विजयादशमी, अर्थात अश्वेनमाघ की पहली दशमी पर जब चंद्रमा भद्रपद में
चला जाता है तो नवरात्रि के बाद दशहरा आता है और उस समय पापियों का नाश करने वाली मा
दुर्गा की प्रचंड पूजा के बाद उन्हें अपने लोक भेजने के लिए उनकी प्रतिमा का विजर्सन
कर दिया जाता है। विजया दशमी युद्व में विजय का पर्व है और इसका इतिहास बुराई पर अच्छाई
की जीत के तौर पर सब जानते हैं। भारत सरकार भी जिसने एक हलफनामा सर्वोच्च न्यायालय
को दे कर वापस लिया था और इसमें कहा गया था कि भगवान राम के होने का कोई ऐतिहासिक अस्तित्व
नहीं है।
बंगाल के समाज में दुर्गा पूजा कुछ अतिरिक्त
हिस्सों में रामचरित्र मानस के सुदंर कांड का नौ दिन पाठ किया जाता है। इस पाठ में
कल्पना है कि रावण के जो दस सिर बताएं गए हैं वे असल में मानसिक संताप और कुरीतियां
हैं। ये कुरीतियां वासना, क्रोध,
मोह, लोभ, मद,र् ईष्या, मानस, बुद्वि,
चित्त और अहंकार है। इन संदर्भों को अगर इतिहास से निकाल कर समकालीन
युग में लाया जाए और विजयादशमी में इन सब पर बुद्वि, मन,
चित्त को छोड़ कर बाकी सबसे मुक्ति पा ली जाए तो दशहरा सबसे आदर्श
होगा।
यह संयोग हो भी सकता है और नहीं भी कि जनरल वी
के सिंह ने दशहरे के दो दिन पहले देश को याद दिलाया कि चीन और पाकिस्तान दोनों मिल
कर भारत को घेर रहे हैं और दोनों का निशाना कश्मीर तो है ही, चीन ने तो अरुणाचल प्रदेश में भी
युद्व की तैयारियां कर ली है। महायोद्वा शिवाजी ने सबसे पहले दशहरे को युद्व का पर्व
बनाया था और वे शिव और दुर्गा दोनों की पूजा कर के ही हर युद्व पर निकलते थे।
भारत का समाज और भारत की सेना अपने स्वभाव और
संस्कार दोनों में धर्म निरपेक्ष है और चीन मे तो खैर धर्म माना ही नहीं जाता। पाकिस्तान
स्थापना से आज तक इस्लामी गणतंत्र हैं इसलिए दशहरे का महत्व उन्हें पता होगा इसकी कल्पना
भी नहीं की जा सकती। जिस नेपाल को चीन आज कल हवाई अड्डों और रेलवे लाइनों से बांधने
में लगा हुआ है वहां का सबसे बड़ा उत्सव ही विजयादशमी है।
जनरल वी के सिंह बहुत जुझारू रहे हैं और पाकिस्तान
को चारों लड़ाईयों में निपटाने में बहुत आगे रहे हैं। वैसे भी वे उस क्षत्रिय समाज के
हैं जहां विजयादशमी के एक दिन पहले बाकायदा शस्त्र पूजन किया जाता है। आदर्श यह है
कि यह शस्त्र आक्रमण के लिए नहीं, आत्मरक्षा के लिए ही इस्तेमाल होने चाहिए। यही शास्त्रो में लिखा है। पाप
के अंत और पापियों के बध पर शास्त्रों में कोई प्रतिबंध नहीं हैं और चीन और पाकिस्तान
मिल कर भारत के साथ जिस महापाप की तैयारी कर रहे हैं उसमें भारत को सिर्फ मर्यादा पुरुषोत्तम
बने रहने से काम नहीं चलने वाला।
लेह के आगे मनाली रोड से चीन सीमा की ओर एक 22 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर तैनात एक
पायलट मेजर का फोन आया। फोन तो विजयादशमी की शुभकामनाओं के लिए था लेकिन मेजर अनुराग
सिंह ने यह भी बताया कि वे बगैर दूरबीन लगाए चीन की सीमा में बन रही सड़कें और तैनात
हो रही तोपें देख सकते हैं। चीन दरअसल अफगानिस्तान तक जाने के लिए रेल मार्ग की योजना
बना चुका है और भूतपूर्व सोवियत संघ के जो देश हैं उन सबसे भी रेल लाइन बिछाने की अनुमति
मांग चुका है। समझौता होने वाला है। अगर यह अनुमति मिल गई तो यह रेलवे लाइन यूरोप होते
हुए अमेरिका की सीमा तक पहुंच जाएगी।
भारत को न अमेरिका का भरोसा है न चीन का। यह
सही है कि चीन की सेना विश्व की सबसे बड़ी सेना है। मगर फिर चीन की आबादी भी दुनिया
में सबसे ज्यादा है। अच्छी बात यह है कि चीन की ज्यादातर सेना आंतरिक विरोधाभासों से
निपटने के लिए तैयार की गई है किंतु इससे हमे आश्वस्त होने की जरूरत नहीं है। दुनिया
में सिर्फ चीन के पास सबसे लंबी दूरी तक वार करने वाले प्रक्षेपास्त्र है। बीजिंग से
न्यूयॉर्क तक मार की जा सकती है। सीमा पर हमारी तैयारियां भी सौभाग्य से अब कम नहीं
है लेकिन अगर कोई युद्व हुआ तो इसका लाभ किसे मिलेगा?
अरुणाचल सीमा के पास की सड़कें, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के पार
रेलवे लाइने और जमीन पर कब्जा चीन के जाने माने कारनामे है। उसकी रेल भी अरुणाचल और
सिक्किम सीमा तक पहुंचने वाली है। उधर चीन ने तो अरुणाचल सीमा के एकदम करीब न्यांग्ची
शहर तक रेलवे स्टेशन बना लिया है मगर भारत अभी तक सिक्किम के गंगटोक और अरुणाचल के
ईटानगर को नहीं जोड़ पाया है। काराकोरम राजमार्ग पर भी चीन हावी है और यह जगह तथाकथित
वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास है।
पाकिस्तान में हसन अब्दाल यानी इस्लामाबाद से
चालीस किलोमीटर दूर तक चीन की सड़के बन गई है और जाहिर है कि ये सड़के पर्यटकों के लिए
नहीं बनाई जा रही हैं। भारत को चारो तरफ से घेरा जा रहा है और हम कितने भी महाबली हो, एक साथ चीन की जकड़ में आने वाले
म्यामांर, बांग्लादेश, पाकिस्तान,
नेपाल और मालदीव से आने वाली आग का मुकाबला नहीं कर सकते। चीन भारत
को हरा कर उसका विलय नहीं करना चाहेगा। कश्मीर वह तकनीकी रूप से पाकिस्तान को सौंपेगा
मगर उसके सैनिक अड्डे यहीं बने रहेंगे और बनते रहेंगे।
इस विजयादशमी पर समकालीन संदर्भ में हमे हम पर
बुरी नजर रखने वालों के अहंकार, मद,र् ईष्या और हिंसा वाले आननों को नष्ट करने
का संकल्प लेना पड़ेगा। सिर्फ मां दुर्गा की सात्विक आराधना हमें यह नहीं सिखाती कि
हम विजयादशमी को अपने अनेक उत्सवों में से एक मान ले और रावण दहन करने के साथ साथ घर
बैठ कर दीवाली पर ताश की गड्डियां और बोतलें खोलने का इंतजार करने लगे।
इस संकल्प में यह भी शामिल होना अनिवार्य है
कि हम अपनी भारतीयता को फिर से क्षेत्रों,
भाषाओं, जातियों और धर्मों के आधार पर परिभाषित
करने की कोशिश नहीं करें। हमारे लोकतंत्र में बहुत शक्ति है लेकिन इस लोकतंत्र के बहुत
सारे रावणों का दहन करने का संकल्प भी हमें इस अवसर पर करना पड़ेगा। चीन पाकिस्तान या
जिसकी भी बुरी नजर हम पर हैं उन्हे इस विजयादशमी पर संदेश देना है कि प्रार्थना नहीं,
अब रण्ा होगा, संग्राम बहुत भीषण होगा। आप
सबको इन संदर्भो के साथ विजयादशमी की शुभकामनाएं और साथ में यह भी सूचना कि लंका अभी
तक चीन के जाल में नहीं फंसा है।
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