सुभाष भाई आज साठ के हो गए । नौकरी से रिटायर वे चार महीने पहले ही हो गए थे । लेकिन अपने जुनून और जज़्बे से वे कभी रिटायर नहीं होंगे ।
पिछले महीने उन्होने एक धारदार कहानी लिखी – ‘तूफानी के बाद की दुनिया’ जिसमें एक सामंती अतीत से लेकर एन आर सी के बहाने अल्पसंख्यकों की बेदखली की इबारत लिखते फासीवाद के नए प्रतिनिधियों तक का एक लोमहर्षक संसार है । यह संसार कोरोना को आपदा में अवसर के रूप में बदल रहा है । आश्चर्यजनक रूप से यह कहानी इन तमाम सारे मुद्दों को डील करती है । कथाकार सुभाष चंद कुशवाहा को जाना ही इसलिए जाता है कि वे बिलकुल आज के जीवन और उसकी चुनौतियों को अपनी कहानी में ले आते हैं । पिछले ही महीने उन्होंने भील विद्रोह पर अपनी किताब पूरी कर दी । और कई महीने पहले से उन्होने लोकरंग को कराने की तैयारियां शुरू की और अप्रेल की शुरुआत में कोरोना की दूसरी लहर आने की आशंकाओं के बीच उसको करने न करने के गहरे द्वंद्व के बीच अंततः उसे सफलतापूर्वक सम्पन्न करा ही दिया। इस बीच उनके आदरणीय पिताजी ने भी इस संसार को अलविदा कहा । इस प्रकार अनेक उतार-चढ़ाव के बीच सुभाष ने इस साल वरिष्ठता ग्रहण कर ली । उनके विपुल साहित्यिक जीवन और विस्तृत कृतित्व को लेकर गाँव के लोग ने उन पर एकाग्र एक विशेषांक लगभग तैयार कर लिया है जो सिर्फ उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव के कारण छपने से रह गया है लेकिन उम्मीद है एक पखवारे में वह छप जाएगा । अभी देश की जनता जिस विपदा से जूझ रही है उसके खत्म होने पर हम एक कार्यक्रम भी करेंगे । अभी तो सुभाष भाई को जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें दे रहे हैं ।
साथ ही हम उनपर एकाग्र गाँव के लोग का आवरण पृष्ठ भी साझा कर रहे हैं । यह बहुत मूल्यवान सामग्री से सम्पन्न अंक है जिसके लिए अपर्णा ने बेहिसाब परिश्रम किया है । प्रो मैनेजर पाण्डेय , कथाकार मदन मोहन , प्रो शंभु गुप्त , प्रो रामप्रकाश कुशवाहा , प्रो दिनेश कुशवाहा , प्रो सदानंद साही, प्रो राजेंद्र प्रसाद सिंह , डॉ गुलाबचंद यादव , राकेश कबीर , आशा कुशवाहा , युवा कथाकार दीपक शर्मा , सामाजिक कार्यकर्ता विद्या भूषण रावत , गिरमिटिया लोकगायक राजमोहन, डॉ हीरालाल मौर्य , निर्देशक तनवीर अख्तर , मनोज कुमार मौर्य , मोमिता बनर्जी , लोकगायिका चन्दन तिवारी , योगेंद्र चौबे , भूदेव राय , इस्राइल अंसारी और अनन्या ने सुभाष जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के अनेक नए गवाक्ष खोले हैं । इस अंक में उनकी पाँच यादगार कहानियाँ तो हैं ही लेकिन कार्यकारी संपादक अपर्णा और विद्याभूषण रावत द्वारा सुभाष से लिए गए बेहतरीन साक्षात्कार भी हैं । यह अंक सुभाष की रचनायात्रा पर पहला ऐसा आयोजन है जो उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के सभी पहलुओं को पाठकों के सामने लाता है । एक बार फिर से विद्रोही इतिहास के इबारतकार और अपने ढंग के अनूठे कथाकार सुभाष चंद्र कुशवाहा को बधाई !
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