बुधवार, 24 अगस्त 2022

पारसी थिएटर / रणवीर सिंह

 रणवीर सिंह जी की जरूरी किताब "पारसी थिएटर" पर एक पुराना आलेख।                                                          पारसी थिएटर पर एक ज़रूरी किताब

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                                 --------------------------------------------         देश के जाने माने नाटककार,रंग निर्देशक,इतिहासकार और इप्टा के राष्ट्रीय अद्यक्ष रणवीर सिंह की एक बेहद ज़रूरी और उपयोगी किताब"पारसी थिएटर"सेतु प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। किताब में 9वीं सदी से 18वीं सदी के अंत तक का समय भारतीय रंगमंच के लिए एक अंधेरे का समय मानते हुए एक तरह से प्रतिपादित किया गया है कि लगभग 9वीं सदी में संस्कृत नाटकों का जो पर्दा गिरा वह पारसी थिएटर के साथ 18वीं सदी के अंत मे ही उठ पाया। जाहिर है इस किताब की विषय वस्तु पारसी थिएटर है और इसलिए इस लंबे मध्यांतर पर सांकेतिक चर्चा करते हुए लेखक ने अपना ध्यान पारसी रंगमंच के उद्भव,विकास,भाषा, शिल्प और उसके जन सरोकार पर केंद्रित किया है। पारसी थिएटर की पृष्ठभूमि पर चर्चा करते हुए यह रेखांकित किया गया है कि 1843 में जिस समय विष्णुदास भावे ने  पहला मराठी नाटक "सीता स्वयंबर"लिखा ठीक उसी समय अवध में वाज़िद अली शाह ने "राधा कन्हैया का किस्सा"लिखा और मंचित किया।"जोगिया जश्न"जैसे नाटक के सार्वजनिक प्रदर्शन के बाद इस परम्परा को 1853 में अमानत लखनवी ने "इंद्र सभा" मे आगे बढ़ाया जो हिंदी-उर्दू की मिली जुली भाषा की, हिंदुस्तानी की और क़ौमी एकता और साझा संस्कृति की परम्परा थी जिस पर पारसी थिएटर या हिंदुस्तानी थिएटर की नींव पड़ी। भाषा पर उस समय के नाटककार नारायण प्रसाद बेताब का एक शेर बखूबी उधृत किया गया है।"न ठेठ हिंदी न खालिस उर्दू ज़ुबान गोया मिली जुली हो/अलग रहे दूध से न मिसरी डली डली दूध में घुली हो।"                                       किताब बताती है कि पारसी थिएटर के नाटक सामाजिक चेतना,राष्ट्रीय भावना,छुआछूत, जातिभेद और स्त्री अधिकारों की बात भी इसमे होती थी।लेखक ने इस पर कुछ उद्धरण दिए हैं:-"नारायण प्रसाद बेताब ने ऊंच नीच,छुआछूत के खिलाफ "महाभारत" में चेता चमार का सीन लिखा"।                                          दुर्योधन (चमारों का झंडा देख कर) यह झंडे पर क्या लिख छोड़ा है।           सेगा- यथमां वाचं कल्याणी।                  चेता- मावदानि जनेभ्यः।                      द्रोण- चुप चाण्डाल, वेद मंत्र इस मुंह से न निकाल।                                   दुर्योधन- छीन लो यह झंडा।                द्रोण- धूर्तराज,क्या तुझे खबर नहीं तू जाति का चमार है,किसने कहा है कि शूद्रों को वेद मंत्र पढ़ने का अधिकार है।                                                 चेता- इसी वेद मंत्र ने।इसमे परमात्मा मनुष्य मात्र को अपनी कल्याणकारी वाणी का अधिकारी बताता है।राजा-प्रजा,स्त्री, पुरूष, शूद्र, प्रति शूद्र सबको भजन भक्ति में एक सा हकदार ठहराता है।                             लेखक ने पारसी थिएटर द्वारा सेंसर को चकमा दे कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी बात कहने के कई उदाहरण दिए हैं। मिस मेयो की हिंदुस्तान की कथित गंदगी पर लिखी गई किताब "मदर इंडिया"को गांधी ने "गटर इंस्पेक्टर रिपोर्ट"बताया था।1928  में इस पर बेताब ने "कुमारी किन्नर"नाटक लिखा।एक गीत में उन्होंने मिस मेयो को जबाब दिया:-     "बहारे गुल को बुलबुल ही खुशी से देख सकती है/हमेशा चील तकती है तो मुरदारों को तकती है/फ़क़त कूड़े के ढेरों पर नज़र उसकी लपकती है/शिवालय और मस्जिद के खुले हैं गो कि दरवाजे/कुमारी किन्नरी लेकिन वहां जाते हिचकती है।"                      आगा हश्र काश्मीरी ने सुप्रसिद्ध नाटक "यहूदी की लड़की"में अंग्रेजी हुकूमत और अवाम के विरोध को इस तरह उभारा:-"तुम सितम करते रहे और हम सितम देखा किये/खानुमां बर्बाद हो कर रंजोगम देखा किये/जुल्म का हम पर मगर उल्टा असर होता गया/छांटने  से नस्ले-कौमी बराबर होता गया।"                            1857 के पहले स्वाधीनता आन्दोलन के आसपास बंगला,मराठी,हिंदी और विविध भाषाओं में साम्राज्यवाद विरोधी लहर दिखाई देती है जिसके कई उदाहरण इस किताब में दर्ज हैं।1860 में दीनबंधु मित्रा के नाटक "नील दर्पण"की लोकप्रियता से घबरा कर अंग्रेजों ने नाटकों के नियंत्रण के लिए ड्रामेटिक परफॉर्मेंस एक्ट बनाया लेकिन यह क्रम रुका नहीं।                 पारसी थिएटर के शिल्प पर भी किताब में सार्थक चर्चा की गई है।पारसी थिएटर ने एक तरह से टोटल थिएटर की नींव डाली जिसमे नाट्यशास्त्र के सभी तत्व मौजूद थे।सुगठित कहानी,शायरी,नाच,पेंटिंग और स्टेज इफ़ेक्ट।पारसी थिएटर को पर्दे का थिएटर भी कहा जाता था।नाटक में कितने पर्दे हैं इससे दर्शक नाटक दृश्यों के बारे में जान जाता था।नाटक की तैयारी के लिए अभिनेताओं के सम्पूर्ण प्रशिक्षण पर बहुत ध्यान दिया जाता था।शेरो शायरी और गायन का इस तरह इस्तेमाल होता था कि गीत लोगों की ज़ुबान पर चढ़ जाते थे।                       किताब में पारसी थिएटर के संदर्भ में हिंदी-उर्दू विवाद और नाटकों के अनावश्यक हिन्दीकरण पर भी रोशनी डाली गई है।यह किताब पारसी थिएटर के उद्भव,विकास और पतन की मुकम्मल दास्तान है।इसमें आगा हश्र काश्मीरी, नारायण प्रसाद बेताब,राधेश्याम कथावाचक और बाबू बृद्धि चंद्र मधुर की जिन्दगी और कामों की चर्चा के साथ पारसी नाटक मण्डलियों की पूरी सूची है।पारसी थिएटर के मशहूर अभिनेता गणपत लाल डांगी से रणवीर सिंह का साक्षात्कार भी इसमे दर्ज है। कुल मिला कर रंगकर्मियों और नाटक तथा इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले हर व्यक्ति के लिए यह एक जरूरी किताब है।

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