लॉक डाउन के साइड इफेक्ट्स- 2 /:डा.. मधुकर तिवारी
कोरोना का हर दिन रूप डरावना होता जा रहा है। दिल दहल जा रहा है। क्या होगा अभी भारत मे। सरकार के कदम संतोष जनक है। 21 दिन में दो दिन बीत गए । पूरा देश कैद है। यह कैद देशहित के लिए है। हर कोई टीवी चैनलों पर नजर गड़ाए बैठा है। कितने कोरोना के केश आज देश मे बढ़े ? बढ़ती हुई संख्या से हर कोई भविष्य के संकट को लेकर भयभीत है। अब क्या होगा इस देश का?
कोरोना महामारी ने जो कुछ किया वह भारत की गरीब मध्यम और अमीर वर्ग के जनता के जेहन में हमेशा के लिए जिंदा रहेगा। देश भर से एक दुखद तस्वीर सामने आ रही है। हर बड़े महानगर से पलायन की। मुंबई दिल्ली कोलकाता जैसे महानगरों से लाखों गरीब दिहाड़ी मजदूर वर्ग अपने अपने परिवार व मित्रों के साथ पैदल पलायन कर चुका है। लाकडाउन ने हर आवागमन को बाधित कर दिया है। छोटे छोटे बच्चों को गोद मे लिए माँ बाप कामभर के समान का बोझा लिए अपने अपने गाँव को पैदल ही चल दिये है। भूखे प्यासे यह वर्ग शरीर में बची ऊर्जा भर कई किलोमीटर हर रोज चल रहे हैं। हाईवे रोड वीरान है। पर पैदल चलने वाले ये लोग ही दिख रहे हैं। उनके साथ चले बच्चे कभी माँ के तो कभी बाप के गोद में तो कभी पैदल कदमताल मिला कर साथ दे रहे। कोरोना के प्रकोप के बाद देश की यह एक बेहद ही मार्मिक तस्वीर सामने आई है। इन मासूम बच्चों को कोरोना की भयानक रूप का अंदाजा नही है। बस अपने माँ बाप के चेहरे पर व्याप्त भय और परेशानी को देख कुछ अनहोनी की आशंका का अंदाजा लगा ले रहे हैं। रास्ते मे हर बाजार दुकान ढाबा बंद मिल रहा है। माहौल में व्याप्त सन्नाटा भी उनके भय को बढ़ाने में सहयोग कर देता है। रास्ते की रिहायशी बस्तियों के बाशिंदे अदृश्य वायरस कोरोना के फैलने के भय से इन सब के सहयोग से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। ये बाशिन्दे बस झुंड के झुंड सड़को पर पैदल भागते लोगों को दूर से देख रहे हैं।
यह गजब का भयावह नजारा देखने को मिल रहा है। इस बात की कल्पना शायद कभी भी न रही होगी कि यह दिन भी यह विकासशील देश देखेगा। जिस देश ने अरबों के राफेल की डील पर आरोप प्रत्यारोप का नजारा देखा। चंद्रयान भेजने की वैज्ञानिकता को इस देश के लोग अनुभव किये। बुलेट ट्रेन चलाने का संकल्प इसी देश ने लिया है। आज राफेल बुलेट ट्रेन चंद्रयान जैसे विषय को एक सूक्ष्म वायरस की विभीषिका ने नेपथ्य में फेंक दिया है। उस वायरस को राफेल से भी नही मार सकते। उसके डर से भागने के बुलेट ट्रेन भी काम नही आएगी। चंद्रयान उसका कुछ विगाड़ भी नही पायेगा।
आज उस देश का नागरिक खतरनाक वैश्विक वायरस के चलते सड़को पर पैदल यात्रा करने को मजबूर हैं। करोड़ो नागरिक घर मे कैद है। इन पैदल चल रहे लोगो को कही प्रशासन तो कही पुलिस के जवान कुछ संस्था स्वयंसेवक खाने का पैकेट देकर एक सुखद मानवीय संवेदना का परिचय दे रहे है। बड़े महानगरों से यह पलायन जारी है। कुछ अनहोनी हो जाने के डर को दिल मे लिए यह मजदूर अपने घर देहरी तक हर हाल में पैदल ही पहुँच जाना चाहते है। उन्हें विश्वास है कि अपने घर पहुंच कर ही वो सुरक्षित रह सकते हैं।
सरकार और प्रशासन कर भी क्या सकता है। उसे देश के करोड़ों नागरिकों को बचाने के लिये लागू लाकडाउन का पालन कराने की मजबूरी है। महानगरों से पलायन किये ये मजदूर सड़क पर अभी भी पैदल चल रहे हैं। अभी शायद कोई अपने मंजिल तक पहुंचा भी नही होगा। ये जहाँ जगह पा रहे हैं सुस्ता ले रहे हैं। रात काट लें रहे हैं। फिर सुबह अपने मंजिल को निकल ले रहे हैं। कुछ मीडिया के लोग इस तस्वीरों को कैमरे में कैद कर कवरेज भी दे रहे हैं।
महानगरों से पलायन करने की इनकी अपनी मजबूरी है। फर्म फैक्ट्री जहाँ ये काम करते थे। वो बन्द हो गए है। मजदूरी वेतन के नाम पर जो रुपए मिले होंगे वो इनके रास्ते मे ही खर्च हो जाएंगे। मालिकों ने इस कठिन दौर में इनको जो कुछ दिया होगा वह इनके लिए नाकाफी साबित होगा। दुखद तो यह है कि ये इस कठिन समय मे अपने परिवार से कट गए है। मोबाइल डिस्चार्ज हो गए है। चार्जिंग के सारे विकल्प बन्द है। कुछ के बीबी बच्चे गाँव मे उनके आने का इंतजार कर रहे हैं। लाखों गाँवो में चूल्हे नही जल रहे। इन मजदूरों के परिवार के लोग पैदल चलने की सूचना पाकर अनहोनी की चिंता में खाना पीना छोड़कर पहुच जाने का इंतजार कर रहे हैं। सड़कों पर चल रहे ये मजदूर अपने जिला जवार गाँव पड़ोसी का झुंड बना चुके है। चलते जा रहे हैं कब कैसे कितने दिन में ये पहुचेंगे यह भविष्य के गर्भ में है।
अभी तो इन मजदूरों को दूसरी लड़ाई अपने गाँव कस्बे में भी लड़नी होगी। जब खबर आग की तरह फैलेगी की मुंबई से दिल्ली से और सूरत से कई और शहर से झुंड में लोग गाँव आये है। इनके पास न जाओ कही कोरोना का वायरस न लेकर आये हो। इनके ऊपर गाँव का दबाव बनेगा कि कोरोना का टेस्ट कराओ। उसकी तो शामत आ जायेगी जिसे जरा से मौसम बदलने के चलते बुखार सर्दी होगी। लोग उसे तो प्रशासन के हवाले भी कर देंगे। ये बेचारे मजदूर अभी तो एक लड़ाई गाँव तक पहुंचने की लड़ रहे हैं। दूसरी लड़ाई इनको गाँव के कोरोना का निगेटिव साबित करने की लड़ना होगा।
हमारे देश के तेजस्वी नेतृत्व को इस बारे कुछ फैसला लेना चाहिए। सब कुछ रुका हुआ है। जब हम अपने विदेश में रह रहे उन नागरिकों को कोरोना प्रभावित देशों से हवाई जहाज से लाद कर अपने वतन ला सकते हैं। तो जो बेचारे अपने देश मे एक जगह से दूसरे जगह जाने की चाह रखते है। उनको कोरोना के बचाव के सुरक्षित उपाय कर उनके गांव घर तक पहुंचने की व्यवस्था तो कर ही सकते है। क्यो उनको सड़कों पर बिलबिलाते हुए छोड़कर एक तमाशबीन बने है। विकट संकट का दौर है यह मजदूर वर्ग हमारे देश के विकास में एक बड़ी भूमिका रखता है। आज वह सड़क पर पैदल सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा के लिए भूखे प्यासे चलते हुए जा रहा है। उसके लिए कुछ नही किया जा सकता क्या ?
चलते चलते एक सुखद खबर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ट्वीटर से मिली है कि वह उत्तराखंड और बिहार के रोड पर फंसे मजदूरों को सुरक्षित घर पहुचाने के लिए मदद करने का काम करेंगे। धन्यवाद प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जिसने दुनिया का ध्यान इस विषय पर दिलाया।
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