*श्रीरामचरितमानस* ☀️/ *सप्तम सोपान*/ उत्तरकाण्ड*
*दोहा सं० ५५*
*(चौपाई सं० ६ से ९ एवं दोहा)*
*गौरि गिरा सुनि सरल सुहाई ।*
*बोले सिव सादर सुख पाई ।।६।।*
अर्थ – पार्वतीजी की सरल, सुन्दर वाणी सुनकर शिवजी सुख पाकर आदर के साथ बोले –
*धन्य सती पावन मति तोरी ।*
*रघुपति चरन प्रीति नहिं थोरी ।।७।।*
*सुनहु परम पुनीत इतिहासा ।*
*जो सुनि सकल लोक भ्रम नासा ।।८।।*
*उपजइ राम चरन बिस्वासा ।*
*भव निधि तर नर बिनहिं प्रयासा ।।९।।*
अर्थ –हे सती ! तुम धन्य हो, तुम्हारी बुद्धि अत्यन्त पवित्र है । श्रीरघुनाथजी के चरणों में तुम्हारा कम प्रेम नहीं है (अर्थात् अत्यधिक प्रेम है)। अब वह परम पवित्र इतिहास सुनो, जिसे सुनने से सारे लोक के भ्रम का नाश हो जाता है तथा श्रीरामजी के चरणों में विश्वास उत्पन्न होता है और मनुष्य बिना ही परिश्रम संसार रूपी समुद्र से तर जाता है ।
👉 _*'धन्य सती...'*_ – श्रीपार्वतीजी के पूर्व जन्म में सती-शरीर में मति अपावनी थी इसीलिये तब श्रीरामजी को मनुष्य मान रही थीं । अब रामचरण में प्रेम देखकर महादेव उसी मती को 'पावनि' कहते हैं, जिससे सतीजी का पूर्व पश्चाताप मिट जाय । सती-तन में मोह हुआ था, इसीलिए अब 'पावनि' कहने में वही नाम दिया । सती सम्बोधन करने का एक कारण यह भी है कि श्रीशिवजी इस कथा को भगवती के पूर्व-जन्म (सती-अवतार) के प्रसंग से प्रारम्भ करेंगे, यथा – _*'प्रथम दक्ष गृह तव अवतारा । सती नाम तब रहा तुम्हारा ।।'*_ अतः सती नाम से ही सम्बोधन किया ।
।। दोहा ।।
*ऐसिअ प्रस्न बिहंगपति कीन्हि काग सन जाइ।*
*सो सब सादर कहिहउँ, सुनहु उमा मन लाई ।।५५।।*
अर्थ – पक्षीराज गरुड़जी ने भी जाकर काकभुशुण्डिजी से प्रायः ऐसे ही प्रश्न किये थे । हे उमा ! मैं वह सब आदरसहित कहूँगा, तुम मन लगाकर सुनो ।
👉 *'ऐसिअ'* अर्थात जो प्रश्न तुमने मुझसे किये हैं इसी प्रकार के प्रश्न गरुड़जी ने भुशुण्डिजी से किये थे । अर्थात् सभी (पांँच) प्रश्न जो यहांँ किये वे तो गरुड़ ने किये नहीं हैं , अतएव _*'ऐसिअ'*_ का भाव यह है कि मुख्य प्रश्न तुम्हारे यही हैं कि (१) काक शरीर में भक्ति कैसे मिली ? (२) यदि काक शरीर पीछे का है तो रामायण परायण आदि गुण सम्पन्न को काक शरीर कैसे मिला ? तथा (३) काग ने यह चरित्र कहांँ पाया ? जो उत्तर उन्होंने दिया था वही हम तुमसे कहेंगे । ये तीनों प्रश्न श्रीपार्वतीजी ने इस प्रकार किये थे –
(१) _*राम परायन ग्यान रत, गुनागार मति धीर ।*_
_*नाथ कहहु केहि कारन, पायउ काक सरीर ।।*_
(२) _*सो हरिभगति काग किमि पाई ।*_
(३) _*यह प्रभु चरित पवित्र सुहावा ।*_
_*कहहु कृपाल काग कहँ पावा ।।*_
_*'ऐसिअ'*_ तीन प्रश्न गरुड़जी ने काकभुशुण्डिजी से (आगे) किये हैं –
(१) _*तुम्ह सर्वज्ञ तज्ञ तम पारा ।...'*_
(२) _*'कारन कलन देह यह पाई ।*_
_*तात सकल मोहि कहहु बुझाई ।।'*_
(३) _*'रामचरित सर सुंदर स्वामी ।*_
_*पायेउ कहाँ कहहु नभगामी ।।'*_
**************************************
🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
**************************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें