शनिवार, 13 अगस्त 2022

नाक' / शोभा अक्षरा

: 'नाक'/ शोभा अक्षरा 


जब वह बारह साल की थी

जून की एक दुपहरी में

उसके ममेरे भाई ने घर पर बाथरूम के पास 

ले जाकर दबाये थे 

उसके हल्के उभरे स्तन

और ज़बरन हाथ को

चमड़े के बेल्ट के नीचे

पैंट की चेन के भीतर डाल दिया था

बेल्ट के बक्कल पर अंग्रेजी का एम बना हुआ था

लम्बी-लम्बी सांसें लेते हुए वो पकड़ा रहा था

 बार-बार उसे अपना गुप्तांग

जिसे उसने फुर्ती से बाहर निकाल कर रख दिया था

वैसे ही जैसे सजाए जाते हैं पारदर्शी काँच के भीतर

सर्राफे की दुकान में सोने और चाँदी के जेवर


अभी मई में उसने क्लास फिफ्थ का 

फाइनल पेपर दिया था

और थोड़ी देर पहले तक उसे

करसिव राइटिंग में कैपिटल एम लिखना बेहद पसंद था

उसके जीवन में हर रोज़ की तरह जब उस दिन भी

आसमान में ढेर सारे हवाई जहाज़ 

जो रफ़ कॉपी के पन्नों से बने हुए 

उड़ रहे थे

उसी वक़्त उस ममेरे भाई की आँखों में हवस 

करंट की तरह सरपट दौड़ रही थी 

 उस रोज किसी खरगोश की तरह झटकते हुए

पूरी ताक़त बटोर कर छुड़ा लिया था उसने अपना हाथ

लेकिन उसकी उंगलियों में एक किस्म की गन्ध अभी बची हुई थी

गन्ध घिनौने लिजलिजेपन में लिपटी हुई

वहाँ से तेज़ी से डर कर भागी थी वह

सोचते हुए कि अब तो कट जाएगी 'नाक'


 नाक जिसे उसकी माँ ने चुपचाप

 नानी के कहने पर कई सालों से छुपा कर रखा है

 एक काले गन्दे सिकुड़े हुए चौकोर कपड़े में गठिया कर

 किनारी जिसकी उधड़ी हुई है और जिसके एक कोने पर

बना हुआ है सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा

इन कबूतरों ने चोंच में पकड़ रखा है

एक-एक तिनका हरे रंग का


अब वह थोड़ी बड़ी हो गयी है

और 28 नंबर के साइज की 

सी कप ब्रा पहनती है

एक बार इसी लड़की ने अपने सगे भाई को

थप्पड़ मार दिया था

घर के पास एक पुलिस स्टेशन में सबके सामने

उसी दिन से उसका कोई सगा भाई नहीं है

 और ये वही लड़की है जिसकी वजह से 

अक्सर कट जाती है 'नाक'

नाक बहुत बड़ी है

कटते-कटते ख़त्म भी नहीं हो रही है 


- शोभा अक्षर

(शनिवार, 03 जुलाई, रात दो बजकर पैंतीस मिनट पर)

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