मंगलवार, 5 जनवरी 2021

रतन वर्मा का सृजन सरोकार / विजय केसरी

  (6 जनवरी, कथाकार रतन वर्मा के 71 वें जन्मदिन पर विशेष)

'सामाजिकता की सीख देती रतन वर्मा की सहृदयता'शीर्षक से यह आलेख हिंदी दैनिक 'आवाज' के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित है।रतन 

भाई रतन वर्मा जी 71 वें वर्ष में प्रवेश कर गए हैं। जन्मदिन पर मेरी ओर से ढेर सारी बधाइयां।

 आपके घर में हमेशा सुख, समृद्धि और शांति बनी रहे। यही मैं परम पिता परमेश्वर से कामना करता हूं।


झारखंड के जाने-माने साहित्यकार, कथाकार, कवि रतन वर्मा 71 वें वर्ष में प्रवेश कर गए हैं। वे बीते चार दशकों से  लगातार हिंदी की सेवा करते चले आ रहे हैं। अब तक उनकी दो सौ अधिक कहानियां, छः से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय दूरदर्शन पर धारावाहिक भी टेलीकास्ट हो चुके हैं। उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। उनकी एक लोकप्रिय कहानी 'नेटुआ'  राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूम मचा चुकी है। 'नेटुआ' कहानी से 'नेटुआ कर्म बड़ा दुखदाई' उपन्यास के रूप में रूपांतरण, उसकी बढ़ती लोकप्रियता ही है। अब तक नेटुआ कहानी पर सौ से अधिक  नाट्य मंचन हो चुके हैैं। ओलंपियाड में भी नेटुआ का सफल मंचन हो चुका है। आए दिन नेटुआ पर कहीं न कहीं नाट्य मंचन होता ही रहता है। इन तमाम उपलब्धियों के बाद भी रतन वर्मा की सहृदयता उसी रूप में बनी रहती है। यह अपने आप में बड़ी बात है।

 रतन वर्मा जी को से मेरा परिचय तीस वर्ष पुराना है। मैं जैसे-जैसे उनके नजदीक पहुंचा, उनकी सहृदयता और सक्रियता देखकर बहुत कुछ सीखा। लोग साठवें वर्ष में पहुंचते ही स्वयं को रिटायर्ड समझने लगते हैं। लेकिन रतन वर्मा के साथ यह बात लागू नहीं होती है। जब वे चालीस साल के रहे तब मैंने जो सक्रियता उनमें देखी, आज भी   वही सक्रियता देख रहा हूं। वे  निरंतर साहित्य के लिए कुछ ना कुछ करते रहते हैं। वे हमेशा  साहित्यानुरागियों, लेखकों, कवियों और आलोचकों से दूरभाष पर बातें करते रहते हैं। वे हमेशा अपने स्वजनों से हाल चाल लेते रहते हैं। मैंने देखा है कि रतन वर्मा अपने मिलने जुलने वालों के सुख दुख में हमेशा साथ खड़े रहते हैं। अगर कोई थोड़ी भी परेशानी में हो तो वे एक संबल के रूप में पीछे  खड़े नजर आते हैं।

  हाल  ही में उनकी एक पुस्तक (कहानी संग्रह) 'भूख भूख और भूख' प्रकाशित हुई है। यह पुस्तक प्रकाशन के साथ ही धूम मचा दी है। इस  पुस्तक की  एक कहानी 'गुलबिया'शीर्षक से दर्ज है। यह कहानी एक औरत के दर्द और संघर्ष को लेकर आगे बढ़ती है। वहीं दूसरी कहानी 'दस्तक' मनुष्य के शारीरिक भूख की मनोदशा को उसी रूप में प्रस्तुत करती नजर आती है। रतन वर्मा की कहानियां हमेशा समय से संवाद करती नजर आती है। रतन वर्मा जी की कहानियां हर उम्र के लोगों के लिहाज से लिखी गई हो, ऐसा जान पड़ता है। । उन्होंने बच्चों के लिए भी काफी कहानियां लिखी है। उनकी एक कहानी 'आइसक्रीम' जो बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। इस कहानी में एक आइसक्रीम  बेचने वाले का बेटा कई दिनों से पैसे जमा कर आइसक्रीम खरीदने के लिए अपने पिता को  पैसे बढ़ाता है। यह देख उनके पिता हतप्रभ रह जाते हैं। उनकी आंखों से आंसू छलक ने पड़ते हैं। फिर अपने बेटे को आइसक्रीम देकर गले से लगा लेता है। 'गफूर का बगीचा" भी एक दर्द भरी कहानी है, जिसमें पति के देहावसान के बाद उस विधवा औरत को यह अमरूद का बगीचा आर्थिक रूप से बहुत साथ देता है। देता है। उनकी हालिया पुस्तक "नेटुआ कर्म बड़ा दुखदाई" नेटुआ नृत्य पर आधारित है। अब नेटुआ नृत्य  समाप्ति की ओर है। इस नृत्य में एक लड़का , स्त्री का रूप धारण कर शादी विवाहह व अन्य खुशी के अवसरों पर अपने नृत्य के माध्यम से लोगों का मनोरंजन  करता  है। विलुप्त होती नेटुआ नृत्य परंपरा और उसकी पीड़ा को रतन वर्मा जी ने बखूबी  प्रस्तुत कर श्रेष्ठ कार्य किया है। आज नेटुआ नृत्य प्रथा समाप्ति की ओर है। इसे ध्यान में रखकर ही वर्मा जी ने कहानी से  उपन्यास के रूप में विस्तार दिया है। फलस्वरूप आज राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेटुआ नाटक का मंचन हो रहा है। लोग नृत्य देखकर  इस पुरानी प्रथा से परिचित हो रहे हैैं।

   मैं जब भी उनसे मिला, साहित्य में क्या कुछ लिखा जा रहा है ? मैं क्या लिख रहा हूं?  अन्य साहित्यिक  मित्रगण क्या लिख रहे हैं ? जैसी  बातों पर उनसे खुलकर बातचीत होती रहती है। उन्हें हमेशा साहित्य की साधना में लीन पाता हूं। 

   आज जबकि फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल साइट्स बहुत लोकप्रिय के हो गए हैं। वे फेसबुक पर भी सक्रिय देखे जाते हैं । वे फेसबुक पर अपनी बातों के साथ गीत, गजल और कविताओं के साथ भी नजर आते हैं। बतौर एक लेखक के रूप में वे जिन मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों को स्थापित करते हैं, उनका व्यवहारिक पक्ष भी इन्हीं आदर्शों पर चलता नजर आता है । उनकी सामाजिक सक्रियता देखते बनती है । उन्होंने अब तक हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बहुत कुछ गढ़ा है । इन सबके बावजूद उनकी सामाजिक सक्रियता भी उसी रफ्तार से आगे बढ़ती चली जा रही है। वे हजारीबाग और बाहर होने वाली साहित्यिक गोष्ठियों में भी अपनी बातों को रखते हुए नजर आते हैं।  देश में आई विपदा पर वे लोगों से धन इकट्ठा करते नजर आते हैं। वे अध्यात्मिक क्षेत्र में हो रहे अनुष्ठानों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वे सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ आंदोलन करते भी नजर आते हैं । इन तमाम खुबियों के साथ रतन वर्मा की सहृदयता सबको भाती है। उनकी सहृदय व सहजता सामाजिकता की सीख देती है।

    आज की बदली परिस्थिति में लोग एक दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं। वे लोगों के करीब जा रहे हैं।  लोग उनके करीब पहुंच रहे हैं।  वे अपने आलोचकों से भी उसी  सहजता और प्रेम से मिलते हैं। वे अपने आलोचकों को भी ऊंचा पीढ़ा देते हैं ।  मैंने उनमें कभी भी बड़े छोटे का कोई भेद नहीं देखा । वे अपने से छोटे से भी प्रेम करते नजर आते हैं। एक बार की बात है, उनके यहां का एक रंग मिस्त्री घर में रंगाई का काम कर रहा था। मिस्त्री ने  रंग जरूर दिया था , लेकिन रंगाई अच्छा नहीं हुआ था। इसके बावजूद  रतन वर्मा ने उस मिस्त्री को खाना खिलाया ।चाय पिलाई। काम समाप्ति के बाद मजदूरी के अलावा बीस अधिक दिए।  जब मैंने उनसे कहा कि रंग मिस्त्री ने  काम अच्छा नहीं किया है। तब उन्होंने कहा कि मिस्त्री जितना जानता था, पूरी ईमानदारी से का काम किया। उनकी बात सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया था। रतन वर्मा की जगह अगर कोई दूसरा आदमी होता तो शायद उसकी मजदूरी काट लेता।  ऐसा नहीं कर उन्होंने अपनी सहृदयता का परिचय दिया था। उन्हें  एक पत्रकार साथी मिथिलेश सिंह जी की बीमार पड़ने की खबर आई थी। सुबह-सुबह जब मैं  उनसे मिलने पहुंचा तब  उन्होंने मिथिलेश जी की तबीयत खराब होने बात बताई। वे तुरंत मिथिलेश जी को देखना चाहते थे। हम दोनों मिथिलेश जी को देखने कुणाल नर्सिंग होम चले गए।मैं थोड़ी देर रहकर वहां से वापस आ गया था। रतन वर्मा जी  वहीं रुके रह गए। मिथिलेश जी के होश में आने के बाद ही वे वहां से गए थे। एक वाकिया का जिक्र करना और जरूरी समझता हूं ।  प्रख्यात साहित्यकार भारत यायावर के हजारीबाग के सदर अस्पताल में भर्ती होने की सूचना आई थी। यह खबर सुनकर रतन वर्मा जी ने मुझे दूरभाष पर इसकी सूचना दी थी। हम दोनों बिना समय गवाएं भारत यायावर जी से मिलने के लिए सदर अस्पताल चले गए। यायावर जी से मिलकर और बेहतर इलाज के लिए हम दोनों ने उन्हें  क्षितिज हॉस्पिटल में भर्ती करवाया। एक सप्ताह के बाद भारत जी पूरी तरह ठीक हो गए। भारत जी के ठीक होने की खबर सुनकर रतन वर्मा जी की चेहरे की खुशी देखते बनती थी। इस तरह एक नहीं अनेक ऐसी घटनाएं हैं, जहां रतन वर्मा सबसे पहले पहुंचने वाले व्यक्ति होते हैं। उनकी सहृदयता सामाजिकता की सीख देती है। आज लोग मतलब के लिए मित्र बनाते हैं। मतलब के लिए प्रेम दिखाते हैं। अगर फायदा ना मिला तो मिलना जुलना तक बंद कर देते हैं। इन तमाम गिरावटों के बावजूद रतन वर्मा  की सहजता व सहृदयता सामाजिकता की सीख देती है।

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