यहां गोस्वामी जी द्वारा हनुमानजी के लिए "महाबीर" और"हनुमाना" दो शब्दों का प्रयोग क्यों?
"महाबीर" बिनवउं हनुमाना।
राम जासु जस आपु बखाना।।
गोस्वामी जी महाराज कहते हैं कि मैं उन अद्वितीय महावीर हनुमानजी की विनती करता हूं जिनके यश और कीर्ति की स्वयं परमात्मा श्रीराम जी ही वर्णन करते हैं।
देखिए यहां गोस्वामी जी महाराज "महाबीर" और "हनुमाना" शब्द के बीच में "बिनवउं" शब्द का प्रयोग करते हैं जबकि महावीर और हनुमान दोनों पवनपुत्र हनुमानजी के ही नाम हैं। यदि यहां कुछ खास उद्देश्य न होता तो हनुमानजी के लिए एक ही नाम का प्रयोग करते या दोनों नामों को एक साथ प्रयोग करते।
जैसे- बिनवउं महाबीर हनुमाना। राम जासु जस आपु बखाना।।
और इसे पढ़ने में थोड़ा सरल भी होता क्योंकि...
"महाबीर बिनवउं हनुमाना" पढ़ने में एक धक्का जैसा अनुभव होता है। तो चलिए यथामति अवलोकन करने की कोशिश करते हैं...
गोस्वामी जी का कहने का आशय है कि...
मैं उन महावीर की विनती करता हूं जो...
"महाबीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी"।।
इनमें ऐसी सामर्थ्य है कि ये हमारी कुमति के निवारण करेंगे और हमें सुमति प्रदान करेंगे। इन्हीं के शिष्य विभीषण जी (तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।) रावण से कहते हैं कि... "सुमति" "कुमति" सब के उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं।। हे स्वामी! पुराणों ,शास्त्रों का यह कथन है कि प्रायः सभी में अच्छे विचार और बुरे विचार का समावेश होता ही है। किन्तु जो अच्छे विचार (सुमति) को महत्व देता है वह सुखी संपन्न रहता है और जो बुरे विचारों (कुमति) को महत्व देता है वह विपत्ति मोल लेता है... जहां सुमति तहं संपत्ति नाना। जहां कुमति तहं बिपति निदाना।।
विभीषण जी के कहने का तात्पर्य है कि - हे लंकेश! वैसे आप भी महावीर हैं और हनुमानजी भी महावीर हैं लेकिन दोनों में यही अंतर है कि हनुमानजी ने सुमति को महत्व देते हैं... (जामवंत को गुरु मान लेते हैं... उचित सिखावन दीजहु मोही। वे पूछ कर भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और रावण को बिना पूछे भी उचित शिक्षा मिलने लगा तो शिक्षा देने वाले का ही अपमान करने लगा..."मिला हमहिं कपि गुरु बड़ ग्यानी"!!!)
अतः गोस्वामी जी "महाबीर बिनवउं हनुमाना" में सर्वप्रथम
महाबीर शब्द का प्रयोग कर यह कहना चाहते हैं कि-
हे महावीर जी! आप हमारे अंदर के कुमति अर्थात गलत सोच, गलत विचार का निवारण करें और हमारे अंदर अच्छे सोच, अच्छे विचार का समावेश करें ।
क्योंकि मैं ...करन चहउं रघुपति गुन गाहा।
मैं श्रीराम चरित का वर्णन करना चाहता हूं और दिक्कत ये है कि मेरी मति छोटी है और श्रीराम चरित अथाह सागर है... लघु मति मोरि चरित अवगाहा।।
अतः आप मेरे....
" कुमति निवार"!,
(हमारे दुर्गुणों को दूर करें)
और
"सुमति के संगी"!!
(हमें सद्गुणों के साथी बना दें, संगी अर्थात साथी)
हे... महाबीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
बस इसी उद्देश्य के लिए...
"महाबीर बिनवउं" हनुमाना।
( "हनुमाना" शब्द का यथामति विवेचन अगले अंक में)
🙏🙏🙏
सीताराम जय सीताराम
सीताराम जय सीताराम
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