ऐसी बानी बोलिये,मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे,आपहु शीतल होय।।
बुरा जो देखन मैं चला,बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना,मुझसे बुरा न कोय।।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ,पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय।।
कबिरा सोई पीर है,जो जाने पर पीर।
जो पर पीर न जानई,सो काफि़र बेपीर।।
निरबल को न सताइये,जाकी मोटी हाय।
मुई खाल की स्वाँस से,लौह भसम हुइ जाय।।
पाथर पूजे हरि मिले,तो मैं पूजुँ पहार।
या से तो चाकी भली,पीस खाय संसार।।
नैना अंतर आव तू,नैन झपहियों लेहु।
ना मैं देखों और को,ना तोहि देखन देहु।।
सहज मिलै सो दूध सम,माँगा मिलै सो पानि।
कह कबीर वह रक्त है,जा में ऐंचातानि।।
पानी केरा बुदबुदा,अस मानुस की जात।
देखत ही छिप जायगा,ज्यों तारा परभात।।
चलता चाकी देखके,दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में,बाकी बचा न कोय।।
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