बुधवार, 3 अगस्त 2022

प्रेमचंद के नए समीक्षकों के लिए / जयनारायण प्रसाद

 

प्रस्तुति -: सतीश वर्मा


  मुंशी प्रेमचंद के बहाने आज तलाश रहा था हिंदुस्तान का कौन-सा कथाकार विदेशी विश्वविद्यालयों में खूब पढ़ा/पढ़ाया जाता है, तो मुंशी प्रेमचंद का नाम सबसे ज्यादा मिला। जापान, रूस, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी आदि विश्वविद्यालयों में प्रेमचंद के उपन्यास वहां के पाठ्यक्रम में तो शामिल हैं ही, बल्कि स्कूलों में भी प्रेमचंद की कहानियां चाव से पढ़ी/पढ़ाई जाती हैं। वहां प्रेमचंद की 'ईदगाह' कहानी खूब पढ़ी गई है। 

  तलाशते-तलाशते यह भी मिला प्रेमचंद की 'ईदगाह' का अंग्रेजी अनुवाद खुशवंत सिंह ‌ने किया था। लाजवाब अनुवाद है मौका मिलें, तो कभी पढ़िएगा आराम से।

  कहते हैं कि विदेशी बुद्धिजीवियों की नजर प्रेमचंद पर तब ज्यादा पड़नी शुरू हुई, जब (ऑस्कर पुरस्कार विजेता) फिल्मकार सत्यजित राय ने प्रेमचंद की रचना 'शतरंज के खिलाड़ी' (‌द चेस प्लेयर्स 1977) और 'सद्गति' (डेलिवेरेंस, Sadgati, 1981) पर फिल्में बनाईं। 'शतरंज के खिलाड़ी' कथा फिल्म यानी फीचर फिल्म थी और 'सद्गति' दूरदर्शन के लिए बनाई गई टेलीविजन फिल्म। 

  जापान में प्रेमचंद की लोकप्रियता की एक वजह सत्यजित राय भी हैं। सत्यजित राय जापान में काफी मशहूर हैं। जापान के नामी फिल्मकार अकीरा कुरोसोवा हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा किसी फिल्मकार की कद्र करते थे, तो वह थे सत्यजित राय। 

  बहुत कम‌ लोगों को मालूम होगा अकीरा कुरोसोवा और सत्यजित राय - दोनों को लाइफटाइम ऑस्कर पुरस्कार भी मिला था। अकीरा कुरोसोवा कहते थे अगर किसी ने सत्यजित राय के सिनेमा को नहीं देखा - मतलब ‌सूरज और चांद को नहीं देखा। वह यह बात राय मोशाय की‌ वर्ल्ड क्लासिक फिल्म 'पथेर पांचाली' (सांग ऑफ द लिटिल रोड) के संदर्भ में अक्सर बोलते थे। अब ना अकीरा कुरोसोवा हैं ना ही सत्यजित राय। मुंशी प्रेमचंद जरूर हैं, पर अपनी अनमोल-वेशकीमती कथाओं/उपन्यासों में जैसे अकीरा और राय मोशाय अपने सिनेमा में ! 

  चलते-चलते यह भी बता दें राय मोशाय की इन दोनों फिल्मों के ज्यादातर कलाकार भी अब जीवित नहीं ‌हैं। ना संजीव कुमार (मिर्जा सज्जाद अली) हैं ना अमजद खान (वाजिद अली शाह),‌ ना सईद जाफरी (मीर रौशन अली) और ना टॉम अल्टर (कैप्टन वेस्टन), ना अभिनेता फारुख शेख (अकील) और ‌ना ही लीला मिश्रा (हिरिया) !

'सद्गति' की ना स्मिता पाटिल (झुरिया) हैं ना अभिनेता ओमपुरी (दुःखी चमार) और ना ही अभिनेत्री गीता सिद्धार्थ (लक्ष्मी) !

  सोचिएगा राय मोशाय ने अपनी बनाई छोटी-बड़ी कुल 36 फिल्मों में से आखिर क्या वजह थी उन्होंने हिंदी साहित्य से अकेले प्रेमचंद को ही चुना ! सत्यजित राय ने 36 में से सिर्फ दो ही फिल्में हिंदी में बनाईं और उसके लिए भी दोनों फिल्मों की कहानी हेतु मुंशी प्रेमचंद को ही प्रमुखता दी। 

एक भारतीय सिनेमा का सम्राट और दूसरा हिंदी साहित्य का सम्राट। 

  मुंशी प्रेमचंद ऐसे ही नहीं कहलाते हैं हिंदी साहित्य के उपन्यास सम्राट ! 

  फिर से सोचिएगा।

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