गुरुवार, 25 अगस्त 2022

मुन्ना मास्टर बने एडिटर' का ताप / हरीश पाठक

 'मुन्ना मास्टर बने एडिटर' का ताप / हरीश पाठक


ओमप्रकाश अश्क हिंदी के ऐसे पत्रकार हैं  वे जो भी कार्य करते हैं उसे पूरी शिद्दत और ईमानदारी से निभाते हैं-वह संपादन का कार्य हो या लेखन का।यह ईमानदारी और प्रतिबद्धता उनके कार्य में साफ साफ दिखती भी है।

    कल मुझे उनकी नयी किताब ' मुन्ना मास्टर बने एडिटर'(प्रलेक प्रकाशन) प्राप्त हुई।'यह आत्मकथा है या आत्मप्रलाप यह पाठक को तय करना है'- यह वे खुद 'अपनी बात' में लिखते हैं । सच तो यह है कि उनके पत्रकारीय जीवन का यह सफरनामा बेहद रोचक,रोमांचक और मन और दिल के भीतर उतरता है।कुछ घटनाएँ स्तब्ध करती हैं तो कुछ को पढ़कर आँखें नम हो जाती हैं।

      ओमप्रकाश अश्क लम्बे समय तक 'प्रभात खबर' से जुड़े रहे।वे इस अखबार के कई संस्करणों में जिम्मेदार पदों पर रहे पर पद के साथ वेतन नहीं बढ़ सका तो उन्होंने इस्तीफा लिख दिया।यह तब था जब 'राष्ट्रीय सहारा' के गोरखपुर संस्करण में उनकी स्थानीय संपादक के तौर पर नियुक्ति हो चुकी थी।वे 'प्रभात खबर' के तत्कालीन प्रधान संपादक हरिवंश के विश्वास पात्र थे।

      कुछ रिश्ते जिंदगी भर निभाये भी जा सकते हैं।यहाँ भी ऐसा ही हुआ।जब हरिवंश जी और उनका आमना सामना हुआ तब हरिवंश जी 15 दिनों के लिए विदेश जा रहे थे।उन्होंने कहा,"मुझे इस हाल में ही छोड़कर चले जाओगे?'

     रिश्तों की गर्माहट का यह ऐसा मोड़ था जो ओमप्रकाश अश्क को विचलित कर गया।बहुत कुछ उनके सामने थिरकने लगा और वे एक झटके में बोले,"अब नहीं जाऊँगा"।वे रुक गए और 'राष्ट्रीय सहारा' से आया ऑफर लेटर प्रभावहीन हो गया।यह अलग बात है कि बाद के सालों में वे 'राष्ट्रीय सहारा' के पटना संस्करण में स्थानीय सम्पादक रहे।

     आज कहीं नहीं दिखती रिश्तों की यह गर्मजोशी।यह बड़प्पन।यह आत्मीयता।आपसी विश्वास का यह अलिखित विधान।

      ऐसे तमाम किस्सों से भरी यह किताब सम्वेदनशील पाठकों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करेगी।

     यह भी जताएगी कि मूल्यों,समर्पण और निष्ठा की पत्रकारिता का ताप क्या होता है?


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