*मनुष्य को उम्र बढ़ने पर ‘वरिष्ठ’ बनना चाहिये, ‘बूढ़ा’ नहीं !*
बुढ़ापा अन्य लोगों का आधार ढूँढता है
जबकि
वरिष्ठता तो लोगों को आधार देती है ।
बुढ़ापा छुपाने का मन करता है,
जबकि
वरिष्ठता को उजागर करने का मन करता है।
बुढ़ापा अहंकारी होता है,
जबकि
वरिष्ठता अनुभवसंपन्न, विनम्र और संयमशील होती है।
बुढ़ापा नई पीढ़ी के विचारों से छेड़छाड़ करता है,
जबकि
वरिष्ठता युवा पीढ़ी को, बदलते समय के अनुसार जीने की छूट देती है।
बुढ़ापा "हमारे ज़माने में ऐसा था" की रट लगाता है.........
जबकि
वरिष्ठता बदलते समय से अपना नाता जोड़ लेती है, उसे अपना लेती है।
बुढ़ापा नई पीढ़ी पर अपनी राय लादता है, थोपता है......
जबकि
वरिष्ठता तरुण पीढ़ी की राय को समझने का प्रयास करती है
बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है.......
जबकि
वरिष्ठता तो जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है, युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है।
संक्षेप में ...
वरिष्ठता और बुढ़ापे के बीच के अंतर को समझकर, जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनना चाहिए।
*वरिष्ठ बनिये बूढ़े नही!*
🌹 *जय श्री सीताराम*🌹
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