शनिवार, 13 अगस्त 2022

त्रिदेव त्रिमूर्ति - औरतें / रमा शंकर विद्रोही

 त्रिदेव त्रिमूर्ति / रमा शंकर विद्रोही


 आज स्मृति दिवस पर नमन करते हुए आइए पढ़ते हैं जनपदीय जीवन के सजग चितेरे कवि त्रिलोचन जी की तीन मशहूर कविताएं ...


उस जनपद का कवि हूँ 

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उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा दूखा है, 

नंगा है, अनजान है, कला--नहीं जानता 

कैसी होती है क्या है, वह नहीं मानता 

कविता कुछ भी दे सकती है। कब सूखा है 

उसके जीवन का सोता, इतिहास ही बता 

सकता है। वह उदासीन बिलकुल अपने से, 

अपने समाज से है; दुनिया को सपने से 

अलग नहीं मानता, उसे कुछ भी नहीं पता 

दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँची; अब समाज में 

वे विचार रह गये नही हैं जिन को ढोता 

चला जा रहा है वह, अपने आँसू बोता 

विफल मनोरथ होने पर अथवा अकाज में। 

धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण 

सुन पढ़ कर, जपता है नारायण नारायण।


चंपा काले-काले अक्षर नहीं चीन्हती 

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चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती

मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है

खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है

उसे बड़ा अचरज होता है :

इन काले चिन्हों से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं।


चंपा सुंदर की लड़की है

सुंदर ग्वाला है : गायें भैंसें रखता है

चंपा चौपायों को लेकर

चरवाही करने जाती है


चंपा अच्छी है

         चंचल है

न ट ख ट भी है

कभी कभी ऊधम करती है

कभी कभी वह कलम चुरा देती है

जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ

पाता हूँ - अब कागज गायब

परेशान फिर हो जाता हूँ


चंपा कहती है :

तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर

क्या यह काम बहुत अच्छा है

यह सुनकर मैं हँस देता हूँ

फिर चंपा चुप हो जाती है


उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि

चंपा, तुम भी पढ़ लो

हारे गाढ़े काम सरेगा

गांधी बाबा की इच्छा है -

सब जन पढ़ना लिखना सीखें

चंपा ने यह कहा कि

मैं तो नहीं पढ़ूँगी

तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं

वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

मैं तो नहीं पढ़ूँगी


मैंने कहा चंपा, पढ़ लेना अच्छा है

ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,

कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता

बड़ी दूर है वह कलकत्ता

कैसे उसे सँदेसा दोगी

कैसे उसके पत्र पढ़ोगी


चंपा पढ़ लेना अच्छा है!

चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,

हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो

मैं तो ब्याह कभी न करूँगी

और कहीं जो ब्याह हो गया

तो मैं अपने बालम को संग साथ रखूँगी

कलकत्ता में कभी न जाने दूँगी

कलकत्ते पर बजर गिरे।


प्रगतिशील कवियों की नई लिस्ट निकली है 

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प्रगतिशील कवियों की नई लिस्ट निकली है

उस में कहीं त्रिलोचन का तो नाम नहीं था ।

आँखें फाड़-फाड़ कर देखा, दोष नहीं था

पर आँखों का। सब कहते हैं कि प्रेस छली है,

शुद्धिपत्र देखा, उसमें नामों की माला

छोटी न थी । यहाँ भी देखा, कहीं त्रिलोचन

नहीं । तुम्हारा सुन सुन कर सपक्ष आलोचन

कान पक गये थे, मैं ऐसा बैठाठाला

नहीं, तुम्हारी बकझक सुना करूँ । पहले से

देख रहा हूँ, किसी जगह उल्लेख नहीं है,

तुम्हीं एक हो, क्या अन्यत्र विवेक नहीं है ।

तुम सागर लांघोगे? – डरते हो चहले से ।

बड़े बड़े जो बात कहेंगे, सुनी जायगी

व्याख्याओं में उनकी व्याख्या चुनी जायगी।


-  त्रिलोचन 


औरतें 

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कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थी

ऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है

और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थीं

ऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ है


मैं कवि हूँ, कर्त्ता हूँ

क्या जल्दी है


मैं एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथ

औरतों की अदालत में तलब करूँगा

और बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूँगा


मैं उन दावों को भी मंसूख कर दूंगा

जो श्रीमानों ने औरतों और बच्चों के खिलाफ पेश किए हैं

मैं उन डिक्रियों को भी निरस्त कर दूंगा

जिन्हें लेकर फ़ौजें और तुलबा चलते हैं

मैं उन वसीयतों को खारिज कर दूंगा

जो दुर्बलों ने भुजबलों के नाम की होंगी.


मैं उन औरतों को

जो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैं

फिर से ज़िंदा करूँगा और उनके बयानात

दोबारा कलमबंद करूँगा

कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?

कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया?

कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई?


क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ

जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में

ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं

और जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकली

जो खुले में पसर गयी है माँ मेदिनी की तरह


औरत की लाश धरती माता की तरह होती है

जो खुले में फैल जाती है थानों से लेकर अदालतों तक


मैं देख रहा हूँ कि जुल्म के सारे सबूतों को मिटाया जा रहा है

चंदन चर्चित मस्तक को उठाए हुए पुरोहित और तमगों से लैस

सीना फुलाए हुए सिपाही महाराज की जय बोल रहे हैं.


वे महाराज जो मर चुके हैं

महारानियाँ जो अपने सती होने का इंतजाम कर रही हैं

और जब महारानियाँ नहीं रहेंगी तो नौकरियाँ क्या करेंगी?

इसलिए वे भी तैयारियाँ कर रही हैं.


मुझे महारानियों से ज़्यादा चिंता नौकरानियों की होती है

जिनके पति ज़िंदा हैं और रो रहे हैं


कितना ख़राब लगता है एक औरत को अपने रोते हुए पति को छोड़कर मरना

जबकि मर्दों को रोती हुई स्त्री को मारना भी बुरा नहीं लगता


औरतें रोती जाती हैं, मरद मारते जाते हैं

औरतें रोती हैं, मरद और मारते हैं

औरतें ख़ूब ज़ोर से रोती हैं

मरद इतनी जोर से मारते हैं कि वे मर जाती हैं


इतिहास में वह पहली औरत कौन थी?

जिसे सबसे पहले जलाया गया?

मैं नहीं जानता

लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,

मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी

जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?

मैं नहीं जानता

लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी

और यह मैं नहीं होने दूँगा ।


  - रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

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