गुरुवार, 31 मार्च 2022

युद्ध के बीच / आलोक यात्री

 

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मैं लड़ना नहीं चाहता था

लेकिन मुझे लड़ने को मजबूर किया गया

कहा गया कि देश के लिए लड़ना होगा

क्या करता, कोई रास्ता नहीं था 

मैं खुद को बचाने के लिए लड़ा

मैंने कई ऐसे लोगों को मार डाला

जिनसे मेरी कोई दुश्मनी नहीं थी

जिनसे मैं कभी मिला नहीं था


मैंने उनके बच्चों की उम्मीदों की हत्या कर दी

उनकी मांओं की प्रतीक्षा का खून कर दिया

उनके दोस्तों की खुशियां छीन ली


मेरी ही तरह हजारों लोग लड़ रहे हैं युद्ध

बिना जाने कि वे जिन्हें मारना चाहते हैं

उनकी मृत्यु से उन्हें क्या मिलेगा

जो लोग मोर्चे पर लड़ रहे हैं

उनके परिवार, उनके बच्चे, उनके रिश्तेदार

मोर्चे से दूर रहकर भी लड़ रहे हैं युद्ध

उन तक पहुंचने वाली सड़कें 

ध्वस्त हो रही हैं, पुल टूट रहे हैं

और इसी के साथ टूट रही हैं उनके 

प्रियजनों की वापसी की उम्मीदें


जहां युद्ध नहीं लड़ा जा रहा है

वहां भी लोग मारे जा रहे हैं

युद्धजनित भूख से, बीमारी से

अपनों की लम्बी प्रतीक्षा की थकान से


युद्ध की लपटें उन तक भी पहुँच रहीं हैं 

जो निकल गये हैं युद्धक्षेत्र से बाहर

वे पूरी तरह निकल नहीं पाये हैं

अपने घरों से, अपनी यादों से

वे जितना छूट गये हैं पीछे

उतना मर रहे हैं हर धमाके के साथ

पता नहीं वे लौटकर अपनी लाशों 

की शिनाख्त कर पायेंगे या नहीं


बहुत सारी स्त्रियाँ अकेली हो गयी हैं

कुछ ने हथियार उठा लिया और मारी गयीं

कुछ उठा ली गयीं बचकर निकलने के पहले 

वे मरती रहेंगी रोज भूखे राक्षसों के 

लौह चंगुल में फंसी- फंसी

जिनके बच्चे मारे गये हैं हमलों में

वे सह नहीं पायेगी इस आघात को

और बंध्या हो जायेंगी कई कई पीढ़ियाँ 


जो बच्चे खो चुके हैं अपने माता- पिता

वे भले ही निकल जायं सीमाओं के पार

लेकिन लौट नहीं पायेंगे कभी अपनी दुनिया में

मुक्त नहीं हो पायेंगे धूल और धुएं की स्मृति से

निकल नहीं पायेंगे अपने उजड़े संसार से

विनाश के एक पल को महसूस करते हुए 

बूढ़े हो जायेंगे


जो अपाहिज होकर भी बच जायेंगे

उनके सामने अपाहिजों की दुनिया होगी

जो साबुत दिख रहे होंगे युद्ध के बाद

वे भी अपाहिज ही होंगे 


वर्तमान में ही नहीं भविष्य में भी 

लड़ा जा रहा है युद्ध

जल रही हैं बस्तियाँ

ढह रही हैं इमारतें

मलबे में बदल रहा है सालों का श्रम 

ध्वंस के नीचे दबते जा रहे हैं बच्चों के सपने

बनने से पहले ही धराशायी हो रहे हैं

अस्पताल, स्कूल और फैक्ट्रियां 

धमाकों में उड़ रही हैं सारी

योजनाएं, सारी प्रतिज्ञाएँ

वर्तमान के छिपने की कोई जगह नहीं बची है

मिसाइलें चली आ रही हैं उसकी ओर


फिर भी दिन-रात बमों की यह बरसात   

तबाह नहीं कर पायी है अभी तक 

जीने की सारी वजहें 

प्रिया के एक चुम्बन की याद लिये

मोर्चे पर निकल रहे हैं सैनिक

मृत्यु से पूर्व अपनी प्रेमिकाओं से 

शादी रचा लेना चाहते हैं युवक

टैंकों की गड़गड़ाहट के बीच एक माँ 

की कोख से जन्म ले रही है आजादी

धधकती आग में प्रवेश कर रहे हैं

कुछ लोग घायलों को बचाने के लिए

लपटों से घिरे भूखे- प्यासे लोगों 

तक भी पहुँच रहे हैं कुछ हाथ

दूसरों की जान बचाने के लिए जान दे 

देने में भी नहीं हिचक रहे कुछ लोग

टूटे पुलों से होकर उजड़ती बस्तियों

तक पहुँच रही हैं उम्मीदें 

कि एक दिन खत्म हो जायेगा युद्ध 

और इन्हीं रास्तों से लौट आयेंगे 

बिछड़े हुए लोग


 

24/3/2022

3 टिप्‍पणियां:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. युद्ध की विभीषका का मार्मिक चित्रण ।
    इसके बाद भी जीने की चाह बनी रहती है ।।

    जवाब देंहटाएं
  3. अद्भुत अद्वितीय 👌👌👏👏
    हृदय को आलोडित करता सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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