बुधवार, 27 जनवरी 2021

लक्ष्मी के गुण और स्त्री

 What are the best qualities of Indian Women:


भारतीय समाज में अक्सर स्त्री वर्ग के लिए लक्ष्मी शब्द का प्रयोग किया जाता है। जब घर में नवजात बच्ची पैदा होती है तो उसे लक्ष्मी आगमन का शुभ संकेत माना जाता है। जब घर में नई बहू का गृह प्रवेश करवाया जाता है तो उसे घर की लक्ष्मी यानी गृहलक्ष्मी कहा जाता है। क्या वास्तव में महिलाएं मां लक्ष्मी का रुप होती हैं ? शास्त्रों से जानें महिलाओं के कौन से गुण उन्हें बनाते हैं 'लक्ष्मी'


श्री : श्री मतलब खूबसूरती। यहां गीता में इसका अर्थ शारीरिक खूबसूरती नहीं है, जिसे महिलाएं क्रीम, पाऊडर, लिपस्टिक आदि लगाकर बनाए रखती हैं। इस तरह की खूबसूरती कृत्रिम है। श्री प्राकृतिक खूबसूरती है, जिसे संस्कृत में ‘वर्चास’ कहा जाता है। चेहरे पर वर्चास सही मार्ग अपनाकर लाया जाता है। जो मानसिक तौर पर शुद्ध और पवित्र, ज्ञानवान, तपस्वी (अपने मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य को खराब किए बिना जीवन की समस्याओं का सामना करने की हिम्मत रखने वाली), परमात्मा के प्रति समर्पित व उसमें पूर्ण विश्वास रखने वाली, बेदाग चरित्र वाली, विनम्र, अपने कर्तव्यों व जिम्मेदारियों के प्रति सतर्क, नि:स्वार्थ, अच्छी तरह से अनुशासित व घर पर अनुशासन बनाए रखने वाली, सभी पारिवारिक सदस्यों से प्रेम प्राप्त करने वाली, आदरणीय तथा अपने गुणों के कारण सम्मान प्राप्त करने वाली, अच्छी सलाह देने के कारण जिसे सुना जाता हो, भौतिक आनंदों की बजाय आध्यात्मिक मूल्य देने वाली, मनोविज्ञान को जानने वाली व अपने बच्चों का इस तरह से पालन-पोषण करने वाली ताकि वे मानसिक, वित्तीय के साथ-साथ नैतिक क्षेत्र में लगातार प्रगति करें, सबकी सहायता व दूसरों का कल्याण करने वाली हो, के पास प्राकृतिक खूबसूरती तथा चेहरे पर चमक होगी। उसकी यह खूबसूरती इतनी अधिक प्रभावशाली होगी कि एक सामान्य व्यक्ति उसका सामना करने पर हत्प्रभ रह जाएगा। उसके चेहरे पर आध्यात्मिक शक्ति की चमक उसे एक दैवीय व्यक्ति बना देती है। उसके चेहरे की चमक उसकी पूर्ण संतुष्टि, बल तथा विनम्रता का परिणाम होती है। शारीरिक खूबसूरती धीरे-धीरे मंद होती जाती है जबकि आध्यात्मिक खूबसूरती उसकी उम्र के बढ़ने के साथ और भी बढ़ती जाती है।



बाक : जो महिला चाहती है कि परमात्मा उससे प्रेम करें, उसे खुद को इस तरह विकसित करना होगा कि जिससे भी वह मिले, चाहे एक मिनट के लिए, उसके व्यवहार, आचरण तथा रवैये से प्रेम करने लगे। वेदों के अनुसार, उसे ‘यद्वदामी मधुमत तद्वदामी’ की आदत बनानी चाहिए, अर्थात् ‘जो भी बोलूंगी, उसमें शहद घुला होगा’।


जिह्वा किसी व्यक्ति को मारने या जीवित रखने में सक्षम होती है। इसमें हड्डी नहीं होती और अत्यंत लचकदार होती है। इसका इस्तेमाल किसी पर गुस्सा निकालने के साथ-साथ ढांढस बंधाने के लिए भी किया जा सकता है। जिनके मन में बुरी भावनाएं भरी होती हैं, जैसे कि नफरत, गुस्सा, ईर्षा व घमंड आदि, वे कभी भी अच्छे शब्द नहीं बोल सकते। ये बुरी भावनाएं उन मधुमक्खियों की तरह हैं, जो केवल डंक मारकर दर्द पहुंचाती हैं। अच्छी भावनाएं, जो मीठे शब्दों का आधार हैं, उन मधुमक्खियों की तरह हैं, जो सभी फूलों से शहद इकट्ठा करती हैं और उसे मनुष्यों के लिए संग्रह करती हैं। यह मन ही है जिसमें बुरी अथवा अच्छी भावनाएं होती हैं, अत: अपने मन को इस तरह से प्रशिक्षित करें कि यह बुरी भावनाओं से मुक्त हो।



स्मृति : स्मृति अर्थात याद्दाश्त। हमें पता होना चाहिए कि क्या याद रखना है और क्या नहीं। आमतौर पर लोग कहते हैं कि चोट पहुंचाने वाले शब्दों तथा घटनाओं को भुला पाना कठिन होता है। मगर कुछ पल के लिए सोचें कि उन्हें याद रखने का क्या लाभ है। वे बार-बार आपको चोट पहुंचाएंगे तथा आपके मन को कमजोर करेंगे। आपमें मानसिक बीमारियां तथा कमजोरियां विकसित हो जाएंगी, जैसे  कि उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रैशर), अवसाद (डिप्रैशन) तथा रक्ताल्पता (अनीमिया) आदि। यदि आप इन्हें अपने मन में संग्रह करेंगी तो ये आपको मार देंगी। इसलिए, अपने ही भले के लिए ऐसी चीजें याद न रखें जो आपको आघात पहुंचाती हैं। अच्छे अध्यापकों, मित्रों, ग्रंथों तथा संतों के अच्छे शब्दों को याद रखें। वे आपको प्रेरणा तथा कठिन समय में मार्गदर्शन देंगे। भगवान वाल्मीकि जी के अनुसार, भगवान श्री राम जी के सर्वश्रेष्ठ गुणों में से एक यह था कि वे सैंकड़ों बुरी चीजें याद नहीं रखते थे लेकिन एक भी अच्छी चीज नहीं भूलते थे, जो उनके साथ की गई हों। ऐसे ही गुणों ने उन्हें महान बनाया।


मेधा : ‘बुद्धि’ एक ऐसी साधारण प्रवृत्ति है जो जानवरों तक में पाई जाती है। बुद्धि से श्रेष्ठ है ‘धी’, जो ज्ञान, कर्म, चिंतन, समीक्षा तथा अनुभव का परिणाम है, मगर फिर भी मेधा श्रेष्ठ है। यह एक ऐसी समझ है जो किसी व्यक्ति को ‘खुद’ को समझने में सक्षम बनाती है और जब उसे अपनी खुद की अनुभूति हो जाती है, तो वह अन्य के मन को समझने में भी सक्षम हो जाती/जाता है। मनुष्यों से समझदारी पूर्ण तरीके से निपटने के लिए, इस तरह की समझ अत्यंत आवश्यक है। मेधा यह समझने में मदद करती है कि सभी आत्माएं तथा बच्चे एक ही पिता के हैं और हमें भेदभाव नहीं करना चाहिए। मगर दूसरों की अनुभूति करने से पूर्व अपनी खुद की अनुभूति होनी चाहिए और मेधा इसमें हमारी मदद करती है।




धृति : अर्थात सहनशीलता, बहादुरी, हिम्मत, उत्साह आदि। जिसके पास यह गुण होता है, वह कभी भी कोई काम हड़बड़ी या जल्दबाजी में नहीं करती या करता। वह धैर्यपूर्वक तथा ठंडे दिमाग से काम लेती है। वह कोई भी निर्णय जल्दबाजी में नहीं लेती, बोलने से पहले अच्छी तरह से विचार करती है। किसी विशेष व्यक्ति, समय, स्थिति, सौदों तथा मामलों के लिए आपको उचित शब्दों के चयन बारे पता होना चाहिए। एक ही तरह की भावना को कई तरह के शब्दों व लय के साथ व्यक्त किया जा सकता है। ऐसा केवल तभी किया जा सकता है, जब व्यक्ति को इन सभी चीजों बारे अच्छी जानकारी हो। घरों में अधिकतर समस्याएं अधीरता के परिणामस्वरूप होती हैं। हम हमेशा जल्दबाजी में होते हैं। परमात्मा हर किसी को उसके कर्म के अनुसार देता है। हमें परमात्मा पर विश्वास होना चाहिए तथा सभी चीजों का समाधान उन पर छोड़ देना चाहिए।



क्षमा : अर्थात सहनशीलता तथा माफ कर देना। जब कोई हमारे पास आता है और बेवकूफी भरी बातें करता है तथा हम उसके दुर्वयवहार पर प्रतिक्रिया नहीं देते तो हम क्या करते हैं। हम उसे सहन करते हैं। हम बिना उत्तेजित हुए शांतिपूर्वक उसके शब्दों को सुनते हैं और जब वह रुकती या रुकता है तो बस इतना ही कह देते हैं-‘‘ठीक है, तुम्हारी अच्छी सलाह के लिए धन्यवाद मुझे बहुत अच्छी जानकारी  मिली। परमात्मा तुम्हारा भला करे।’’


उत्तर हमें ठंडा तथा शांत रखता है और हम कभी भी उसके शिकार नहीं बनते। ग्रंथ कहते हैं कि जिस व्यक्ति के पास क्षमा का हथियार होता है, वह कभी भी शत्रु द्वारा घायल नहीं होता। यह सभी मानसिक बीमारियों के लिए सर्वश्रेष्ठ बचाव दवा है। जब हम सहन करते हैं, वास्तव में हम माफ करते हैं।


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हेमन्त किगरं

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