शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

माटी का चितेरा / शीला पांडे

 । माटी का चितेरा ।।


हर नमी सिंकती गयी है 

आंच पर फुल्का बनी है 


धूल बोई ज़िन्दगी में

खिल उठें कचनार कोई

पर्वतों की लालियों पर

साझेदारी, पार कोई


पर कहाँ कब हो सका यह

जड़, तने, पत्ते लरजते

हल की जोती हर हराई

नई पिंड उल्का बनी है


कण पसीने की न जाने

कैसी ये तासीर पाई

बीज पोषे लहलहाये

ज़िन्दगी नकसीर पाई


जोतता हल अपनी जिनगी

स्वेद में 'घर' बह रहे हैं

कौन रोके धार को, जो

काल भी गुल का बनी हैं 


गुल भी हैं सब खार पहने

बागबां सौदागरों सा

मेड़ खाता खेत सारा

ऊँघता है अजगरों सा


लीलता शिशु और सैनिक,..........

पेड़ सारे 'हल' बने हैं

टांगते नोकों पे फल के

हक़ मिले कुल का, ठनी है 


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                     -------------शीला पांडे

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