*मुक्तिघर के मुर्दे*
1
कौन सा नंबर है तुम्हारा, एक मुर्दे ने पास पड़े मुर्दे से पूछा?
मालूम नही। दूसरे ने बेतकल्लुफ जवाब दिया।
कौन से नम्बर का दाह हो रहा है?
अरे मालूम नही बोला न, तुम्हे क्या जल्दी पड़ी है दाह संस्कार की। ज़िंदा था तब राशन, टिकट, बैंक की लाइन में घँटों खड़ा रह लेता था। आज क्या हुआ
उस लाइन में मैं खुद लगता था। यहां बच्चे लगे हैं लाइन में।
एक काम कर। खड़ा होकर बजा डाल सबकी। एकदम से नम्बर आएगा।
जब खड़ा हो सकता था तब नही बजाई। काश तब बोलते हम।
तो अब पड़ा रह शांति से। चुप्पी मारने की सजा यही होती है। जब आदमी कुछ नही बोलता, तब ही आदमी मर जाता है।
2
तुम्हारी जान कैसे गयी। एक मुर्दे ने दूसरे से पूछा
ऑक्सीजन नही मिली
तुम कैसे मरे
मुझे हॉस्पिटल में बेड नही मिला
कितने सस्ते में मर गए न हम लोग, पहले ने आह भरी।
हम यही डिज़र्व करते थे भाई। चुपचाप जैसे मर गए वैसे चुपचाप अंतिम संस्कार का इंतजार करो।
3
मुझे एक बार जीने का मौका मिल जाये तो चीख़ चीख़ कर कहूँ कि हमें सिस्टम ने मारा है। हम इतने बीमार नही थे जितना सिस्टम बीमार निकला। एक मुर्दे ने खीझ कर दूसरे मुर्दे से कहा।
चुपचाप पड़ा रह। मुर्दे कभी बोलते नही। यह मुर्दों का देश है साधो। जब जिंदा थे तब भी मुर्दा ही थे हम। अब हेकड़ी दिखाने का कोई लाभ नही
4
यार कितने संस्कार हो चुके, कितने बाकी हैं, एक मुर्दे ने दूसरे से पूछा
अभी 7 हुए हैं, 27 बाकी हैं। देख ले आजु बाजू, कितने मुर्दे पड़े हैं।
कितना बुरा हाल हो गया है देश का। पहला मुर्दा सुबकने लगा
दिख गया देश का हाल? अब मुर्दों के जलने की लपटें देख और ऊंचाई नाप मुल्क की तरक्की की।
5
सुनो
बोलो
हमारे बच्चे इस देश मे कैसे रहेंगे। हर तरफ महामारी और नफरत फैल चुकी है।
हां। हमने क्या योगदान दिया कि नफरत न फैले
सच मे कुछ भी नही
तो एक काम करते हैं। खुद को लानत भेजते हैं और फिर से मर जाते हैं।
वीरेंदर भाटिया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें