#समर्पण_और_अहंकार
पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर लटक रहा नारियल रोज नीचे नदी मेँ पड़े पत्थर पर हंसता और कहता।
" तुम्हारी तकदीर मेँ भी बस एक जगह पड़े रह कर, नदी की धाराओँ के प्रवाह को सहन करना ही लिखा है, देखना एक दिन यूं ही पड़े पड़े घिस जाओगे।
मुझे देखो कैसी शान से उपर बैठा हूं? पत्थर रोज उसकी अहंकार भरी बातोँ को अनसुना कर देता।
समय बीता एक दिन वही पत्थर घिस घिस कर गोल हो गया और विष्णु प्रतीक शालिग्राम के रूप मेँ जाकर, एक मन्दिर मेँ प्रतिष्ठित हो गया ।
एक दिन वही नारियल उन शालिग्राम जी की पूजन सामग्री के रूप मेँ मन्दिर मेँ लाया गया।
शालिग्राम ने नारियल को पहचानते हुए कहा " भाई . देखो घिस घिस कर परिष्कृत होने वाले ही प्रभु के प्रताप से, इस स्थिति को पहुँचते हैँ।
सबके आदर का पात्र भी बनते है, जबकि अहंकार के मतवाले अपने ही दभं के डसने से नीचे आ गिरते हैँ।
तुम जो कल आसमान मे थे, आज से मेरे आगे टूट कर, कल से सड़ने भी लगोगे, पर मेरा अस्तित्व अब कायम रहेगा।
*भगवान की द्रष्टि मेँ मूल्य.. समर्पण का है ...अहंकार का नहीं।*
यथा चतुर्भि: कनकं परीक्ष्यते निघर्षणच्छेदनतापताडनौः।
तथा चतुर्भि: पुरुष परीक्ष्यते त्यागेन शिलेन गुणेन कर्मणा ॥
जैसे सोने की परख घिसना, तोडना, जलाना और पीटना, चार प्रकार से होती है, उसी प्रकार मनुष्य की परख त्याग, शील, गुण, कर्म इन चार प्रकार से होती है।
सभ्य बनें सज्जन कहलाएं।
दक्षिणे लक्ष्मणों यस्य वामे तु जनकात्मजा
पुरतो मारुतिर्यष्य तम् वन्दे रघुनन्दनम्।
🙏जय श्री सीताराम🙏
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