गुरुवार, 28 जनवरी 2021

ईमानदारी क्या हैँ?/ अखिलेश श्रीवास्तव चमन

 जैसी दाई आप छिनार, वैसा जाने सब संसार

      ईमानदारी राष्ट्रीय अपराध है। ईमानदार लोग देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं और इस कारण राष्ट्रद्रोही हैं। न सिर्फ इतना ईमानदारी की प्रवृत्ति हमारी संस्कुति के भी विरूद्ध है। किसी कार्य के लिए उत्कोच लेने की परम्परा एक धर्मिक कृत्य है। गंगा मइया, यमुना मइया, शीतला मइया, सती मइया आदि आदि सभी देवियाॅं एक अदद रंगीन कपड़े का टुकड़ा चुनरी  और चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि कुछ श्रृगांर सामग्रियाॅं पा कर हमारे बिगड़े काम बनाने निकल पडती  हैं। महावीर हनुमान जी पाव, सवा पाव लड्डू पाते ही सहायता के लिए दौड़ पड़ते हैं। और शंकर भगवान तो इतने भोले हैं कि बस थोड़े भाॅंग, धतूरे और बेलपत्र देने से ही मदद के लिए तैयार हो जाते हैं। हमारे जीवन की गतिविधियों संचालित  करने वाले नव ग्रह भी अपनी पसंद की भेंट-पूजा ले कर मन वांछित काम करा देते हैं। देवी, देवताओं , ग्रहों, उपग्रहों को उत्कोच दे कर अपना  काम कराने के लिए हमारे यहाॅं पण्डों, पुजारियों, और पुरोहितों आदि के रूप में लाईसेंसधारी अधिकृत बिचैलियों की सुदृढ़ परम्परा चली आ रही है। ऐसे देवी देवताओं की संतान भारतवासियों द्वारा बगैर कुछ उत्कोच लिए किसी का काम कर देना न सिर्फ पाप है बल्कि अपनी धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन यानि की धर्म द्रोह  है। हमारे कथा नायक श्रीमान चंदी गुप्ता इस मत के प्रबल समर्थक थे। 

     'चन्द्र टरे, सूरज टरे टरे जगत ब्यवहार, रिश्वतखोरी का मगर टरे न अटल विचार' मंत्री महोदय चंदी गुप्ता का जीवन आदर्श था । वे अपने विभाग में समरसता और एकरूपता के पक्षधर थे। उनका मानना था कि नीचे से ले कर ऊपर तक हर अधिकारी और कर्मचारी को भ्रष्ट होना ही चाहिए। जो भ्रष्ट नहीं हैं वे सिस्टम के लिए खतरा हैं। इसलिए उनको इतना परेशान करो इतना परेशान करो कि वे भ्रष्ट बनने के लिए मजबूर हो जाये।  और यदि परेशान करने के बावजूद भी कोई भ्रष्ट नही होता है तो समझो वह विभाग के लिए कैंसर है। उसको निलंबित या यदि संभव हो तो बर्खास्त कर के सेवा से निकाल देना चाहिए ।

          नियम , कानून से कार्य करने वाले ईमानदार अधिकारियों से चंदी गुप्ता को सख्त नफरत थी और जो अधिकारी जितना अधिक भ्रष्ट था वह उनको उतना ही अधिक प्यारा था। जिस प्रकार मक्खियाँ गंदगी पर अपने आप मंडराने लगती हैं ठीक उसी तरह विभाग के महाभ्रष्ट अधिकारी चंदी गुप्ता के आसपास मंडराने लगे । अपने अधीनस्थ विभाग को चंदी गुप्ता अपनी जमींदारी, विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को अपनी रियाया तथा उनसे लगान की वसूली करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे। 

     विभाग की कार्य-प्रणाली तथा पोल-पट्टी जान चुकने के बाद चंदी गुप्ता ने धन उगाही के लिए एक विस्तृत कार्य-योजना बनायी। पंचतंत्र की कहानी जिसमें जंगल के जानवर शेर के भोजन के लिए प्रति दिन एक शिकार उसकी मांद में भेजने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं को फिर से दुहराया गया। हाॅंका लगा कर, ड़रा कर, धमका कर, बहला कर, फुसला कर, चाहे जैसे भी हो फॅंसा कर शिकार भेजने के लिए विभाग के कुछ चाटुकार अधिकारियों को क्षेत्रीय प्रतिनिधि बनाया गया। चंदी गुप्ता दूध की रखवाली बिल्ली से कराने के खतरे जानते थे इसलिए शिकार को दूहने और निचोड़ने के लिए उन्होंने दूबे नामधारी एक गैर विभागीय विश्वासपात्र को नियुक्त किया।

     मंत्री जी के लिए शिकारी कुत्ते की भूमिका निभाने वाले विभागाध्यक्ष हेमंत कुमार में विभागीय अधिकारियों, कर्मचारियों को भौंक कर ड़राने से ले कर नोचने, बकोटने, दाॅंत गड़ाने , भभोड़ने और बुरी तरह काट कर जान ले लेने तक की ताकत निहित थी। इन सभी लोगों ने मिल कर अपने विभागीय मंत्री चंदी गुप्ता के लिए खजाने का दरवाजा खोल दिया था। कायदे-कानून को ताक पर रख कर शोषण करने के नए-नए तरीके ईजाद किए जाने लगे थे। शिकार को जबरन घेर-घार कर कसाई के बाड़े में भेजा जाने लगा था। चंदी गुप्ता ने दूबे नामधारी जिस कसाई को नियुक्त कर रखा था वह शिकार को वह बेरहमी से हलाल करने लगा था। जल्दी ही इस अत्याचार से विभाग में त्राहि-त्राहि मच गई।

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