सोमवार, 29 मार्च 2021

होली का अपना कोई रंग नहीं होता/ सुरेंद्र सिंघल

 होली का अपना कोई रंग नहीं होता/ सुरेन्द्र सिंघल 


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होली का अपना कोई रंग नहीं होता

 हवा में लटकी हुई 

बादलों की बूंदों से

 होकर गुजरती है जब रोशनी

 खिलखिलाने लगता है आकाश में

 सतरंगा फूल रोशनी का 

रोशनी का अपना कोई रंग नहीं होता

 यूं तो

जिंदगी का भी नहीं होता है कोई रंग

 आंसू और मुस्कान बना देते हैं उसे विविध रंगी

वैसे होली का भी कोई रंग नहीं होता

सराबोर हो जाती है होली 

रंगों से 

गले मिलते हैं जब 

पंडित राधेश्याम 

लाला अमीर चंद 

दीनू मोची

 जान मेसी 

फखरुद्दीन 

कसकर

 इतना कसकर

 नहीं गुजर पाती इनके बीच से

 जहरीली हवा 

जाति मजहब या पैसे की

रंग छिटकने लगते हैं होली में 

आंखें करने लगती है बातें 

आंखों से 

उंगलियां सुनने लगती हैं

संगीत जिस्मो का 

कुलांचे भरने लगता है पैरों में 

फागुन का हिरन 

थिरकने लगती है होठों पर

 बांसुरी मोहब्बत की 

खिलने लगते हैं देह पर 

टेसू के फूल 

गालों पर उग आते हैं 

पीले , काले, लाल गुलाब 

होली भीज जाती है 

सर से पैर तक

 अनगिनत रंगों से 

होली का अपना कोई रंग नहीं होता


                                सुरेंद्र सिंघल


             अब कि जब


अब कि जब रंग बन चुके हैं जिंस 

और मंडी में उतर आए हैं 

बोलियां खुद लगा रहे अपनी 

अब कि जब रंग हो चुके अश्लील

 और बेशर्म मॉडलों की तरह

 रैंप पर कैटवॉक करते हैं 

अब कि जब रंग बन चुके खूनी

और मजहब का ओढ़कर चोला

खौफ की ही जुबान बोलते हैं 

आज होली है 

अपने गालों पर 

मेरे हाथों को रंग मलने दे 

रंग मंडी से निकल आएंगे

 रंग हो जाएंगे पवित्र बहुत 

तेरी आंखों में हया है जैसे 

रंग हाथों से छोड़कर हथियार

 अपने होठों से करेंगे बौछार 

चुम्बनो की 

चिपक जो जाएंगे तेरे होठों पर

 मोहब्बत बन कर

और रंगीन मिजाज ये रंग

 तेरा चेहरा गुलाब कर देंगे


सभी को होली की रंगीन शुभकामनाएं

                                 सुरेंद्र सिंघल

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