पांडेय (महाराष्ट्र), सुनील जाधव (विदर्भ), डॉ. सुधीर शर्मा (छत्तीसगढ़), डॉ. खिरोधर यादव (झारखंड), डॉ. सविता मोहन (उत्तराखंड), डॉ. ओमप्रकाश सिंह (उत्तरप्रदेश), दिनेश माली (उड़ीसा), डॉ. अशोक गौतम (हिमाचल प्रदेश), डॉ. जयशकंर बाबू (आंध्रप्रदेश), रवीन्द्र प्रभात (उत्तप्रदेश) आदि । विदेश से समन्यक हैं- पूर्णमा वर्मन (युएई), चांद हदियाबादी (डेनमार्क), प्राण शर्मा (ब्रिटेन), सुधा ओम धींगरा(अमेरिका), कुमुद अधिकारी (नेपाल), आभा मोंढे (जर्मनी) आदि । इस नवगठित संस्था के नेतृत्व में राज्य सरकारों, केन्द्र सरकार से ऐसे सम्मेलनों के लिए मिलनेवाले संभावित सहयोग भी प्राप्त किया जा सकेगा । इस समिति से दूर दराज तथा प्रवासी देशों में कार्य करनेवाले साहित्यिक संगठनों और इसके सदस्य साहित्यकारों को इस दिशा जोड़ने जोड़ा जायेगा । ताकि प्रतिवर्ष संबधित देश के किसी एक प्रतिष्ठित साहित्यकार या हिंदीसेवी या हिंदी की संस्था को सम्मानित किया जा सके । प्रतिवर्ष संबंधित देश के कवियों की एक सामूहिक कृति का प्रकाशन कर उनका रिकोग्नाईजेशन भारतीय भूमि से हो सके । इससे प्रवासी देशों में रचे जा रहे साहित्य के मुख्यधारा के मूल्याँकन में भी मदद मिलेगी । सम्मेलन में राजस्थान के प्रतिष्ठित साहित्यकारों की मांग पर राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में समादृत करने के प्रस्ताव को नैतिक समर्थन दिया गया ।
आलोचना और उत्तर औपनिवेशक समय पर विमर्श
सम्मेलन का दूसरा सत्र 'आलोचना और उत्तर औपनिवेशक समय' पर केन्द्रित रहा। सत्र में हिन्दी आलोचना और वर्तमान समय पर चर्चा करते हुए वक्ताओं ने हिन्दी आलोचना के कई महत्वपूर्ण आयामों को स्पर्श किया। सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादमी के सदस्य, प्रसंग के संपादक व वरिष्ठ साहित्यकार शंभु बादल जी ने की। सत्र के प्रारम्भ में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए आलोचक प्रो; प्रमोद शर्मा ने कहा कि आज की आलोचना को रचनाओं के साथ आज के उत्तर औपनिवेशक समय को भी समझना होगा। आज की रचनाएं सामाजिक जटिलताओं और बदलते समय के साथ और जटिल होती चली जा रही हैं। विशिष्ट अतिथि डॉ मुनीन्द्र सकलानी ने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि आलोचना सिर्फ रचना को स्थापित करने या निरस्त करने के लिए नहीं होनी चाहिए बल्कि इसे पूरी ईमानदारी से साहित्य को एक दिशा देने का काम भी करना चाहिए। डॉ. प्रमोदनी हंसदा ने कहा कि आज आलोचना को उन रचनाकारों की रचनाओं पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो केन्द्र से दूर, किसी मठ के समर्थन के बिना साहित्यिक रचनाएं दे रहे हैं। सत्र के विशिष्ट अतिथि डॉ.धनंजय सिंह ने कहा कि आज जब लेखक और पाठक के बीच जो एक खाई बनती जा रही है। उसे अच्छी आलोचना के द्वारा ही पाटा जा सकता है। किसी भी दौर में उस समय की आलोचना को दरनिनार करके साहित्य को नहीं बचाया जा सकता। सत्राध्यक्ष शंभू बादल ने कहा कि साहित्य की दुनिया विचार की दुनिया है। इसमें सहमति-असहमति स्वाभाविक है, पर इससे वैचारिक प्रवाह बना रहता है और इसे किसी भी समय में रुकना नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि आलोचना का काम है जो हमारी परम्परा में श्रेष्ठ है उसे बचना और आगे की पीढ़ी के लिए उसे सहेजना। आलोचना सत्र का संचालन कहानीकार विवेक मिश्र ने किया। उन्होंने अपनी टिपण्णियों में हिन्दी आलोचना के इतिहास और उसके उत्तर औपनिवेशक समय तक के सफर को श्रोताओं के समक्ष रखा। सत्र में सम्मेलन के सभी सहभागियों के साथ। वरिष्ठ साहित्यकार बुद्धिनाथ मिश्र, वागर्थ के संपादक एकांत श्रीवास्तव, सृजनगाथा के संपादक जय प्रकाश मानस तथा हिन्दी अकादमी के सचिव हरिसुमन बिष्ट जी आदि सभागार में उपस्थित थे।
भाषा और संस्कृति एक दूसरे के रचयिता
भाषा खुद संस्कृति की इकाई है और संस्कृति का रचाव और विस्तार्य भाषा में ही होता है। भाषा का संरक्षण अपने मूल में संस्कृति का ही संरक्षण है । भाषा की समाप्ति का एक अर्थ संस्कृति की समाप्ति भी है । लुप्त प्रायः भाषाओं को बचाना एक विशिष्ट संस्कृति को बचाना है । इसी तथ्यों को केंद्र में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन में विमर्श का खास सत्र रखा गया था - भाषा की संस्कृति और संस्कृति की भाषा । इस सत्र के वक्ता के रूप में भारत के विभिन्न राज्यों के विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग प्रमुखों का चयन किया गया था । सत्र की अध्यक्षता की हिंदी के डॉ. महेश दिवाकर ने और विशिष्ट अतिथि थे – रेशमी रामधोनी, दिवाकर भट्ट, डॉ. केसरीलाल वर्मा । सत्र के वक्ताओं में प्रमुख थे - डॉ, ओमप्रकाश सिंह, डॉ. कामराज सिंधू, डॉ. चंदा डिसूजा, डॉ. सुधीर शर्मा, डॉ. जंगबहादुर पांडेय डॉ. खिरोधर यादव, डॉ. गीता सिंह, प्रभाकुमारी, डॉ. महासिंह पुनिया, डॉ. मीना कौल, डॉ. मिर्जा हासम बेग, डॉ. सुनीति आचार्य, राजेश्वर आनदेव आदि ने अपने-अपने आलेखों का पाठ किया । सत्र का संचालन किया डॉ. नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक और युवा कवि लालित्य ललित ने ।
ताशकन्द में अंतरराष्ट्रीय कथा पाठ
कहानी सत्र में भारत के विभिन्न प्रान्तों से आए कथाकारों की बारह कहानियों का वाचन हुआ। कार्यक्रम 11 बजे आरंभ हुआ । अध्यक्ष हरिसुमन बिष्ट, डॉ. मुक्ता तथा मेजर रतन जांगिड़ थे। अतिथियों के स्वागत के पश्चात कहानी सत्र आरंभ हुआ। सर्व प्रथम उत्तराखंड के जन जीवन पर आधारित हरिसुमन बिष्ट ने अपनी कहानी ‘कौसानी मेँ जैली फिश’ सुनाई । इस बेहद मार्मिक कहानी के बाद मीठेश निर्मोही ने दिल को छू लेने वाली कहानी ‘बंधन’ सुनाई, दिनेश पांचाल ने ‘मारकणिया’, सुमन सारस्वत ने ‘तिलचट्टा’, डॉ सुजाता चौधरी ने ‘चुन्नू’, डॉ. मुक्ता ने ‘आईने के पार’, विवेक मिश्र ने ‘गुब्बारा’, डॉ मृदुला झा ने ‘जन्मदिन’, प्रत्यूष गुलेरी ने ‘भेड़’, मेजर रतन जांगिड़ ने ‘भूख’, रमेश खत्री ने चोरी तथा हेमचंद सकलानी ने ‘हल्कू’ सुनाकर श्रोताओ के दिल पर गहरा असर छोडा। तीन घंटे तक चले इस सत्र का संचालन अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन की महाराष्ट्र राज्य की उपाध्यक्षा व कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने किया।
50 से अधिक कवियों ने किया कविता पाठ
पांचवे अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का मुख्य आकर्षण था उसका अंतिम सत्र जिसकी अध्यक्षता की वरिष्ठ कवि डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने और विशिष्ट अथिति थे – वागर्थ के संपादक एकांत श्रीवास्तव तथा प्रगतिशील लेखक संघ राजस्थान के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ कवि मीठेश निर्मोही । इस सत्र में शंभु बादल, डॉ. पीयूष गुलेरी, डॉ. ओमप्रकाश सिंह, लालित्य ललित, सुमन अग्रवाल, डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी, रंजन मल्होत्रा, उमा बंसल, मनोज कुमार मनोज, तिलकराज मलिक, वंदना दुबे, डॉ. अर्जुन सिसौदिया, मीना कौल, शरद जायसवाल, डॉ. सविता मोहन, संजीव ठाकुर, सुनील जाधव, अरविंद मिश्रा, राजश्री झा, देवी प्रसाद चौरसिया, रामकुमार वर्मा, रवीन्द्र उपाध्याय, डॉ. प्रियंका सोनी, डॉ. जे. आर. सोनी, रेखा अग्रवाल, तुलसी दास चोपड़ा, श्रीमती चोपड़ा, सरोज गुप्ता, रामकुमार वर्मा, सुषमा शुक्ला, डॉ. अमरेन्द्र नाथ चौधरी, प्रवीण गोधेजा, सेवाशंकर अग्रवाल, विमला भाटिया, आदि ने भिन्न शिल्प, छंद और सरोकारों की कवितायें सुनायीं । कई घंटो तक चले इस सत्र का संयुक्त संचालन किया शायर मुमताज और डॉ. देवमणि पांडेय ने । उक्त अवसर पर भारत के 137 साहित्यकार, लेखक, शिक्षक, पत्रकार, ब्लागर्स सहित ताशकंद शहर से बड़ी संख्या में साहित्यिक श्रोता उपस्थित थे ।
24 जून से 1 जुलाई, 2012 तक इस 7 दिवसीय आयोजन में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के समन्वयक डॉ. मानस, विकास मल्होत्रा, श्री एच.एस. ठाकुर, शनि चावला, मुमताज, अशोक सिंघई, रामशरण टंडन, कुमेश जैन, आदि की विशिष्ट भूमिका रही। सम्मेलन में सभी भारतीय दल के सदस्यों ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री स्कवायर जाकर सामूहिक रूप से उन्हें श्रद्धांजलि दी और समरकंद सहित उज्बेकिस्तान के महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्मरकों का अध्ययन-पर्यटन किया ।
एच. एस. ठाकुर

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