बुधवार, 17 मार्च 2021

_स्टार_मेकर ~केदार शर्मा

 #फ़िल्म_इंडस्ट्री_के_स्टार_मेकर ~ / राजेश गुप्ता 


भारतीय फ़िल्म इतिहास का ऐसा नाम जिन्होंने राज कपूर, भारत भूषण, मधुबाला, माला सिन्हा और तनुजा को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये थे मशहूर निर्माता, निर्देशक , अभिनेता, गीतकार व पटकथा लेखक 'केदार शर्मा'।


'केदार शर्मा' जी का जन्म १२ अप्रैल १९१० को पंजाब के नरौल शहर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर से पूरी की। इसके बाद वह नौकरी की तलाश में मुंबई आ गए, लेकिन वहां काम नहीं मिलने के कारण वह अमृतसर वापस आ गए और अमृतसर के ख़ालसा कॉलेज से स्नाकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।वर्ष १९३३ में इन्हें 'देवकी बोस' निर्देशित फ़िल्म 'पुराण भगत' देखने का अवसर मिला। इस फ़िल्म से प्रभावित हो कर इन्होंने निश्चय किया कि वह फ़िल्मों में ही अपना करियर बनाएंगे। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए केदार कलकत्ता चले गए। क्योंकि उस समय फिल्म निर्माण का सबसे बड़ा केंद्र कलकत्ता ही हुआ करता था। 


कलकत्ता में बहुत कोशिशों के बाद केदार शर्मा की मुलाकात 'मार्डन थियेटर' के 'दिनशा रनी' से हुई। केदार शर्मा के फिल्मों के प्रति उत्साह को देखते हुए उन्होंने केदार से पूछा की वे क्या क्या काम कर सकते हैं। केदार शर्मा ने जवाब दिया कि, अभिनय, गीत लेखन, कहानी लेखन में से कोई भी काम कर सकते हैं, लेकिन इन कामों के लिए वहां लोगों की जरूरत नहीं थी। वहां जरूरत थी पोस्टर बनाने वाले एक पेंटर की। चित्रकला में माहिर 'केदार शर्मा' को जैसे ही ये पता चला, उन्होंने पेंटर बनना स्वीकार कर लिया। इसके बाद केदार की मुलाकात फ़िल्मकार 'देवकी बोस' से हुई और उनकी सिफ़ारिश से उन्हें न्यू थियेटर में बतौर छायाकार शामिल कर लिया गया। वर्ष १९३४ में प्रदर्शित फ़िल्म 'सीता' बतौर छायाकर केदार की पहली फ़िल्म थी। इसके बाद न्यू थियेटर की फ़िल्म 'इंकलाब' में केदार को एक छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला। इसके बाद वर्ष १९३६ में प्रदर्शित फ़िल्म 'देवदास' केदार शर्मा के कैरियर की अहम फ़िल्म साबित हुई। इस फ़िल्म में वह बतौर कथाकार और गीतकार की भूमिका में थे। फ़िल्म हिट रही और केदार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।


बतौर अभिनेता इनकी फ़िल्में थीं इंकलाब, पुजारिन, विद्यापति, बड़ी दीदी, नेकी और बदी शामिल हैं। लेकिन उनकी बेहद पतली आवाज उनके अभिनय की राह में रूकावट बन गयी। इसका एहसास उन्हें खुद भी हो गया था, इसलिये उन्होंने अपनी प्रतिभा को फिल्म निर्माण के दूसरे क्षेत्रों में लगाया।


वर्ष १९४० में इन्हें फ़िल्म 'तुम्हारी जीत' को निर्देशित करने का मौका मिला, लेकिन दुर्भाग्य से यह फ़िल्म पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद उन्होंने 'औलाद' फ़िल्म को निर्देशित किया, जिसकी सफलता के बाद वह कुछ हद तक बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए। 


वर्ष १९४१ में उन्हें 'चित्रलेखा' फ़िल्म को निर्देशित करने का मौका मिला। इस फ़िल्म की सफलता के बाद केदार शर्मा बतौर निर्देशक फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। इस फ़िल्म से जुड़ा एक किस्सा है, ये फ़िल्म एक स्नान दृश्य के लिए भी चर्चित रही जो फ़िल्म अभिनेत्री मेहताब पर फ़िल्माया गया था। इस फ़िल्म के बाद मेहताब दर्शकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुई थीं, लेकिन फ़िल्म के शुरूआत के समय मेहताब स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन के लिए तैयार नही थीं। केदार ने जब मेहताब के समक्ष स्नान दृश्य के फ़िल्मांकन का प्रस्ताव रखा तो मेहताब बोलीं, यह सीन आप दर्शकों के लिए रखना चाहते हैं या सिर्फ अपनी खुशी के लिए। केदार ने तब मेहताब को समझाया, देखो सेट पर अभिनेत्री और निर्देशक का रिश्ता पिता-पुत्री का होता है। केदार की यह बात मेहताब के दिल को छू गई और उसने केदार के सामने यह शर्त रखी कि दृश्य के फ़िल्मांकन के समय सेट पर केवल वहीं मौजूद रहेंगे।


'केदार शर्मा' ने वर्ष १९४७ में फ़िल्म 'नीलकमल' के जरिए राजकपूर को रूपहले पर्दे पर पहली बार पेश किया। राजकपूर इसके पूर्व केदार की यूनिट में क्लैपर बॉय का काम किया करते थे। फिर वर्ष १९५० में केदार ने फ़िल्म 'बावरे नैन' का निर्माण किया और अभिनेत्री गीता बाली को पहली बार बतौर अभिनेत्री काम करने का अवसर दिया। वर्ष १९५० में ही केदार की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'जोगन' प्रदर्शित हुई। फ़िल्म में दिलीप कुमार और नरगिस मुख्य भूमिका में थे। 


'केदार शर्मा' की एक विशेषता थी कि जिस अभिनेता-अभिनेत्री के काम से वह खुश होते उसे पीतल की दुअन्नी देकर सम्मानित किया करते थे। राजकपूर, दिलीप कुमार, गीता बाली और नरगिस को यह सम्मान प्राप्त हुआ था।


उनके मारे हुए थप्पड़ और उनके द्वारा दी गयीं चवन्नियां जिसके नसीब में आईं, वो मशहूर हो गया। ये थे केदार शर्मा। फिल्मों में हीरो बनने आए थे, लेकिन अभिनय के अलावा फिल्मों के जिस क्षेत्र में हाथ डाला कामयाबी ने कदम चूम लिये।


'केदार शर्मा' काम के प्रति बेहद सख़्त थे। वे अपनी फिल्म के सेट पर जरा सी भी अनुशानहीनता नहीं बर्दाश्त करते थे। राजकपूर जब उनके असिस्टेंट थे तब केदार शर्मा ने उनकी जरा सी चूक पर उन्हें थप्पड़ जड़ दिया। “हमारी याद आएगी” के सेट पर उन्होंने तनूजा को चांटा मारा था। इन्हीं केदार ने फिल्म “नील कमल” में पहली बार राजकपूर और अभिनेत्री के तौर पर पहली बार मधुबाला को मौका दिया। बाद में भारतीय फिल्मी दुनिया में इन दोनों सितारों की क्या हैसियत बनी यह बताने की जरूरत नहीं है।


१९४९ में केदार शर्मा ने फिल्म “नेकी और बदी” का निर्देशन किया, इसमें संगीत देना था स्नेहल भॉटकर को, लेकिन रोशन नाम के एक नौजवान की कुछ धुनें केदार शर्मा को बेहद भा गयी थीं। लिहाजा फिल्म में रोशन को बतौर संगीतकार मौका दे दिया। उन्होंने भारत भूषण को “चित्रलेखा” में तब मौका दिया जब भारत भूषण काम की तलाश में कड़ा संघर्ष कर रहे थे।


'केदार शर्मा' जी के एक और हुनर पर नजर डालते हैं। फिल्म “बावरे नैन” (१९५०) का मुकेश का गाया गीत “तेरी दुनिया में जी लगता नहीं वापस बुला ले” और मुकेश और गीता दत्त का गाया इसी फिल्म का गीत “खयालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते” या फिर देवदास का सहगल का गया ये गीत “बालम आए बसे मेरे मन में” और सहगल का ही फिल्म “जिंदगी” (१९४०) का गाया ये गीत “मैं क्या जानूं क्या जादू है जादू है” और मुबारक बेगम का गाया कालजयी गीत “कभी तन्हाईयों में यूं हमारी याद आएगी”। ये सभी गीत केदार शर्मा की कलम से निकले थे।


'केदार शर्मा' बच्चों के प्रति भी काफी संवेदनशील थे। उन्होंने बच्चों के लिए भी कई फ़िल्में बनाईं जिनमें “जलदीप”, “गंगा की लहरें”, “गुलाब का फूल”, “26 जनवरी”, “एकता”, “चेतक”, “मीरा का चित्र”, “महातीर्थ” और “खुदा हाफ़िज़” शामिल हैं


'केदार शर्मा' जी को कई पुरुस्कारों और सम्मान से नवाजा गया।

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार १९५६ में सर्वश्रेष्ठ बाल फ़िल्म "जलदीप" के लिये दिया गया।

इंडियन फ़िल्म डायरेक्टर्स एसोसिएशन लाइफ़टाइम अचीवमेंट अवार्ड

भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए १९८२ में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी से स्वर्ण पुरस्कार

और मरणोपरांत महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज कपूर पुरस्कार १९९९ में दिया गया।


लगभग पांच दशक तक अपनी फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिल पर राज करने वाले फिल्मकार 'केदार शर्मा' २९ अप्रैल १९९९ को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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