सोमवार, 13 जुलाई 2020

सतिंदर गुप्ता की 10 कविताएँ





एक  शाम  हम  तुम   टैला   किये   सनम
बारीश थी धीमी धीमी सावन का था मौसम

बदली से घिरा चांद जो मुझ को नजर आया
देखा  वोह   आसमा  पे   चेहरा  तेरा   सनम
एक   शाम   हम   तुम  टैहला   किये   सनम

एक   चांद   आसमां   पे   एक   मेरे   सामने
उन  में  से जो  हसीं था वो सामने  मेरे  सनम
एक   शाम   हम   तुम   टैहला   किये   सनम

खुश  रहने  की जो तुम नें  दिलाई  थी  कसम
यादों  मे  खुश  हूं  तेरी   मैं  रातो   दिन  सनम

एक   शाम    हम    तुम   टैला   किये    सनम
बारिश  थी धीमी धीमी  सावन  का था  मौसम
सावन का था मौसम       सावन का था मौस

2

बहुत कठिन है डगर  तेरे दर की
डगर तेरे दर की डगर तेरे दर की
बहुत कठिन है  डगर  तेरे दर की

कैसा तू ने जग ये बनाया हर कोई उस में है चकराया
ना कोई  राह  मिले  छूटन  की रे
बहुत कठिन  है डगर  तेरे दर की

बहुत थे निकले तुझे ढूंढने कोई न्यारा तुझे मिल पाया
वो नां सोचे  फिर  लौटन  की रे
बहुत कठिन है डगर तेरे दर की

रात दिन तुझे मन है पुकारे चलते चलते पांव भी हारे
मैं राह  तकूं  तेरे  आवन  की रे
बहुत कठिन है डगर तेरे दर की

जो मैं भला बुरा हूं हूं तो तेरा तुझ बिन मेरा कौन बसेरा
सूझ  बूझ  मिट्टी मेरे  मन की रे
बहुत कठिन है डगर तेरे दर की

आजा अब तू कहां छुपा है तेरे दर्शन को सांस रूका है
जीवन आस नहीं पर भर की रे
बहुत कठिन है डगर तेरे दर की

बीच भंवर में फंसा हुआ हूं कौन तुझ बिन पार लगाये
आ गई बेला अंत  सिमरन की रे
बहुत कठिन है डगर  तेरे दर की
डगर तेरे दर की डगर तेरे दर की
बहुत कठिन  है डगर  तेरे दर की

3

 ओ दुनिया के सुंदर ईश्वर सबमें तू है समाया
लाख जतन कर के भी कोई तुझको देख ना पाया
जुगनी कहती है कहती है जुगनी कहती है
ओ‌‌ओओ जुगनी कहती है

अंदर तू है बाहर तू है नीचे तू है उपर तू है
दायें तू है बांयें तू है धरती तू अंबर भी तू है
तू ही कन कन में है समाया फिर भी तुझे कोई समझ ना पाया
जुगनी कहती है कहती है जुगनी कहती है
ओओओ जुगनी कहती हैं

रूह भी तू और दिल भी तू है धड़के तू धड़क भी तू हो
भीज भी तू है खेत भी तू है बोता‌ तू उगता भी तू है
तू काटें कटता भी तू है खुद ही पकाये पकता तू है
जुगनी कहती है कहती है जुगनी कहती है
ओओओ जुगनी कहती है

तुझ से यह तन तूने बनाया आत्मा बन है उसमें समाया
हर कोशिश कर थक हारा हूं आत्मा को मैं ढूंढ ना
पाया
इस तन किस कोने में छिपा है ना कभी तू सामनेआया
जुगनी कहती है कहती है जुगनी कहती है
ओओओ जुगनी कहती है

अब तो मेरी उंगली पकड़ ले और पकड़ कर छोड़ ना देना
भटका हुआ मुसाफिर हूं मैं मुझको राह तेरी  ले जाना
बिन तेरे मैं टिक ना सकूं गा तू चाबी मैं तेरा खिलौना
जुगनी कहती है कहती है जुगनी कहती है
ओओओ जुगनी कहती है

खुद ही मिट कर तुझ में समाऊं एसी मुक्ती मैं ना चाहूं
नीडर हो तेरी दुनिया में फिरूं और गुन तेरे गाऊं
शरण तेरे चरणों में पाऊं यह वरदान मैं तुझसे चाहूं
जुगनी कहती है कहती है जुगनी कहती है
ओओओ जुगनी कहती है

स्विकारो मेरा प्रणाम तू ही राधे तू ही शाम
तू ही सीता तू ही राम तू शिवशक्ती तू हनुमान
रखना सबको सुख शांति से हे परमेश्वर है भगवान
जुगनी कहती है कहती है जुगनी कहती है
ओओओ जुगनी कहती है ओओओ जुगनी कहती है

4


उमड   घुमड   घन  बरसे   बदरा
गरज   घुमड   घन   बरसे   बदरा

आज  ‌मिला  मोहे   प्रीतम ‌ प्यारा
मन  का  मीत  मिला  मोहे  प्यारा
आज    उगा    इक   नेया   सवेरा
उमड़   घुमड़   घन   बरसे   बदरा

मन पुलकित मोरा तन पुलकित है
रोम   रोम    पुलकित    है    मोरा
भरा   हर्श  से   आज   मन   मोरा
उमड़   घुमड़   घन   बरसे   बदरा

हरियाली         खेतों        लैहराये
जगा      जगा      मेंडक      टर्राये
गुल्शन    गुल्शन    फूले     पसारा
उमड़    घुमड़ ‌‌  घन   बरसे   बदरा

मन   की   प्यास   मिटा  दे   प्रीतम
तन  की   अगन   बुझा   दे   प्रीतम
बरसा    प्रीतम    प्रेम    की    धारा  ,
उमड़    घुमड़   घन    बरसे   बदरा

एक    दूजे    मे    आ   खो    जायें
दो    तन    जान    एक   हो   जायें
ना     कुछ     तेरा     रहे   ना   मेरा
उमड   घुमड   घन    बरसे    बदरा
गरज    गरज   घन    बरसे    बदरा
उमड़   घुमड़    घन    बरसे    बदरा

5


 : गुरुर     ब्रम्हां    गुरुर     विशनू  ‌   गुरुर‌     देवो    महेश्र्वरा
गुरुर    साक्शात   पर    ब्रह्म्म   तस्मैं  श्री   गुरू   वे  नम्हां

गुरू की शरन में आ जा रे बंदे‌ वही सत की राह ले जाये गा
उंगली   पकड  कर  हाथ  में  तेरी  हरी  दर्शन  करवाये  गा
गुरु की शरण में आ जा रहे बंदे

कू    संस्कार    को   धीरे    धीरे   सू   संस्कार    बनाये   गा
तेरे   मन   को    अंदियारे   से    प्रकाश   में   ले   जाये   गा
गुरू की शरन में  आ जा रे बंदे

मन  के  भये  को  दूर  करे  गा  मन  को  अभेय   बनाये गा
मोह‌   जाल   से   मुक्त   करे   गा    स्वैराचार    मिटाये   गा
गुरू की शरन में आ जा रे बंदे

दुनियां    दारी    कैसे    करनी    खूबी    से   समजाये  गा
संसार   को   करते   करते   राहे   मुक्ती  ले   जाये       गा
गुरू की शरन में आ जा रे बंदे

संग  गुरू  के  चलते  चलते   हरी   नाम  जप  करते  करते
खुद  ही  में  खो  जाये  गा  जब  खुद  ही  में  खो  जाये  गा
राधे   शाम  को   पाये   गा   तू   राधे   शाम   को  पाये   गा
गुरू की शरन में आ जा रे बंदे‌ वही सत की राह ले  जाये गा
ऊंगली पकड कर हाथ में तेरी हरी  दरशन करवा दो
       ‌‌   
6



आडी  टेडी  पगडण्डी  पे  तू  नाचती  आये
नागनं सी बल खाती खाती वापस लौट जाये
इस   तेरी  अदा  पे  जग  सारा  मरता   जाये
री जगसारा मरता जाये

वन देवी सी बन के तू जब‌  वन में घूमने जाये
तान  सुरीली  सुन के  तेरी पंछी  भी चैहचाये
वन देव  भी देख  तुझ को अपने  होश गवाये
इस  तेरी   अदा  पे  जग  सारा   मरता  जाये
री जग सारा मरता जाये

देख  के तेरी  खूब  सूरती  परियां  भी  शर्माये
धरती  पर  तुझे   देखने   अपसरा   आ  जायें
देख  स्वर्ग में बैठा  तुझ  को इद्रं  भी  ललचाये
इस   तेरी   अदा  पे  जग   सारा  मरता   जाये
री जग सारा मरता जाये

हर कोई  है  अपने  दील  में तुझे  बसाना  चाहे
बडा ही प्यारा रूप ये तेरा सब के मन को भाये
छोटी छोटी बातों  पे दील  खोल के तू  मुस्काये
इस   तेरी  अदा  पे   जग   सारा   मरता   जाये
री जग सारा मरता जाये
आडी  टेडी   पगडण्डी   पे  तू   नाचती   आये
नागन सी  बल खाती खाती  वापस लौट  जाये
इस   तेरी  अदा   पे   जग  सारा   मरता   जाये
री जग सारा मरता जाये
                             
7

आज  वसुंधरा  मुस्काए  है
कोई   प्रेमरस    ‌‌बरसाए   है
आज   वसुंधरा   ‌मुस्काए  है

यशोदा के घर  धूम  मची  है
शाम  की मीठी बंसी बजी है
हर प्रानी  का  जो  जीवन  है
वो ‌  बन   वर्शा   बरसाए   है
आज   वसुंधरा   मुस्काए  है

नंद  खुशी  से  भर  आया  है
सब  को  न्योता  दे  आया  है
अंबर  पे  सब  मिल   देवगन
खुशी  का   शंख   बजाएं   हैं
आज   वसुंधरा   मुस्काए   है

चांद   सितारे   भी   गगन  से
आज‌‌    चांदनी    बरसाए   है
कन कन जाग उठा धरती का
झुम      ‌झूम      लैहराए   ‌  ह‌
आज   वसुंधरा    मुस्काए   है

शाम ‌ जो  धरती  पर  आए  हैं
सुन    राक्ष्सगन     घबराए   हैं
गोपालजन  सब  नाचें  गाएं हैं
और  ‌ गोपियां  रास  रचाए  हैं
आज    वसुंधरा    मुस्काए  है
कोई    प्रेमरस     बरसाए ‌‌   है
आज    वसुंधरा  ‌ ‌ मुस्काए   है

   
8


पहली नज़र‌‌ में लूट ले गेई भोला दिल मेरा परदेसन एक प्रदेसन एक परदेसन

आंख औ  दिल में झगड़ा लगा गई   परदेसन
 एक प्रदेसन एक प्रदेसन

दिल ने कहा है तेरी खता ओ आंख दिवानी ये क्या किया
सामने तेरे मुझको चुरा गई प्रदेसन  एक परदेसन एक परदेसन

वो गांव की छोरी बोली भाली हरिनी जैसी आंखों वाली
देखते देखते मन में समां गयी परदेसन एक परदेसन

भेड़ों को थी चराने आई चंचल मन मस्तानी आई
तिरछी नजर का तीर चला गई प्रदेसन एक परदेसन

अब चैन न दिल को आये है सारी रैना जागत जाये है
एक ठंडी ठंडी आग लगा गवोई परदेसन एक परदेसन एक परदेसन

पहली नज़र में लूट ले गेई भोला दिल मेरा परदेसन एक परदेसन एक परदेसन

9
                         


सुन  गोरिये   पहाड़ों   वालिये  मैं  तुझ   पे  जांन   लुटा बैठा
चाहे  तार  इसे  चाहे  मार  इसे  दिल  तेरे   हवाले   कर बैठा
सुन  गोरिये   पहाड़ों   वालिये   मैं  तुझ   पे  जांन  लुटा बैठा

तेरे बस में  कर  दी है  जिंदगी जीस  ओर  तू  चाहे मोड़ इसे
जो चाहे  बना  दे  बन जाऊं  सारे अरमां  तुझ  पे  लुटा बैठा
मैं  तुझ   पे  जांन  लुटा  बैठा   दिल   तेरे   हवाले   कर  बैठा

तुझे  पा  लेने की  ख्वाइश  है  अब  और न कोई  आस  मुझे
जो कुछ था सब  वो पास  मेरे   तेरी चाह में वो  भी गंवा बैठा
मैं  तुझ  पे  जांन  लुटा   बैठा   दिल   तेरे   हवाले   कर  बैठा

तेरे  प्यार  में  ऐसा‌‌  डूबा  हूं  अब  बचने  की  कोई  राह  नहीं
मर  जाऊंगा  ले  कर  नाम तेरा‌  हर सांस  मैं तुझ पे लुटा बैठा ‌
मैं  तुझ   पे   जांन   लुटा   बैठा   दिल  तेरे   हवाले  कर  बैठा
चाहे   तार  इसे  चाहे   मार  इसे  दिल   तेरे  हवाले  कर  बैठा
मैं   तुझ   पे  जान   लुटा   बैठा  दिल   तेरे   हवाले  कर  ‌बैठा
                   

10


: सो ही  जन  पौहंचे  ईश्र्वर धाम
जिस  का  मन  बना  सेवा  ग्राम

सब   की   चिंता    दूर   करें   जो
खुशिया   बांटना  जिस  का काम
जिस   का  मन  बना   सेवा  ग्राम

राम   नाम     का    पाठ    पढ़ावे
सोंपे  हरी  को   किये  सब   काम
जिस  का   मन  बना   सेवा  ग्राम

तन  ऊजला और  मन भी उजला
रोम  रोम   बसा   हरी   का   नाम
जिस  का   मन  बना   सेवा   ग्राम
सो   ही  नज   पौहंचे   ईश्वर   धाम
जिस  का   मन   बना   सेवा   ग्राम

                  

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