शनिवार, 20 मार्च 2021

क़मर जलालाबादी उर्फ़ ओम प्रकाश भण्डारी ।

 क़मर जलालाबादी इनका पूरा नाम ओम प्रकाश भण्डारी था। १९१९ को जलालाबाद (अमृतसर) में इनका जन्म हुआ था। और आज के दिन ९ जनवरी २००३ को इनका निधन हुआ था।


इन्होंने सात वर्ष की उम्र से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। फिल्मों में इनकी मुख्य रचनाएँ 'मेरा नाम चिन चिन चूँ', 'आइये मेहरबां बैठिये जाने जाँ', 'इक दिल के टुकड़े हज़ार हुये, कोई यहाँ गिरा कोई वहाँ गिरा' आदि थे। घर से इन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिला, पर एक घुमंतु कवि अमर ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने ही ओम प्रकाश भण्डारी को तखल्लुस 'क़मर' प्रदान किया, जिसका अर्थ होता है- 'चाँद'। उस समय की परिपाटी के अनुसार चूँकि ओम प्रकाश जी जलालाबाद के थे, अतः उनका कवि के रूप में नामकरण हो गया "क़मर जलालाबादी"।


फिल्मों के प्रति आकर्षण इनको  चालीस के दशक में पूना ले आया और १९४२ में उन्हे "जमींदार" फिल्म में गीत लिखने का मौका मिल गया। फिल्म के गीत अच्छे चले और खास तौर पर शमशाद बेग़म द्वारा गाया गया गीत "दुनिया में गरीबों को आराम नहीं मिलता" बेहद लोकप्रिय हुआ।


बाद में वे बम्बई आ गये और हिन्दी फिल्मी जगत को बतौर गीतकार एक से बढ़कर एक गीत लिखकर प्रदान करते रहे। क़मर जलालाबादी के लिखे गीतों को हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी मशहूर गायक-गायिकाओं, मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ, जी.एम दुर्रानी, ज़ीनत बेग़म, मंजू, अमीरबाई कर्नाटकी, मो. रफी, तलत महमूद, गीता दत्त, सुरैया, शमशाद बेग़म, मुकेश, मन्ना डे, आशा भोसले, किशोर कुमार और स्वर-कोकिला लता मंगेशकर आदि ने गाया।


इनके लिखे गीतों को कुछ संगीत निर्देशकों ने स्वयं भी गाया। एस.डी बर्मन ने १९४६ में बनी "एट डेज़" फिल्म के लिये एक कॉमिक गीत "ओ बाबू बाबू रे दिल को बचाना बचाना दिल का बनेगा निशाना" अपनी आवाज में गाया। संगीत निर्देशक सरदार मलिक ने भी उनके लिखे कई गीत गाये और १९४७ में बनी "रेणुका" के एक गीत "सुनती नहीं दुनिया कभी फरियाद किसी की, दिल रोता रहा आती रही याद उसकी" काफी लोकप्रिय हुआ। 


सौंदर्य मलिका अभिनेत्री नसीम बानू ने भी १९४७ में बनी फिल्म "मुलाकात" में एक ग़ज़ल  "दिल किस लिये रोता है, प्यार की दुनिया में ऐसा ही होता है" को अपनी आवाज गाया। मशहूर नृत्यांगना सितारा देवी ने भी १९४४ में बनी फिल्म "चाँद" में इनके लिखे कुछ गीतों को गाया था।


इन्होंने अपने लम्बे करियर में हिन्दी सिनेमा के लगभग सभी प्रसिद्ध संगीतकारों – गुलाम हैदर, जी. दामले, प. अमरनाथ, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम, एस.डी बातिश, श्याम सुंदर, सज्जाद हुसैन, सी. रामचंद्र, मदन मोहन, सुधीर फड़के, एस. डी बर्मन, सरदार मलिक, रवि, अविनाश व्यास, ओ.पी नैयर, कल्याणजी आनंदजी, सोनिक ओमी, उत्तम सिंह और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल आदि के साथ काम किया।


अपने जीवन में उन्होंने गीतों के अलावा करीब डेढ़ सौ से अधिक कहानियां, स्क्रीन प्ले और संवाद भी लिखे हैं। उन्होंने जीवन के करीब चार दशक फिल्मी दुनिया में बतौर गीतकार, संवाद लेखक के तौर पर बिताए। 


इन चार दशक में उन्‍होंने एक से बढ़ कर एक गीत लिखे। उनके गीत कानों में रस घोलते रहे हैं। फिल्‍म 'फागुन' का गीत 'एक परदेसी मेरा दिल ले गया, दीवानों से यह मत पूछो, मैं कैसे कहूं टूटे हुए दिल की कहानी, ओ दूर जाने वाले, वादा न भूल जाना, इक दिल के टुकड़े हजार हुए, कोई दुनिया में हमारी तरह बर्बाद न हो, अंखियों का नूर है तू  'हावड़ा ब्रिज' का गीत आइए मेहरबां बैठिए जानेजां, 'महुआ' का मधुर गीत, दोनों ने किया था प्यार मगर मुझे याद रहा तू भूल गई, 'शहीद' का गीत, बदनाम न हो जाए।१९५४ में बनी फिल्म 'पहली तारीख" के लिये लिखा गीत "आज पहली तारीख है" जो दशकों तक हर महीने की पहली तारीख को रेडियो सीलोन पर बजाया जाता था। सुधीर फड़के के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने इस गीत के लिखे मस्ती भरे बोलों को मस्ती भरे अंदाज़ में गाकर इस गीत को अमर बना दिया।


इसके अलावा उन्होंने फिल्मों से हट कर भी अपनी शायरी का सिलसिला कभी टूटने नहीं दिया, 'रश्के-कमर' उनकी ऐसी ही गैरफिल्मी गजलों का संग्रह है।


मत करो यारों इधर और उधर की बातें !

कर सको तुम तो करो रश्‍के कमर की बातें !!

जो दिल को छू न सके, गुनगुना न पाऊं मैं !

ग़ज़ल न ऐसी सुना जिसको भूल जाऊं !!

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