शनिवार, 12 जून 2021

#छत्तीसगढ़_में_मुक्ति_संग्राम और आदिवासी ~ #सुधीर_सक्सेना

 ● #छत्तीसगढ़_में_मुक्ति_संग्राम और आदिवासी ~

 #सुधीर_सक्सेना


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● सुप्रसिद्ध कवि, लेखक तथा अनुवादक एवं संपादक डाॅ सुधीर सक्सेना की एक महत्वपूर्ण पुस्तक "छत्तीसगढ़ में मुक्ति संग्राम और आदिवासी (अध्ययन)"  "भारतीय ज्ञानपीठ" नई दिल्ली से प्र काशित हुई है, 360 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य ₹ 650/ है। 

इतिहास की यह पुस्तक "बस्तर (छत्तीसगढ़)" के महान भुमकाल के महानायक गुंडाधूर और उनके सदृश्य सेनानियों की प्रतिरोध और बलिदान की अप्रतिहत परंपरा को समर्पित है।

● पुस्तक के फ्लैप पर प्रस्तावना या भूमिका के रूप में~ "छत्तीसगढ़ मे मुक्ति संग्राम" शीर्षक के अंतर्गत श्री राजेन्द्र चंद्रकांत राय लिखते हैं कि ~ छत्तीसगढ़ में सम्पन्न हुए मुक्ति संग्राम मे आदिवासियों की ऐतिहासिक भूमिका पर सबसे ज्यादा तथ्य परक और गवेषणायुक्त कोई अन्य ग्रंथ होगा, इसमे संदेह ही है।

"डाॅ सुधीर सक्सेना गहरी मानवीय चेतना के कवि हैं। वे निष्णात और प्रखर पत्रकार के तौर पर पहले से अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं। ••••• असीम धैर्य और तथ्यों की प्रामाणिक खोजों के प्रति सचेत रहते हुए लेखक ने संदर्भों का संकलन करने मे भी भरपूर उदारता बरती है। •••••• डाॅ सुधीर सक्सेना ने इतिहास की गहरी समझ के साथ छत्तीसगढ़ के मुक्ति संग्राम पर नितांत नयी और खोजी नजर डाली है और इधर-उधर पड़े, फुटकर तथ्यों को जुटाकर एक मुकम्मल इतिहास- ग्रंथ की रचना की है। इसमे इतिहास लेखन की अनिवार्य और पारंपरिक शुष्क मरुभूमि नहीं है, बल्कि कथा-रस के निर्झरों से सराबोर घटनाओं और विवरणों मे पाठक रमते हुए बैठता है। इस विचरण मे वह इतिहास से सीधा साक्षात्कार करता है।"

ग्रंथ का इतिहास-फलक विशाल है और वह औदार्य के साथ कल्चुरियों, मरहठों, पिंडारियों और अंग्रेजी काल को समेटते हुए, उसका सम्यक विवेचन करते हुए और तद्जनित परिणामों से पाठकों की आत्मिक सहमति प्राप्त करते हुए अपने प्रवाह में आगे बढ़ता है। ••••••• अद्भुत मौलिकता, नयी और अचिन्हीं स्थापनाएं तथा कहन-शैली की प्रांजल आधुनिकता ने इस ग्रंथ को एक एक विशिष्टता और औपन्यासिक छटा प्रदान कर दी है। यह इतिहास लेखन के पारंपरिक तरीके पर प्रहार करता है और नयी राहें दिखाता है। आगे लिखे जाने वाले इतिहास-ग्रंथों को सुधीर के लिखे से प्रेरणा, आशा, शैली और दृष्टि मिलेगी।•

● आत्मकथ्य के बहाने "पूर्व रंग" शीर्षक मे पुस्तक के लेखक डाॅ सुधीर सक्सेना लिखते हैं ~ इतिहास लेखन, निस्संदेह कठिन कार्य है। पुनर्लेखन और भी कठिन। इतिहास का सच अत्यंत मूल्यवान है। यह इसे चुनौती पूर्ण बनाता है और निःशब्द चेतावनी भी देता है। यही संदर्भ इतिहास को प्रासंगिकता व अर्थवत्ता देता है। यह विस्मृति की प्रक्रिया में स्मृति का सार्थक हस्तक्षेप है। इतिहास को जानना अपनी यात्रा को जानना और अपने वर्तमान को बूझना है। उसका गहन-गंभीर विश्लेषण हमे भविष्य के पूर्वाभास की अद्भुत शक्ति देता है। भुमकाल घटे एक सदी हो चुकी है। यह विचारणीय है कि इन्द्रावती के तट पर हुए इस लोहित प्रतिकार की स्मृति को सँजोने की दिशा में सत्ता, साहित्य और समाज ने अपनी अपनी भूमिका का निर्वाह कितनी गैर जिम्मेदारी से और किस तरह से किया ?

इतिहास प्रश्न जगाता है और उत्तर भी सुझाता है इन्ही अर्थों में वह सामयिक है और मूल्यवान भी। इतिहास की घटनाएँ महत्वपूर्ण हैं उतनी ही महत्वपूर्ण है उनकी व्याख्या। अलबत्ता अपने अभ्यास अर्जित कौशल के उपयोग का यत्न मैने प्रस्तुति मे किया है। 

यह प्रयास संभव हुआ ~ इसकी शुरुआत और अविचल निर्वाह एवं समापन का श्रेय छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी को है। इस उपक्रम की सफलता मे इतिहास से जुड़ी कृतियों व कृतिकारों के अलावा उन अनेक लोगों का गहरा योगदान है,  जिन्होंने वाचिक परंपरा मे इतिहास के सच को जीवित रखा। इच्छा शेष है कि इस मिशन को आगे भी जारी रख सकूँ।

● इस पुस्तक मे "छत्तीसगढ़ में मुक्तिसंग्राम" शीर्षक के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी लिखते हैं कि~  इस कृति के लेखक सुधीर सक्सेना से मैं बरसों से परिचित हूँ। उनसे परिचय का दायरा करीब 3 दशक के अंतराल में फैला हुआ है। वे पत्रकार हैं, कवि और अनुवादक भी हैं और इतिहास में गहरी रूचि रखने वाले अध्येता भी। जनजातीय जीवन और परंपराओं से उनका गहरा अनुराग है। उनकी प्रांजल भाषा और मांत्रिक शब्दों का मैं कायल हूँ। अपनी काव्यात्मक भाषा से वे अभिव्यक्ति का नया आकर्षक मुहावरा रचते हैं। उनसे आत्मीय परिचय, सतत संवाद और उनके कामों के आधार पर मुझे उनकी यह खूबी आकर्षित करती है कि वे इतिहास के अछोर गलियारों और अंधेरी खोहों मे धँसते हैं तथा बहुत धैर्य और संजीदगी से इतिहास की साँसो, फुसफुसाहटों और कराहों को सुनने और फिर उन्हें शब्दों में कैद करने का यत्न करते हैं। 

इतिहास को जानना अपनी यात्रा को जानना और अपने वर्तमान को बूझना है। बीते कल को जानकर हम अपने आज को समझ सकते हैं और आगामी कल को सँवार सकते हैं। इतिहास को उसके सही संदर्भों के साथ उद्घाटित और लिपिबद्ध करने का मेरी दृष्टि में एक और महत्व है। ऐसा करके हम अपने पुरखों और अपनी परंपरा के प्रति कर्तव्य का निर्वाह करते हैं। हमें अपने पुरखों का ऋणी होना चाहिए कि उन्होंने विषमतर परिस्थितियों में भी स्वतंत्रता की चेतना को अपने झुलसने की परवाह न करते हुए बचाए रखा। उन्होंने माटी की लाज रखी और दास्ता में रहते हुए भी अपनी आत्मा का सौदा नहीं किया। इन संदर्भों में अपने सही और प्रामाणिक इतिहास को सामने न लाना मुझे हमारे पुरखों और परंपरा के प्रति द्रोह या छल नजर आता है।

"छत्तीसगढ़ में मुक्तिसंग्राम और आदिवासी" का प्रकाशन मेरे लिए निजी तौर पर मोद का विषय है। इससे हमारी नई पीढ़ी को अपनी परंपरा के गौरवशाली अध्याय को जानने में मदद मिलेगी। आजादी की लड़ाई की अंकित गाथा में अभी बहुत कुछ अनंकित है। यह छूटा हुआ 'बहुत कुछ' हमारे लिए बहुत मूल्यवान और सार्थक है। मुझे विश्वास है कि सुधीर इस 'बहुत कुछ' की तलाश के साहसिक और पुरजोखिम अभियान में आगे भी रत रहेंगे।

●● समाज, इतिहास तथा साहित्य मे रुचि और दखल रखने वाले हर पाठक और रचनाकार को इस जरूरी पुस्तक के पन्ने जरूर पलटने चाहिए। हमारा विश्वास है कि यह पुस्तक पढ़ने से हमे न केवल एक अछूते इतिहास की जानकारी मिलेगी, अपितु बहुत कुछ नया लिखने की भी लालसा जागृत होगी और अपने प्रिय रचनाकार डाॅ सुधीर सक्सेना का श्रम भी सार्थक हो सकेगा।•

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