गुरुवार, 3 मार्च 2022

जंग टलती रहे तो बेहतर है…/ साहिर लुधियानवी ...

 *ऐ शरीफ़ इंसानों

जंग टलती रहे तो बेहतर है…* 

*~साहिर लुधियानवी*


ख़ून अपना हो या पराया हो

नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर

जंग मशरिक़ में हो कि मग़रिब में

अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर

बम घरों पर गिरें कि सरहद पर

रूह-ए-तामीर ज़ख़्म खाती है

खेत अपने जलें कि औरों के

ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है

टैंक आगे बढ़ें कि पीछे हटें

कोख धरती की बाँझ होती है

फ़तह का जश्न हो कि

 हार का सोग

ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है

जंग तो ख़ुद ही एक मसला है

जंग क्या मसलों का हल देगी

आग और ख़ून आज बख़्शेगी

भूक और एहतियाज कल देगी

इसलिए ऐ शरीफ़ इंसानों

जंग टलती रहे तो बेहतर है

आप और हम सभी के आँगन में

शमा जलती रहे तो बेहतर है !

1 टिप्पणी:

  1. हर सोचने वाले समवेदनशील मन की आवाज़ है यह।
    आमजन कुछ नहीं कर सकता पर हम काम से काम इस आक्रमण का विरोध तो कर सकते हैं। हम चुप क्यों हैं?

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