"सविता भार्गव की कविता
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मैं अँधेरे पर भरोसा करती हूँ
जो मुझे सहलाता है अज्ञात पंख से
और मैं काँपती पलकों में
सो जाती हूँ
मैं उजाले पर भरोसा करती हूँ
जो आँखें खोलते ही खिल उठता है
और मैं बहती चली जाती हूँ
उसकी तरफ
मैं अपने इस घर पर भरोसा करती हूँ
जिसमें मैं रहती हूँ सालों से
और जो बस गया है
मेरे भीतर
मैं अपने शहर की गलियों पर भरोसा करती हूँ
जो आपस में जुड़कर इधर से उधर मुड़ जाती हैं
और जहाँ ख़त्म होती है कोई गली
मुझे वहाँ मेरी धड़कन सुनाई पड़ती है
ऐ आदमी!
मुस्कुराते हुए जब तुम मुझमें खो जाते हो
मैं तुम पर भरोसा करती हूँ."
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राजकमल प्रकाशन संस्थान से प्रकाशित कविता संग्रह ‘अपने आकाश में’ (२०१७) की कविताएँ पढ़ते हुए मैंने कवयित्री सविता भार्गव को जाना, इन कविताओं ने एकदम से वश में कर लिया. प्रेम, सौन्दर्य, स्त्रीत्व और प्रतिकार से बुनी इन कविताओं का अपना स्वर है जो किसी संगीत-संगत की तरह असर डालता है.
चकित हुआ यह देखकर कि इस बेहतरीन कवयित्री की कविताएँ डिजिटल माध्यम में कहीं हैं ही नहीं. उनसे कुछ नई कविताएँ समालोचन ने प्रकाशन के लिए मांगी थीं जो अब आपके समक्ष हैं.
सविता भार्गव की कविताएँ
https://samalochan.blogspot.com/2018/10/blog-post_23.html
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