बुधवार, 22 जुलाई 2020

जला दो / मुक्तिबोध



अगर मेरी कविताएं पसन्‍द नहीं
उन्‍हें जला दो,
अगर उसका लोहा पसन्‍द नहीं
उसे गला दो,
अगर उसकी आग बुरी लगती है
दबा डालो,
इस तरह बला टालो
लेकिन याद रखो
यह लोहा खेतों में तीखे तलवारों का जंगल बन सकेगा
मेरे नाम से नहीं, किसी और के नाम से सही,
और यह आग बार-बार चूल्‍हे में सपनों-सी जागेगी
सिगड़ी में ख़यालों सी भड़केगी, दिल में दमकेगी
मेरे नाम से नहीं किसी और नाम से सही।
लेकिन मैं वहां रहूँगा,
तुम्‍हारे सपनों में आऊँगा,
सताऊँगा
खिलखिलाऊँगा
खड़ा रहूँगा
तुम्‍हारी छाती पर अड़ा रहूँगा

-"मुक्तिबोध"

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