प्रस्तुति -कृष्ण मेहता: *मन्त्र विज्ञान*
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{{{अजपा गायत्री और विकार मुक्ति }}}
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तीन तल हुए—एक वाणी में प्रकट हो,
एक विचार में प्रकट हो,
एक विचार के नीचे अचेतन में हो।
ऋषि कहते हैं, उसके नीचे भी एक तल है। अचेतन में भी होता है, तो भी उसमें आकृति और रूप होता है।
उसके भी नीचे एक तल है, महाअचेतन का कहें, जहां उसमें रूप और आकृति भी नहीं होती। वह अरूप होता है। जैसे एक बादल आकाश में भटक रहा है। अभी वर्षा नहीं हुई। ऐसा एक कोई अज्ञात तल पर भीतर कोई संभावित,पोटेंशियल विचार घूम रहा है ।
वह अचेतन में आकर अंकुरित होगा,
चेतन में आकर प्रकट होगा,
वाणी में आकर अभिव्यक्त हो जाएगा। ऐसे चार तल हैं।
गायत्री उस तल पर उपयोग की है जो पहला तल है, सबसे नीचे। उस तल पर "अजपा" का प्रवेश है।
तो जप का नियम है। अगर कोई भी जप शुरू करें—समझें कि राम—राम जप शुरू करते हैं, या ओम, कोई भी जप शुरू करते हैं; या अल्लाह, कोई भी जप शुरू करते है—तो पहले उसे वाणी से शुरू करें। पहले कहें, राम, राम; जोर से कहें। फिर जब यह इतना सहज हो जाए कि करना न पड़े और होने लगे, इसमें कोई एफर्ट न रह जाए पीछे, प्रयत्न न रह जाए,यह होने लगे; जैसे श्वास चलती है, ऐसा हो जाए कि राम, राम चलता ही रहे, तो फिर ओंठ बंद कर लें।
फिर उसको भीतर चलने दें। फिर मुख से न बोलें राम, राम; मन मे चलने दे राम, राम।
फिर इतना इसका अभ्यास हो जाए कि उसमें भी प्रयत्न न करना पड़े, तब इसे वहां से भी छोड़ दें, तब यह और नीचे 'डूब जाएगा।
और अचेतन में चलने लगेगा—राम,राम। आपको भी पता न चलेगा कि चल रहा है, और चलता रहेगा। फिर वहां से भी गिरा दिए जाने की विधियां हैं और तब वह अजपा में गिर जाता है। फिर वहां राम, राम भी नहीं चलता। फिर राम का भाव ही रह जाता है—जस्ट क्लाउडी, एक बादल की तरह छा जाता है। जैसे पहाड़ पर कभी बादल बैठ जाता है धुआ—धुआ, ऐसा भीतर प्राणों के गहरे में अरूप छा जाता है।
उसको कहा है ऋषि ने, अजपा।
और जब अजपा हो जाए कोई मंत्र, तब वह गायत्री बन गया। अन्यथा वह गायत्री नहीं है।
और क्या है इस अजपा का उपयोग ???
इस अजपा से सिद्ध क्या होगा ??? इससे सिद्ध होगा, विकार— मुक्ति।
विकारदंडो ध्येय: इस अजपा का लक्ष्य है विकार से मुक्ति।
यह बहुत अदभुत कीमिया है, केमेस्ट्री है इसकी।
मंत्र शास्त्र का अपना पूरा रसायन है।
मंत्र शास्त्र यह कहता है कि अगर कोई भी मंत्र का उपयोग अजपा तक चला जाए,तो आपके चित्त से कामवासना क्षीण हो जाएगी, सब विकार गिर जाएंगे। क्योंकि जो व्यक्ति अपने अंतिम अचेतन तल तक पहुंचने में समर्थ हो गया, उसको फिर कोई चीज विकारग्रस्त नहीं कर सकती। क्योंकि सब विकार ऊपर—ऊपर हैं, भीतर तो निर्विकार बैठा हुआ है। हमें उसका पता नहीं है,इसलिए हम विकार से उलझे रहते हैं।
कोई भी मंत्र गायत्री बन जाता है,जब अजपा हो जाए। यही इस सूत्र का अर्थ है अजपागायत्री विकारदंडो ध्येय:।
मन का निरोध ही उनकी झोली है।
वे जो संन्यासी हैं, उनके कंधे पर एक ही बात टंगी हुई है चौबीस घंटे—मन का निरोध, मन से मुक्ति, मन के पार हो जाना। चौबीस घंटे उनके कंधे पर है।
आपने एक शब्द सुना होगा,खानाबदोश। यह बहुत बढ़िया शब्द है। इसका मतलब होता है, जिनका मकान अपने कंधे पर है। खाना—बदोश। खाना का मतलब होता है मकान—दवाखाना—खाना यानी मकान। दोश का मतलब होता है कंधा,बदोश का मतलब होता है, कंधे के ऊपर। जो अपने कंधे पर ही अपना मकान लिए हुए हैं, उनको खानाबदोश कहते हैं—घूमक्कडू लोग, जिनका कोई मकान नहीं है, कंधे पर ही मकान है।
संन्यासी भी अपने कंधे पर एक चीज ही लिए चलता है चौबीस घंटे—मन का निरोध। वही उसकी धारा है सतत श्वास—श्वास की, मन के पार कैसे जाऊं ??? क्योंकि मनातीत है सत्य। मन के पार कैसे जाऊं ???
क्योंकि मनातीत है अमृत। मन के पार कैसे जाऊं ???
क्योंकि मनातीत है प्रभु।
🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞
⛅ *दिनांक 24 जनवरी 2021*
⛅ *दिन - रविवार*
⛅ *विक्रम संवत - 2077*
⛅ *शक संवत - 1942*
⛅ *अयन - उत्तरायण*
⛅ *ऋतु - शिशिर*
⛅ *मास - पौष*
⛅ *पक्ष - शुक्ल*
⛅ *तिथि - एकादशी रात्रि 10:57 तक तत्पश्चात द्वादशी*
⛅ *नक्षत्र - रोहिणी रात्रि 12:00 तक तत्पश्चात मॄगशिरा*
⛅ *योग - ब्रह्म रात्रि 10:30 तक तत्पश्चात इन्द्र*
⛅ *राहुकाल - शाम 05:01 से शाम 06:24 तक*
⛅ *सूर्योदय - 07:19*
⛅ *सूर्यास्त - 18:22*
⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*
⛅ *व्रत पर्व विवरण - पुत्रदा एकादशी*
💥 *विशेष - हर एकादशी को श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से घर में सुख शांति बनी रहती है lराम रामेति रामेति । रमे रामे मनोरमे ।। सहस्त्र नाम त तुल्यं । राम नाम वरानने ।।*
💥 *आज एकादशी के दिन इस मंत्र के पाठ से विष्णु सहस्रनाम के जप के समान पुण्य प्राप्त होता है l*
💥 *एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।*
💥 *एकादशी को चावल व साबूदाना खाना वर्जित है | एकादशी को शिम्बी (सेम) ना खाएं अन्यथा पुत्र का नाश होता है।*
💥 *जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं, उनके पाप नष्ट हो जाते हैं।*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *आर्थिक परेशानी या कर्जा हो तो* 🌷
➡ *26 जनवरी 2021 मंगलवार को भौम प्रदोष योग है ।*
🙏🏻 *किसी को आर्थिक परेशानी या कर्जा हो तो भौम प्रदोष योग हो, उस दिन शाम को सूर्य अस्त के समय घर के आसपास कोई शिवजी का मंदिर हो तो जाए और ५ बत्ती वाला दीपक जलाये और थोड़ी देर जप करें :*
👉🏻 *ये मंत्र बोले :–*
🌷 *ॐ भौमाय नमः*
🌷 *ॐ मंगलाय नमः*
🌷 *ॐ भुजाय नमः*
🌷 *ॐ रुन्ह्र्ताय नमः*
🌷 *ॐ भूमिपुत्राय नमः*
🌷 *ॐ अंगारकाय नमः*
👉🏻 *और हर मंगलवार को ये मंगल की स्तुति करें:-*
🌷 *धरणी गर्भ संभूतं विद्युत् कांति समप्रभम |*
*कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगलम प्रणमाम्यहम ||*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *पुत्रदा एकादशी* 🌷
🙏🏻 *पुत्रदा एकादशी ( पुत्र की इच्छा से व्रत करनेवाला पुत्र पाकर स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है | सब पापों को हरनेवाले इस व्रत का माहात्म्य पढ़ने व सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है | )*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🌷 *कर्ज-निवारक कुंजी भौम प्रदोष व्रत* 🌷
🙏🏻 *त्रयोदशी को मंगलवार उसे भौम प्रदोष कहते हैं ....इस दिन नमक, मिर्च नहीं खाना चाहिये, इससे जल्दी फायदा होता है | मंगलदेव ऋणहर्ता देव हैं। इस दिन संध्या के समय यदि भगवान भोलेनाथ का पूजन करें तो भोलेनाथ की, गुरु की कृपा से हम जल्दी ही कर्ज से मुक्त हो सकते हैं। इस दैवी सहायता के साथ थोड़ा स्वयं भी पुरुषार्थ करें। पूजा करते समय यह मंत्र बोलें –*
🌷 *मृत्युंजयमहादेव त्राहिमां शरणागतम्।* *जन्ममृत्युजराव्याधिपीड़ितः कर्मबन्धनः।।*
🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞
🙏🍀🌻🌹🌸💐🍁🌷🌺🙏
[1/24, 12:30] Morni कृष्ण मेहता: *शनिदेव और राजा विक्रमादित्य की कथा।*
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एक बार सबसे ज्यादा श्रेष्ठ कौन है को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद होने लगा विवाद जब बढ़ गया तब सभी देवता देवराज इन्द्र के पास पहुंचे और पुछा की देवराज बताइए हम सभी देवगणों सबसे ज्यादा श्रेष्ठ कौन है . उनकी बात सुनकर देवराज भी चिंता में पड़ गए की इनको क्या उत्तर दूं. फिर उन्होंने ने कहा पृथ्वीलोक में उज्जैनी नमक नगरी है, वहा के रजा विक्रमादित्य जो कोई न्याय करने में बहुत ज्ञानी हैं वो दूध का दूध और पानी का पानी तुरंत कर देते हैं आप उनके पास जाइये वो आपके शंका का समाधान कर देंगे।
सभी देवता देवराज इन्द्र की बात मानकर विक्रमादित्य के पास पहुचे और उनको अपनी बात बताई , तो विक्रमादित्य ने अलग-अलग धातुओं सोना,तम्बा, कांस्य, चंडी आदि के आसन बनवाए ओर सभी को एक के बाद एक रखने को कहा और सभी देवताओं को उनपर बैठने को कहा उसके बाद राजा ने कहा फैसला होगया जो सबसे आगे बैठे हैं वो सबसे ज्यादा श्रेष्ठ हैं.
इस हिसाब से शनिदेव सबसे पीछे बैठे थे, राजा की ये बात सुनकर शनिदेव बहुत ही क्रोधित हुए और रजा को बोला तुमने मेरा घोर अपमान किया है जिसका दंड तुम्हे भुगतना परेगा,
उसके बाद सभी देवता वहा से चले गए. लेकिन शनिदेव अपने अपमान को भूल नहीं पाए थे. और वो रजा विक्रमदित्य को दंड देना चाहते थे.
एक बार शनिदेव घोड़े के व्यापारी का रूप धर कर राजा के पास पहुचे. राजा को घोडा बहुत पसंद आया और उन्होंने वो घोडा खरीद लिया फिर जब वो उसपर सवार हुए तो घोडा तेजी से भागा और राजा को जंगल में गिरा कर भाग गया . विक्रमादित्य जंगल में अकेलाभूखे प्यासे भटक रहा था भटकते भटकते राजा एक नगर में पंहुचा वहा जब एक सेठ ने राजा की ये हालत देखि तो उसे राजा पर बहुत दया आया और अपने’घर में’शरण दिया उस दिन शेठ को अपने व्यापर में काफी मुनाफा हुआ . तो उसके लगा ये मेरे कि ये मेरे लिए बहुत भाग्यशाली है, फिर वो उसे अपने घर लेकर गया.
सेठ के घर में एक सोने का हार खूंटी से लटकी हुई थी सेठ विक्रमादित्य को घर में अकेला छोर कर थोड़ी देर के लिए बाहर गया इस बिच खूटी सोने के हार को निगल गयी. सेठ जब वापस आया तो सोने के हार को न पाकर बहुत क्रोधित हुआ . उसे लगा की विक्रमादित्य ने हार’चुरा लिया . वो उसे लेकर उस नगर के रजा पास गया और सारी बात बताई. राजा ने विक्रमादित्य से पूछा की ये सच है तो विक्रमादित्य ने बताया की’ वो सोने की हार खूँटी निगल गयी जिसपर राजा को भरोसा नहीं हुआ और राजा ने विक्रमादित्य के हाथ-पैर कट देने की सजा सुनाई.
फिर विक्रमादित्य के हाथ पैर काटकर नगर के चौराहे पर रख दिया. एक दिन उधर से एक तेली गुजर रहा था उसने जब विक्रमादित्य की हालत देखि तो बहुत दुखी हुआ वो उसे अपने घर लगाया और वही रखा. एक दिन राजा विक्रमादित्य मल्लहार गा रहे थे और उसी रस्ते से उस नगर की राजकुमारी जा रही थी इसी उसने जब मल्लहार की आवाज सुनी तो वो आवाज का पीछा करते विक्रमादित्य के पास पहुची और उसकी ये हालत देखि तो बहुत दुखी हुई. और अपने महल जा कर पिता से विक्रमादित्य से शादी करने की जिद करने लगी. राजा पहले तो बहुत क्रोधित हुए फिर बेटी की जिद के झुक कर दोनों का विवाह कराया. तब तक विक्रमादित्य का साढ़ेसाती का प्रकोप भी समाप्त हो गया था फिर एक दिन शनिदेव विक्रमादित्य के स्वप्न में आये ओर बताया की ये सारी घटना उनके क्रोध के कारन हुई.
फिर राजा ने कहा हे प्रभु आपने जितना कष्ट मुझे दिया उतना किसी को न देना.तो शनि देव ने कहा जो शुद्ध मन से मेरी पूजा करेगा शनिवार काव्रत रखेगा वो हमेशा मेरी कृपा का पात्र रहेगा. फिर जब सुबह हुई तो रजा के हाथ पैर वापस आगये थे. राजकुमारी ने जब यह देखा तो बहुत प्रसन्न हुई. फिर रजा और रानी उज्जैनी नगरी आये और नगर में घोषणा करवाई कि शनिदेव सबसे श्रेष्ठ हैं सब लोगो को शनिदेव का उपवास और व्रत रखना चाहिए।
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