रविवार, 14 अगस्त 2022

मोबाइल ( से ) परवरिश

 मोबाइल (  से ) परवरिश/ नेतराम भारती


दिवाकर शहर में एक बहुमंजिला सोसाइटी में रहता है l कुछ दिन हुए गाँव से उसकी माँ, अपने छोटे बेटे के लड़के कृष्णा के साथ, उसकी दसवीं वैवाहिक सालगिरह पर आशीर्वाद देने आई है l परंतु यहाँ के हालात, बच्चों की दिनचर्या और अपने स्वभाववश उनके ज़हन में कई प्रश्न उन्हें दिवाकर से पूछने को बाध्य कर रहे थे l

" दिवाकर! बेटा तुम कैसे रहते हो शहर में, मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है l तेरा यह लड़का प्रभाकर कुछ खेलता - वेलता भी है?"

"खेलता है न माँ l"

"खेलता है! , मैंने तो नहीं देखा, कहाँ खेलता है?"

"मोबाइल पर माँ l" 

"मोबाइल पे! और मैंने इसे स्कूल - विस्कुल भी जाते नहीं देखा l" 

"जाता है न माँ l" 

" कहाँ जाता है?" 

"मोबाइल पर माँ l" 

" अरे! यह मोबाइल - वोबाइल की रट छोड़ l कहीं पर, कोई स्कूल तो चलता होगा, जहाँ इसके मास्टर - मास्टरनी पढ़ाते होंगे?" 

"है न माँ l" 

" कहाँ?" 

"मोबाइल पर माँ l" 

" बेटा! ये मसखरी की बात नहीं है l ऐसे कैसे तेरे बच्चे दुनियादारी सीखेंगे l इसे देख कृष्णा को, प्रभाकर से तो छोटा ही है न, पर सब जानता है l बाज़ार के सारे मोल - भाव, खरीदारी खुद कर लेता है l पर देखती हूँ, कि तेरे बच्चे, कैसे कोई सामान खरीदना, मोल - भाव करना सीखेंगे? "

" वे भी सीख रहे हैं माँ l"

" मैंने तो कभी बाज़ार जाते नहीं देखा l कब और कहाँ सीख रहे हैं?" 

दिवाकर ने हँसते हुए माँ के दोनों कंधे पकड़ते हुए कहा.. 

"मोबाइल पर माँ l" 

" पढ़ाई मोबाइल पर, खेलकूद मोबाइल पर, खरीदारी मोबाइल पर, हँसना - रोना, दुआ - सलाम, ख़ैर - ख़बर सब मोबाइल पर lअब ये मत कह देना बेटा, कि शहर के बच्चे मोबाइल पर ही जवान हो रहे हैं l" 

अबकी बार दिवाकर निःशब्द हो गया l


नेतराम भारती

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