मुहब्बत करनेवालों के नाम ...
एक #प्रेमकथा :
"तेरी कुड़माई हो गई ?"
इतना घुमाकर तो नहीं पूछा था मैंने,
जैसे कोर्स में पढ़ी
चंद्रधर शर्मा गुलेरी की
अमर प्रेम कथा
'उसने कहा था' में
नायक ने नायिका से पूछा था!
सीधा और सपाट- सा तो प्रश्न था मेरा--
"मेरी लुगाई बनोगी?"
बदले में,
तुमने भी
'धत्त्!' कहाँ कहा था!?
सिर्फ शरमाकर रह गई थी तुम
और चेहरा तुम्हारा लाल हो गया था!
आज
पूरे बयालीस वर्षों के बाद
तुम्हारा अप्रत्याशित यह पूछना--
"सासाराम की कुछ याद
है, कि नहीं दिल में ?"
जैसे
ठहरे हुए ताल में
एक ही साथ
कई-कई पत्थर फेंक गया!
हठात् तुम्हारा नाम
कलेजे से उछलकर
होठों पर आ चिपका है।
रसोई के लिए बड़ियाँ खरीदने आई
उस नायिका की तरह
और अपने मामा के केश धोने के लिए
दही लेने
चौक की दुकान पर आए
उस नायक की तरह
बीच बाज़ार में
औचक तो नहीं मिले थे हम!
लेकिन, आई तो तुम भी थी
अपने मामा के ही घर
मैट्रिक की परीक्षा देने
धनबाद से
और मैं गया से
किसी और को
परीक्षा दिलवाने।
दूर के रिश्तेदार होने के नाते
हम भी रुके थे
तुम्हारे मामा के ही घर पर।
पहली ही मुलाकात में
तुम मुझे इतनी भाई
इतनी भाई
कि उस नायक की तरह
मैंने पूछ ही लिया था तुमसे
अपने अंदाज़ में --
"मेरी लुगाई बनोगी?"
और तुम
उस नायिका की तरह
'धत्त्' कहे बिना
सिर्फ शरमाकर रह गई थी।
कौन जानता था --
हफ़्ते भर की वह मुलाक़ात
हमारे पूरे जीवन पर
भारी पड़ जाएगी!
अपने शहर लौटते वक़्त
फिर से पूछा था मैंने तुमसे
उसी अंदाज़ में --
"मेरी लुगाई बनोगी?"
और मेरी संभावना के विरुद्ध
शरमाकर चुप रह जाने के बजाय
इस बार तुम्हारी आवाज़
कानों में मिसरी घोल गई थी--
"मामाजी से बात कर लीजिएगा!
लेकिन, पहले
कुछ बन तो जाएँ हम।"
न जाने क्या हुआ था फिर ...
कि 'कुछ बनने' के दरम्यान
समय अपने विकराल डैने पसारता गया
और ...
और ...
और बयालीस वर्ष बीत गए!
मैं किसी और का,
तुम किसी और की!
गूगल से मेरा नंबर निकालकर
व्हाट्सएप पर आज
जब एक अपरिचित की तरह
सवाल किया तुमने
कि सासाराम की कुछ याद है दिल में, कि नहीं ?
तो कलेजा धक् से रह गया।
पल भर में
जब मैंने तुम्हारा नाम लिखकर
प्रश्नवाचक चिन्ह लगाया,
तो बच्चों जैसा सवाल किया तुमने --
"इतने वर्षों के बाद भी याद हूँ मैं!?"
अब तुम्हें कैसे बताऊँ, सूबेदारनी!
कि दिल की सिगड़ी में
यादों के कोयले की लहक
कभी मद्धम पड़ी ही नहीं!
भरा-पूरा परिवार लिए
तुम्हारा लहना सिंह
आज तक उदास है
चेहरे पर मुस्कराहट का मुखौटा लगाए!
लेकिन, तुम बतलाओ, सूबेदारनी!
सूबेदार हजारा सिंह कैसे हैं?
उनके साथ
तुम खुश तो हो न??
इतने वर्षों के बाद
मुझे तलाशने की
आख़िर वजह क्या है?
ईमानदारी के साथ
शिद्दत से की गई
अपनी मुहब्बत पर
लहना को फख्र होगा,
यदि वो
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