बुधवार, 30 मार्च 2022

राजू शर्मा की कहानियाँ / चंदन पाण्डेय

 कुछ रचनाकारों को पढ़कर अनोखा एहसास होता है। जैसे राजू शर्मा। मिजाज खुश हो जाता है।


उनकी एक कहानी मिली: 'चुनाव के समक्षणिक सितम'। कहानी क्या है, यह तो आप पढ़कर जान ही लेंगे लेकिन जिस सूरत में वह बयान की गई है, वह, बस, कमाल ही समझिये।


मैं यहाँ पसंद नापसंद से इतर कहना यह चाहता हूँ कि लिखाई में जो 'हरकतें' हैं, वह शुरू से ही 'हुक' कर लेती है। वे 'हरकतें' चूँकि कहानी में गुँथी हुई हैं इसलिये आपको वह एहसासे-ज्यादती भी नहीं महसूस होती कि लेखक ने चमकदार वाक्यों का झालर दिखला दिया।


विषय में नयापन है, लेखन में विश्वास है वरना भारत के संविधान की उद्देशिका को लेकर कहानी लिखना चुनौतीपूर्ण है।


राजू शर्मा का ब्रिलियेंस पाठक से रत्ती या जवा भर धैर्य की माँग करता है। वह अगर है आपके पास तब आपको उन्हें पढ़ना चाहिये। अगर आप हिंदी में बेहतरीन लेखन के न होने का रोना रोते हुये टीवी और फोन देखकर थक जाते हैं, तब तो अवश्य ही पढ़िये। सोशल मीडिया पर प्रचार की उपलब्धता ने गुणवत्ता को अलग से उकेरने की गुंजाइश पर बहुत पहले से बुलडोजर चला रखा है, समतल कर दिया है, उत्तर प्रदेश की सरकार ने शायद इन्हीं से बुलडोजर का आइडिया लिया हो, ऐसे में अगर हम इतने साहसी नहीं कि खराब रचना को खराब कह सकें तब कम से कम अच्छी को अच्छी तो जरूर कहना चाहिये।


यह सप्ताह राजू शर्मा की उन पाँच कहानियों के नाम जो 'नोटिस - 2' और 'व्यभिचारी' नामक संग्रह में छपी हैं।


– चन्दन पाण्डेय

साभार - हिंदी विभाग  मगध  विवि, गया 

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