मेरी प्रेम कहानी भाग-1 / रितिका सिहाग
हस्पताल के मुख्य गेट की सीढ़ियों पर घुटनों में सर रखकर बैठी थी मैं। अंतर्मन में एक बड़ा तूफान चल रहा था।
अंदर जाकर उसको देखूं या न देखूं ये सोचते सोचते कब 2 घण्टे निकल गए पता ही न चला।
सैंकड़ों लोग पास से आते जाते रहे। ऐसे अहसाह हो रहा था जैसे इंसान नही उनकी परछाइयां चल रही है
इतने बड़े ट्रैफिक वाली रोड पर हस्पताल था जिसकी सीढ़ियों पर मैं बैठी थी। आते जाते सैंकड़ों हजारों वाहन जैसे बिना आवाज के चल रहे थे सन्नाटा छाया था मेरे मन मे। कुछ भी सुनाई न दे रहा था।
बेसुध हालात में बैठी रही मैं वहां पर। मन अतीत की गहराइयों में डूबता चला गया।
बहुत शर्मीले स्वभाव का था राहुल।
कभी फोन नही करता था मुझे अपनी तरफ से। हमेशा मैं ही उसको फोन करती थी। अपनी तरफ से बोलती रहती थी और वो बस हां हूं में जवाब देता रहता था। हमेशा गम्भीर भाव रहते थे उसके चेहरे पर। कभी कोई गिफ्ट देती उसे तो बस एक पल के लिए मुस्कुरा देता और उसके बाद वही भाव चेहरे पर आ जाते थे।
लोगों की नाक में ऑक्सीजन+कार्बनडाईऑक्साइड का मिश्रण घुसता था और कार्बनडाइआक्साइड बाहर निकलती थी
मेरी हर सांस से राहुल अंदर जाता था और राहुल ही बाहर आता था। हर सांस में वो बसा था।
2 साल का वक़्त बीत गया था फिलहाल वो सुदूर किसी गांव में रहता था अपने खेतों में काम करता था और मैं चंडीगढ़ में जॉब करती थी।
कभी एक साथ बाहर घूमने नही गए थे हम। बहुत समय से मेरे मन मे चल रहा था ये। पर उसको समय ही नही मिल रहा था।
एक दिन सुबह सुबह राहुल के फोन की घण्टी बजी।
"कैसे हो राहुल ??"---मैं बोली
"ठीक हूँ"---राहुल बोलता है।
"5 दिन की छुट्टी ले सकते हो घर से, एक सरप्राइज लोकेशन पर घूमने चलते हैं"-मैं बोली
"लेकिन इतने दिन के लिए बाहर रहा नही कभी, घर पर क्या बोलूंगा ??"-राहुल बोला
"कभी नही निकले तो निकलना भी नही है क्या ??
घरवालों को बोलो दोस्तों के साथ घूमने जा रहा हूँ कपड़े पैक करो मैं आ रही हूं तुम्हे लेने अपनी गाड़ी लेकर"- मैने समझाते हुए उसे कहा !!
"लेकिन यहां तुम आई तो बवाल मच जाएगा घर मे"-- सहमी आवाज में राहुल बोला।
"अच्छा ये बताओ तुम्हारा पड़ोसी गांव कौनसा है ??"--- मैंने उससे पूछा।
"फलाना गांव मेरे पड़ोस में है" -- राहुल धीरे से बोला
"अच्छा ऐसे करो कपड़े पैक करो और कल उस पड़ोसी गांव के बस स्टैंड पर 9 बजे मिलना
मैं ठीक 9 बजे तुम्हे वहां से पिकउप कर लुंगी।
तुम्हे कोई परेशानी न होगी?"--मैंने उसे एक शानदार आफर देते हुए कहा।
"ठीक है कल 9 बजे वहां मिलूंगा!"--राहुल मीठी सी आवाज में बोला।
सुबह 4 बजे उठकर चंडीगढ़ से अपनी स्विफ्ट लेकर उसके गांव के रास्ते पर निकल पड़ी मैं !!
सुबह की वीरानी सड़को पर 5 घण्टे मेरी गाड़ी दौड़ती रही।
ठीक 9 बजे उस गांव के बस स्टैंड पर थी मैं।
कॉफी कलर की शर्ट पहने राहुल इंतज़ार ही कर रहा था वहां!!
गेट खोलकर उसकी तरफ बढ़ी मैं और गले लगा लिया उसको।
गांव के बस स्टैंड पर कुछ लोग हमें हैरानी से देख रहे थे!!
जल्दी से उसका बैग उठाया और डिग्गी में रख दिया मैंने।
गेट खोलकर एकदम से पिछली सीट पर पसर गया राहुल।
"क्या हुआ ??" - मैंने उससे पूछा
"मम्मी को थोड़ा बुखार था सारी रात उनकी देखभाल में जागता रहा था नींद घेर रही है मुझे"-उनींदी आवाज में राहुल बोला।
"अभी केसी है माँ"--सहम गयी थी मैं।
अभी ठीक है बिल्कुल,तुम जरा फिक्र न करो,
नही तो आता ही नही मैं"-- राहुल समझाने के अन्दाज में बोला।
राहत की सांस ली मैंने !!
मैंने 2-3 किलोमीटर गाड़ी चलाकर सुनसान सड़क पर एक साइड में गाड़ी रोक दी।
वो नींद में चला गया था तब तक।
मैंने सीट को पीछे किया और आंखे बंद कर ली।
आधे घण्टे की नैप के बाद राहुल उठ गया।
पानी की बोतल दे दी मेने उसे मुह धोने के लिए।
उसने चलने के लिए बोला उसी सीट से पड़े पड़े।
"अगली सीट पर बैठो"--मैंने आंखे तरेरते हुए उसको कहा।
वहीं से छलांग लगाकर अगली सीट पर बैठ गया वो।
और चल पड़े हम वापिस वहां से चंडीगढ़ वाले रास्ते पर ही।
हालांकि उसने बोला था कि मैं चंडीगढ़ आकर तुम्हे जॉइन कर लेता हूँ लेकिन मैंने उसको मना कर दिया।
मेरी इच्छा थी उसको उसके गांव से पिक करने की।
और अपना हर सपना जीने की कोशिश कर रही थी मैं।
बहरहाल वहां से कुछ घण्टे चलने पर एक पहलवान ढाबा आया,
गाड़ी रोक दी मैंने वहां।
राहुल घर से परांठे और अचार लेकर आया था।
हमने चाय बनवाई और उस सड़क पर विशाल पेड़ो के नीचे बैठकर ठंडी हवा में चाय के साथ परांठो का आनंद लिया।
कुछ देर वहां सुकन के पल बिताकर चल दिये वहां से।
चंडीगढ़ पहुंचने से पहले एक बड़ी नहर आई। जिसके किनारे बहुत बड़े बड़े सघन पेड़ लगे थे।
गाड़ी रोक दी मैंने।
मुझे ऐसी जगहें बहुत अच्छी लगती थी।
दोनों बाहर निकले और नहर के किनारे पेड़ो की छांव में बैठ गए।
छोटे छोटे कंकड़ फेंके कुछ मैंने उस नहर के बहते पानी मे।
वो एकटक मेरी बच्चों जैसी हरक़तें देख रहा था।
दोपहर को हम चंडीगढ़ पहुंच गए। सेक्टर 16 में शांति कुंज के आगे गाड़ी को रोक दिया मैंने।
बाहर निकले और राहुल का हाथ पकड़कर शांति कुंज में प्रवेश कर गयी मैं।
उसकी हर पगडंडियों पर चली मैं उसके हाथ मे अपना हाथ डालकर।
फिर वहां एक पेड़ के नीचे बैठ गए हम।
मैंने अपना सर उसकी गौद में रख दिया।
बिना कुछ बोले कुछ पल हम दोनों ने उसी स्तिथि में बिताए हमने।
फिर मैं उठी और बेठ गयी। राहुल का सर अपनी गौद में रख लिया। कुछ देर उसके बालों में अपनी उंगलिया फिराती रही।
अभिभूत होकर उसकी आंखें बंद होने लगी थी।
कुछ समय बाद उसको वहां से उठाया और सेक्टर 17 में चले गए हम दोनों गाड़ी में बैठकर।
उसे लेकर एक मॉल में गयी।
वहां से उसके लिए एक शर्ट और एक घड़ी खरीदी।
एक बार फिर उसकी निश्छल मुस्कान देखकर मेरा ह्रदय प्रेम से सरोबार हो गया।
मैने अपने क्रेडिट कार्ड से बिल चुकाकर सामान गाड़ी में रखा और हम दोनों एक रेस्टोरेंट में चले गए।
उसका मनपसन्द भोजन शाही पनीर,तंदूरी नॉन और दाल मख्खनी मंगवाया गया।
एक थाली में भोजन किया हमने।
उसे उसकी मनपसन्द स्वीट्स खिलाई।
पहले ही उसको कसम दे चुकी थी कि पूरे टूर पर पैसा मैं खर्च करूँगी सो उसके हाथ बंधे थे
बिल चुकाया और 4 बजे के आसपास मैंने गाड़ी मनाली रोड पर दौड़ा दी।
उसने गाड़ी चलाने की आफर दी पर मैंने कहा जाते टाइम सिर्फ मैं चलाऊंगी
आते समय तुम चला लेना।
पहाड़ों की खूबसूरती शुरू हो चुकी थी मेरा मन, मयूर के पंखों की तरह धीरे खिलता जा रहा था।
शाम 7 बजे हम सुंदरनगर पहुंच गए।
वहां सबसे पहले एक नजदीकी अचर्चित गांव में एक कमरा लिया जो नदी के किनारे था। सामान कमरे में रखा और वापिस सुंदरनगर आ गए क्योंकि उस गांव में भोजन का प्रबंध नही था
सुंदरनगर में हम दोनों का मनपसन्द भोजन किया गया और गांव में अपने कमरे में चले गए।
संसार का सबसे शांतिप्रिय गांव लग रहा था वो।
नहा धोकर हम फ्रेश हुए तब तक 9 बज गए थे। मालिक से रिक्वेस्ट करके हमने सिर्फ एक कप चाय बनवा ली।
आधा आधा पीया उसको हम दोनों ने।
फिर हम घर की खुली छत पर जाकर बैठ गए। चांदनी रात थी
जंगली जानवरों की आवाज के साथ नदी की कलकल बहती ध्वनि कानो में मधुर रस घोल रही थी।
मैंने अपना सर राहुल के कंधो पर रख दिया।
एक बार फिर बिना कुछ बोले हम दोनों उस पल को जी रहे थे।
12 बजे तक हम दोनों छत पर बैठे रहे।
क्या खूबसूरत रात थी।
फिर नीचे कमरे में आये हम दोनों और कल के प्लान बनाते बनाते गहरी नींद में सो गए।
सुबह मैं राहुल से जल्दी उठ गई। खिड़की खोली जहां से अदभुत नजारे दिख रहे थे।
राहूल सो रहा था मैं उसके चेहरे के नजदीक गयी।
बड़ी सुकून की नींद में था वो।
उसके माथे पर चुम्बन लेकर जगाया उसको मैंने।
मालिक से एक कप चाय बनवाकर लाई और हमने फिर उसको आधा आधा पिया।
हम नहा धोकर फ्रेश हुए और निकल पड़े सुबह की पहाड़ियों और पेड़ो से घिरी सड़क पर।
3-4 किलोमीटर तक पैदल चलते रहे हम दोनों।
एक बड़े से चपटे पत्थर पर बैठ गए हम दोनों। मैंने अपनी टांगे सीधी की और अपना सर राहुल की गौद में रखा और आसमान की तरफ देखने लगी।
अपने सपने के एक और हिस्से को जी रही थी मैं।
छोटे छोटे पक्षियों की मधुर आवाज मुझे किसी ओर ही दुनिया मे ले गयी।
कुछ पल वहां बिताने के बाद वापिस चल पड़े हम।
रास्ते मे एक ढाबे पर चाय पी हम दोनों ने।
चाय पीकर रूम पर वापिस आये,कमरे का बिल चुकाया और गाड़ी लेकर सुंदरनगर आ गए।
यहां गाड़ी रोक दी गयी।
एक खूबसूरत झील थी यहां,जिस पर प्लास्टिक का रास्ता बना था। एक दूसरे के हाथ पकड़कर फिर उस प्लास्टिक के रास्ते पर चले हम दोनों। बहुत ही खूबसूरत पल थे।
11 बजने को थे हमने वहां हिमाचली खाना खाया और फिर मैंने गाड़ी मनाली रोड पर दौड़ा दी।
थोड़ी दूर चलते ही खूबसूरत पहाड़ी नजारे दिखने लगे थे।
बारिश का मौसम बन गया था। कार में हमारा मनपसन्द रोमांटिक गाना बज रहा था। मेरा रोम रोम खिल गया था उस नजारे को देखकर।
एक बहुत ही खूबसूरत जगह पर थोड़ी खुली जगह देखकर मैंने गाड़ी सड़क से उतारकर किनारे पर रोक दी।
मैंने अपनी सीट पीछे की और पीठ को आराम से पीछे टिकाया।
हम दोनों ने अपनी आंखे बंद कर ली।
क्रमश........
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