गुरुवार, 25 अगस्त 2022

माँ बस माँ होती हैं / मनु वशिष्ठ

 ✍️ मां!

मां की कोई उम्र नहीं होती

मां बस मां होती है!

चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!

छोटी उम्र में बच्चों की

देखभाल में खुद को भुला देती है।

और बूढ़ी होने पर भी

बच्चों के लिए दौड़भाग करती है।

अभी तो डांट रही थी

मैं तेरी मां नहीं,तू मेरा कुछ नहीं

भूखा सो जाने पर

चूमती है,पुचकारती है,

खुद से ही बड़बड़ाती, 

खुद को ही कोसती है और 

अंत में गले लगा, दुनिया भर का लाड़

उंड़ेल देती है मेरे गालों पर 

वो बस जानती है दुलार

क्योंकि मां की कोई उम्र नहीं होती 

मां तो बस मां होती है!

चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!!


मां नहीं जानती कोई शौक 

उसे कोई साड़ी पसंद ही नहीं आती

और उन बचे पैसों को

दे देती है मेरी कॉलेज की 

पिकनिक के लिए 

मैंने कभी भी नहीं खरीदते देखा

उसे सोने की नई बाली या कंगन

क्योंकि वो जोड़ रही है पैसे 

मेरी नई बाइक के लिए

मां के कोई शौक, पसंद भी नहीं होते

करती रहती है बस

व्रत अनुष्ठान, पूजा पाठ

हमारी सुख शांति और तरक्की के लिए

और एक दिन बस.....चली जाती है

क्योंकि मां! की कोई उम्र नहीं होती

मां बस मां होती है!

चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!


अपने बच्चों से अथाह प्रेम करती है।

जरा सी हिचकी क्या आई

छोड़ देती है खाने की थाली

पता नहीं क्या खाया होगा

दूर नौकरी पर, 

कौन उसकी पसंद जानेगा

छोटी से फोन मिलवाती है

तसल्ली हो जाने पर ही

थाली का खाना गले से 

उतार पाती है, साथ में 

पिताजी के उलाहने भी पाती है

अब तो उसे, बड़ा बनने दो

मां बस रो देती है 

क्योंकि मां की कोई उम्र नहीं होती

मां तो बस मां होती है!

चिर युवा भी, चिर वृद्धा भी!

___ मनु वाशिष्ठ,

 कोटा जंक्शन राजस्थान


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