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अरसे तक समझ नहीं आया
कि आख़िर क्यों
चाचा ने बिस्तर अलग कर लिया?
और क्यों तीन बच्चों के साथ देर रात तक ठिठोलियाँ करती चाची
दिन में अपनी जेठानियों के बीच बैठी
लाल आँखें घूँघट में छिपाए बातें करतीं थीं?
क्यों मोहल्ले के शुक्ला जी के छोटे बेटे ने
गुपचुप ब्याह कर लिया अपनी ही सगी साली से
तब, जब उनकी बीवी छः माह के गर्भ से थी?
क्यों चिड़चिड़ा रहीं थीं
तीस के आर-पार की
बाहर काम पर जाती स्त्रियाँ?
चालीस तक आते आते वे
जैसे पके बेल सा मन लिए
टूट कर अलग हो जाती थीं, डाल से?
आख़िर काम का एक ही तो अर्थ था हमारे धर्म में
और धर्म के बाहर गई लड़कियों की
या तो बाहर या भीतर
किसी तरह से भी हत्या कर दी जाती थी।
यह शादी का मामला था।
ज़िम्मेदारी से भरा और संगीन।
यह सबसे पहले बिस्तर से जुड़ा था, और बिस्तर के बारे में हमें चादर और गद्दे की गुणवत्ता के आगे
बताया नहीं गया।
और इसलिए बिस्तर साथ बिछकर अब अलग हो रहे थे
जब पिता, चाचा और बड़े, छोटे भाई सब आदि-लक्ष्मण में बदल रहे थे,
हमसे छिपा कर रखे गए थे कुछ नाम
जैसे क्लियापेट्रा, तिष्यरक्षिता और, और भी तमाम
पर धर्म के आदिग्रन्थ के पारण के बहाने से
जो दो नाम नहीं बच पाए, वे हमारे संज्ञान में आए
वे शूर्पणखा के अपमान की पृष्ठभूमि पर रावण को युद्ध के नाम पर ललकार दिलाते
और अम्बा के चरित्र का परिवर्तन करने को उसे लिंगहीन शिखण्डी बनाते
हम सब मान भी लेते। डर जाते हम चरित्र और समाज के नाम पर
पर आत्मा के लिए धारण करते थे जो धर्म उसमें
अपनी देह को कब तक छिपाते और
अपनी स्थूलता को कहाँ ले जाते
आख़िर यह दो देहों का आपसी मामला था
और देह से विलग आत्मा का कोई मसला नहीं था
तो देह के रेशम पर सलमा सितारे-सी झिलमिल आत्मा तक
यह यौनिक मसला था।
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