सोमवार, 22 अगस्त 2022

कृष्ण लीला

 "भगवान जब चलने लगे तो पहली बार घर से

बाहर निकले. ब्रज से बाहर भगवान

की मित्र मंडली बन गयी. सुबल, मंगल,

सुमंगल, श्रीदामा, तोसन, आदि मित्र

बन गये. सब मिलकर हर दिन माखन

चोरी करने जाते. चोर मंडली के अध्यक्ष स्वयं माखन चोर

श्रीकृष्ण थे.सब एक जगह

इकट्टा होकर योजना बनाते कि किस

गोपी के घर चोरी करनी है . आज ‘चिकसोले वाली’

गोपी की बारी थी.भगवान ने गोपी के

घर के पास सारे

मित्रों को छिपा दिया और स्वयं उसके

घ र पहुँच गये.दरवाजा खटखटाने

लगे,भगवान ने अपने बाल और काजल बिखरा लिया.

गोपी ने

दरवाजा खोला, तो श्रीकृष्ण को खड़े

देखा. गोपी बोली – ‘अरे लाला! आज सुबह-

सुबह यहाँ कैसे? कन्हैया बोले – ‘गोपी क्या बताऊँ! आज

सुबह उठते ही, मैया ने कहा लाला तू

चिकसोले वाली गोपी के घर चले जाओ

और उससे कहना आज हमारे घर में संत आ

गए है मैंने तो ताजा माखन

निकला नहीं, चिकसोले वाली तो बहुत सुबह

ही ताजा माखन निकल लेती है

उनसे जाकर कहना कि एक मटकी माखन

दे दो, बदले में दो मटकी माखन

लौटा दूँगी . गोपी बोली – लाला! मै अभी माखन

की मटकी लाती हूँ और मैया से कह

देना कि लौटने की जरुरत नहीं है

संतो की सेवा मेरी तरफ से

हो जायेगी .झट गोपी अंदर गयी और

माखन की मटकी लाई और बोली - लाला ये माखन

लो और ये मिश्री भी ले

जाओ. कन्हैया माखन लेकर बाहर आ गए और

गोपी ने दरवाजा बंद कर लिया .भगवान

ने झट अपने सारे सखाओ

को पुकारा श्रीदामा, मंगल, सुबल,

जल्दी आओ, सब-के-सब झट से बाहर आ गए

भगवान बोले जिसके यहाँ चोरी की हो उसके दरवाजे

पर

बैठकर खाने में ही आनंद आता है, झट

सभी गोपी के दरवाजे के बाहर बैठ गए,

भगवान ने सबकी पत्तल पर माखन और

मिश्री रख दी. और बीच में स्वयं बैठ गए

सभी सखा माखन और मिश्री खाने लगे. माखन के खाने

से पट पट और मिश्री के

खाने से कट-कट की, जब आवाज गोपी ने

अंदर से सुनी तो वह सोचने लगी कि ये

आवाज कहाँ से आ रही है और जैसे

ही उसने दरवाजा खोला तो सारे

मित्रों के साथ श्रीकृष्ण बैठे माखन खा रहे थे.

गोपी बोली – ‘क्यों रे कन्हैया! माखन

संतो को चाहिए था या इन चोरों को? भगवान बोले

-'देखो गोपी! ये

भी किसी संत से कम नहीं है सब के सब

नागा संत है देखो किसी ने भी वस्त्र

नहीं पहिन रखे है, तू इन्हें दंडवत प्रणाम

कर. गोपी बोली - अच्छा कान्हा! इन्हें

दंडवत प्रणाम करूँ, रुको, अभी अंदर से

डंडा लेकर आती हूँ .गोपी झट अंदर

गयी और डंडा लेकर आयी.

भगवान ने कहा- 'मित्रों! भागो,

नहीं तो गोपी पूजा कर देगी. एक दिन जब मैया ताने

सुन सुनकर थक

गयी तो उन्होंने भगवान को घर में

ही बंद कर दिया जब आज गोपियों ने

कन्हैया को नहीं देखा तो सब के सब

उलाहना देने के बहाने नंदबाबा के घर आ

गयी और नंदरानी यशोदा से कहने लगी-

यशोदा तुम्हारे लाला बहुत नटखट है, ये

असमय ही बछडो को खोल देते है, और जब

हम दूध दुहने जाती है तो गाये दूध

तो देती नहीं लात मारती है जिससे

हमारी कोहनी भी टूटे और

दुहनी भी टूटे.घर मै कही भी माखन छुपाकर रखो,

पता नहीं कैसे ढूँढ लेते है

यदि इन्हें माखन नहीं मिलता तो ये

हमारे सोते हुए

बच्चो को चिकोटी काटकर भाग जाते

है, ये माखन तो खाते ही है साथ में

माखन की मटकी भी फोड़ देते है*.

यशोदा जी कन्हैया का हाथ पकड़कर

गोपियों के बीच में खड़ा कर देती है और

कहती है कि ‘तौल-तौल लेओ वीर,

जितनों जाको खायो है, पर गली मत

दीजो, मौ गरिबनी को जायो है’. जब

गोपियों ने ये सुना तो वे कहने लगी - यशोदा हम

उलाहने देने नही आये है आपने

आज लाला को घर में ही बंद करके रखा है

हमने सुबह से ही उन्हें नही देखा है इसलिए

हम उलाहने देने के बहाने उन्हें देखने आए थे.

जब यशोदा जी ने ये सुना तो वे कहने

लगी- गोपियों तुम मेरे लाला से इतना प्रेम करती हो,

आज से ये सारे

वृन्दावन के लाल है . *आध्यात्मिक पक्ष- भगवान समय

ही बछडो को खोल देते है भगवान

को बँधा हुआ जीव

अच्छा नहीं लगता इसलिए भगवान जीव

को मुक्त कर देते है. और सोता हुआ जीव

भी अच्छा नहीं लगता इसलिए भगवान उसे उठा देते है.

माखन ये मन है, और

मटकी ही ये शरीर है, भगवान जब अपने

भक्त का मन चुरा लेते है तो फिर इस देह

का क्या काम इसलिए भगवान इसे फोड़

देते है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...