अलकापुरी राज्य में मलकापुर नाम का एक नगर था । नगर आम नगरों जैसा ही था । अलकापुरी का राजा परंपरागत राजाओं की तरह सेम-टू-सेम था । आदतों में । हरकतों में । बतोलेबाजी में । फिकरेबाजी में । अहंकारी । न स्वयं सोचे । न किसी की सलाह माने । रियाया की दुख तकलीफों से बेखबर । सत्ता के नशे में चूर ।
मलकापुर की प्रजा राजकीय व्यवस्था के बाद अगर किसी से परेशान थी तो नगर के बंदरों से । आए दिन बंदरों की टोली नगरवासियों के घर में घुस जाती । उत्पात मचाती । बंदर कभी छत पर सूख रहे बहू- बेटियों के कपड़े उठा ले जाते । तो कभी आंगन में पड़े बड़ी-पापड़ खा जाते । हद तो तब हो गई जब एक दिन एक बंदर घर के बाहर खेल रहे मजदूर के बच्चे को उठाकर ले गया और पास के पेड़ पर चढ़ गया । लोग इकठ्ठा हो गए । शोर मचाने लगे । कुछ ने जमीन पर डंडे फटकारे । कोई हुश-हुश करता । तो कोई हट-हट की आवाज से बंदर को भगाने का प्रयास करता । बंदर ढीठ था । वो बच्चे को गोद में लिए पेड़ पर डटा रहा । तभी भीड़ में से किसी सयाने ने कहा – सुनो भाई लोगों, ये बंदर हनुमान जी का दूसरा रूप हैं । बड़े नकलची होते हैं ये बंदर । मेरी मानो तो बजरंग बली के नाम का परसाद बंदर के एक हाथ में धर दो तो वो अपने दूसरे हाथ से बच्चा लौटा देगा । बुजुर्गवार का आइडिया उस दिन काम कर गया । लेकिन बंदरों का आतंक नगर में कम नहीं हुआ ।
त्रस्त जनता बंदरों की शिकायत लेकर राजा के पास पहुंची । कोई सुनवाई नहीं हुई । आखिर हारकर इलम-हुनरवाले नगरवासियों ने जन सहयोग से एक बड़ा पिंजरा बनवाया । पिंजरे में गरीब-गुरबों ने अपने हिस्से की दाल-रोटी रख दी । इस उम्मीद में कि बंदर लालच में खाने आएंगे और पिंजरे में कैद हो जाएंगे । पर बंदर बड़े शाणे । पिंजरे के पास आते । देखते । आगे बढ़ जाते । पिंजरे में कोई नहीं घुसता ।
नगरवासी सलाह के लिए फिर सयाने के पास पहुंचे । वयोवृद्ध ने कहा – देखिए बंदर ऐसे पिंजरे में कभी नहीं आएंगे । बंदर अपने लीडर को बड़ा “स्ट्रिक्टली फॉलो” करते हैं । एक बार अगर लीडर पिंजरे में घुस गया तो सारे बंदर पिंजरे में आजाएंगे । इसलिए पहले इनके लीडर को पकड़ो । बंदरों से मुक्ति का यही एक मात्र रास्ता है ।
सवाल उठा कि ये कैसे पता चलेगा कि बंदरों का लीडर कौन है ? सयाने ने जिज्ञासा शांत करते हुए कहा – बड़ा आसान है लीडर को पहचानना । लीडर को भीड़ पसंद है । समारोह । स्वागत । वंदनवार । जय जयकार । नारे । इन सारे ठन-गन में जो सबसे आगे हो वही लीडर है । मेरी मानो तो झट से बजरंगबली के मंदिर में कुछ पाठ-वाठ करवाओ । लीडर का आगमन निश्चित समझो ।
मंदिर में भंडारे का भव्य आयोजन किया गया । पास ही में फूलों और रंगबिरंगी पन्नियों से सुसज्जित विशाल पिंजरा रखा गया । उसमें नाना प्रकार के फल, स्वादिष्ट मिष्ठान आदि रखे गए । लीडर आदत के मुताबिक वानर दल के साथ पहुंचा । ऐसी अभूतपूर्व आवभगत से अभिभूत लीडर अपने संगी-साथियों के साथ पिंजरे में प्रवेश कर गया । पिंजरा लॉक हो गया । हुर्रे-हुर्रे । जनता के उत्साह कोई पारावार न था । समस्या अब ये थी कि इन बंदरों के साथ क्या सलूक किया जाए ? मार दिया जाए या कहीं छोड़ दिया जाए ? तय हुआ हत्या-वत्या से मसले हल नहीं होते लिहाजा बंदरों को नगर से दूर जंगलों में छोड़ दिया जाए ।
राजा के संज्ञान में ये घटना आई । राजा अचंभित । गुप्तचरों ने बताया कि नगर में एक सयाना-बुजुर्ग है जो आजकल जनता जनार्दन को गाइड कर रहा है । वही उनका अब पथ-प्रदर्शक और रहबर है । प्रजा जागरूक हो गई है । इतना ही नहीं उस बुजुर्गवार ने जनता के मन में इस बात को पुख्ता कर दिया है कि लीडर ही उनके दुखों का असली कारण है । राजा के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तिर गई।-बुजुर्ग है जो आजकल जनता जनार्दन को गाइड कर रहा है । वही उनका अब पथ-प्रदर्शक और रहबर है । प्रजा जागरूक हो गई है । इतना ही नहीं उस बुजुर्गवार ने जनता के मन में इस बात को पुख्ता कर दिया है कि लीडर ही उनके दुखों का असली कारण है । राजा के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तिर गई।
वो जनता का मार्गदर्शक, सरपरस्त, सयाना कुछ दिन बाद शहर में दिखाई नहीं दिया । कहां गया ? कुछ पता नहीं । जितने मुंह उतनी बातें । कोई कहता है वो शहर छोड़ गया । कुछ कहते हैं मर गया । कुछ बोलते हैं उसे मरवा दिया । इस बीच राजा ने उसे “दिव्य आत्मा” घोषित कर दिया । नगर के सदर बाजार में उसकी आदमकद मूर्ति स्थापित करवा दी । जन भागीदारी से बना पिंजरा अजायब घर की शोभा बढ़ा रहा है । बंदर एक बार फिर नगर में लौट आएं हैं । जनता बेबस है । किसी शायर ने सही कहा है - मुंसिफ की अक्ल गुम है इस जे़रे बहस में, मक़तूल फिदा है क़ातिल के हुनर पे ।
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