सुप्रसिद्ध कथाकार ममता कालिया ने हाल में प्रकाशित मेरे दृष्टिबाधितों की दुनिया पर केंद्रित उपन्यास ब्लाइंड स्ट्रीट को एक रात में पढ़ने के बाद ये टिप्पणी की है...
जब प्रदीप सौरभ जैसा हरफनमौला, जांबाज़ पत्रकार,छायाकार रचनासंसार में उतरता है तो पूरी तैयारी के साथ ऐसा करता है।"ब्लाइंड स्ट्रीट" प्रदीप का पांचवां उपन्यास है।आप कह सकते हैं कि यह एक दृष्टिसम्पन्न लेखक का दृष्टिबाधितों के संसार में आत्मीय प्रवेश है।मैंने खुद देखा है कि पिछले दो वर्षों में प्रदीप सौरभ की इस सूर-संसार में अच्छी खासी मित्र मंडली बन गयी है।
जो लेखक पत्रकारिता के ऊबड़ खाबड़ जगत से रचनात्मक दुनिया में आता है,उसके पास हमेशा बेहतर बहादुरी और तैयारी होती है।वह अपना कैमरा और कलम हर मोर्चे पर तैनात रखता है,चाहे वह अंधेरी दुनिया के उजाले दिखाए या उजली दुनिया के अंधेरे।कभी वह हमें झुग्गी माफिया की कारस्तानियां दिखाता है तो कभी जामिया मिलिया का परिसर।
प्रायः समाज दृष्टिबाधितों को दयनीय,परनिर्भर और परास्त समझते हैं।सौरभ ने उनकी प्रतिभा,पराक्रम और आत्मनिर्भरता,विस्तार से बयान की है।महेश,नितिन त्यागी, राजेश ठाकुर सबकी अलग,मार्मिक परिस्थितियां हैं।खास बात यह कि सभी दृष्टिबाधितों में पढ़ने और आगे बढ़ने की अदम्य आकांक्षा है।
प्रदीप ने गहरे उतर कर अपनी कथा भूमि का संधान किया है।तरुण भटनागर के उपन्यास,"बेदावा" के बाद यह दूसरा उपन्यास है जो सिखाता है कि हर दृष्टिहीन व्यक्ति भिक्षुक नही होता।उसकी समझ और संवेदनशीलता हम आंखवालों से ज़्यादा सचेत और सजग होती है।"ध्वनियां उनके सामने दृश्य पैदा करती हैं और स्पर्श उसको उनका
एहसास"दिला देता है।ब्रेल लिपि में ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ना ,अनुसन्धान करना,और अध्यापन करना इनके लिए सहज व संभव कार्य हो गए हैं।प्रखर,प्रसिद्ध आलोचक सुधीश पचौरी ने इसीलिए "ब्लाइंड स्ट्रीट" के लिए कहा है"प्रदीप सौरभ का यह उपन्यास,उनके अन्य उपन्यासों की तरह,हिंदी के चालू उपन्यास जगत के बीच अनूठी चमक रखता है"।पच्चीस अध्यायों में एक भी क्षण आप इस रचना से विमुख नहीं होते।
मेरे लिए तो यह दुगना अचम्भा है कि इलाहाबाद के अक्खड़,फक्कड़,मुंहफट पत्रकार ने इतना महत्वपूर्ण उपन्यास वर्षों के परिश्रम से लिख दिया।नयी किताब प्रकाशन की इस प्रस्तुति का स्वागत होना चाहिए..
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