💧 💦💧 मित्रों आज विश्व जल दिवस है
( एक कविता साझा करना चाहता हूं)
📎📎
मर चुके हैं कई शहर
मर रहे हैं वह शहर भी
भरे थे जो
नदियों से लबालब
मर रहे हैं उन शहरों के बाशिंदे
जो पूजते थे धरा को
जल जिनका देवता था
लेकिन...
मेरे शहर के मिजाज के क्या कहने
जमीन की कोख फाड़ कर
निकलती हैं रोज-रोज
इमारतें नई-नई
इतराते हुए अपने-अपने कद पर
आसमान से बतियाने को आतुर
रेत/ सरिया/ सीमेंट/ बालू
और पानी पिए हुए
निकलता है सूरज भी
हर रोज
किसे है दरकार
इस शहर में
अब भोर की किरणों की...
इमारतों से बने पर्दे
बेरहम हैं बहुत
देने नहीं देते दस्तक
किरणों को
हर खिड़की पर
कितनी ख्वाहिशें मरती हैं यहां
हर रोज
तारों को/ जुगनुओं को
टिमटिमाते हुए देखने की
आसमान में
जिनकी तस्वीरें छपती हैं
अब बच्चों के सिलेबस में
बहला देती हैं नानी/ दादी भी
इन तस्वीरों को
किस्से- कहानी की
बात कह कर
जानता है कौन
कोई नहीं जानता
कोई नहीं है गवाह
इस शहर में
कहां गई गौरैया
गवाही देती हैं खबरें
अखबारों में छपी हुई
कि
मरा नहीं है यह शहर अभी
हर रोज नहाती हैं कारें
मेरे शहर की
रसातल से खींच कर
निकाले गए
ताजे पानी से
💧 💦💧
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