रविवार, 19 जुलाई 2020

पति कौन?



 (अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा)

तामांग अरुणाचल की प्रसिद्ध जनजाति अपातानी के मुखिया की बेटी थी। देखने में गोरी-गोरी, हंसती आंखों वाली तामांग के सुनहरे बालों को देखकर जनजाति के लोग उसे सूरज देवता की बेटी मानते थे।

तामांग गायन-नृत्य के साथ-साथ हथकरघे पर वस्त्र बनाने में भी बहुत निपुण थी। इसलिए उसका पिता डोनीगर्थ अपनी इकलौती बेटी का डिंग सिल, आचू आब्यों या ट्यूबो लिओबा जैसे देवपुरुषों में से किसी एक से विवाह करके धन कमाना चाहता था! उनकी जनजाति का यही रिवाज था कि लड़केवाले लड़की के पिता को लड़की ब्याहने के लिए धन देते थे। उस दिन अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों में महिलाओं के लिए हथकरघा के वस्त्र बनाने की प्रतियोगिता हुई, और उसके बाद पुरुषों के लिए तीर-कमान की प्रतियोगिता हुई।

हर वर्ष की तरह तामांग को प्रथम पुरस्कार मिला। इस वर्ष तो तामांग ने कमाल कर दिया था। आकाश से नीले रंग की रेशमी शॉल पर चांद, सूरज और तारे, सफ़ेद, सुनहरे, लाल और गुलाबी रंग में बुने थे। चारों तरफ़ नक्षत्रों की झालर बुनकर शॉल को सजाया था। विश्वास ही नहीं होता था कि यह बुनी हुई शॉल है। लगता था कि कुशल चित्रकार ने सुंदर तस्वीर बनाई हो।

उधर आबूतानी नामक युवक ने तो तीर-कमान के कमाल से उड़ते हुए नक़ली पंछी, तितलियों के ऐसे निशाने साधे कि और कोई उसके आसपास भी नहीं रह पाया। प्रतियोगिता के बाद हुए नृत्य में तामांग और आबूतानी पहली बार मिले, और पहली मुलाक़ात में ही एक-दूसरे को चाहने लगे। उनको नृत्य करते देख लोग भी कह उठे, “क्या सुंदर जोड़ी है!”

बाद में वे चुपके-चुपके मिलते। क्योंकि दोनों को पता था कि तामांग के पिता किसी भी तरह दोनों के विवाह के लिए मंजूरी नहीं देंगे। इसलिए उन दोनों ने चुपके से विवाह कर लिया।

एक दिन तामांग के पिता ने उसे बताया कि तीन देवपुरुष उससे विवाह करना चाहते हैं। तामांग ने बताया कि उसका विवाह हो चुका है। पिता ने कहा कि वह ऐसे विवाह को नहीं मानता, न ही वे तीनों देवपुरुष मानेंगे। वह उनको नाराज़ नहीं कर सकता। इसलिए एक ही उपाय है। “क्या पिताजी?” तामांग ने पूछा। “सबको एकत्रित करके शर्त रखेगा। जो शर्त पूरी करेगा, वही तुम्हारा पति होगा।” तीनों देवपुरुष और आबूतानी को बुलाया गया। पहली शर्त है कि चारों को ज़मीन पर इस तरह नृत्य करना या कूदना होगा कि ज़मीन से संगीत ध्वनि आए।

शर्त सुनकर आबूतानी और तामांग परेशान हुए। पर आबूतानी की बहन ने कहा, “चिंता मत करो।” जहां आबूतानी को नृत्य करना था उसने वहां 'तालो' यानी पीतल की तश्तरियां मिट्टी के नीचे दबा दीं। नृत्य प्रारंभ हुआ। तीनों देवपुरुषों के नृत्य प्रारंभ हुए। तीनों देवपुरुषों के अनेक बार उछल-कूद करने पर भी कोई आवाज़ नहीं आई। आबूतानी ने जैसे ही नृत्य प्रारंभ किया, हर पदन्‍यास के बाद टन-टन की आवाज़ ने तार दिया। आबूतानी जीत गया।

पर पिता और तीनों देवपुरुष नहीं माने। एक और शर्त रखी गई। तीर-कमान से 'टंलो' यानी धातु के गोलाकार पर निशाना ऐसे साधना कि तीर वहीं 'टंलो" पर लगा रहे। इस बार भी आबूतानी की बहन ने उपाय बताया। उसने आबूतानी के तीरों की नोक पर मधुमक्खी के छत्ते से निकाली गई मोम लगाई।

पहले देवपुरुष ने निशाना साधा। उसका तीर 'टंलो' पर जाने से पहले ही गिर गया। दूसरे देवपुरुष ने भी तीर कसा, पर निशाना चूका। वह टंलो के पास से गुज़र गया। तीसरे देवपुरुष ने तीर 'टंलो' पर सही मारा। टन की आवाज़ भी हुई, पर तीर नीचे गिर गया। आख़िर में आबूतानी ने तीर मारा। वह सीधा 'टंलो' के मध्य में लगा और वहीं पर लगा रहा। यह शर्त भी आबूतानी ने जीत ली। “अब आख़री शर्त होगी अगर वह आबूतानी जीता तो वही होगा तुम्हारा पति।” तामांग के पिता और तीनों देवपुरुष बोले।

“यह तो बेईमानी है। हर बार आबूतानी के जीतने पर 'और एक शर्त! कहकर मुझे और आबूतानी को जुदा करने की कोशिश करते हो।" तामांग क्रोधित होकर बोली। गांव के बाकी लोगों ने तामांग का साथ दिया। लोगों का गुस्सा देखकर तामांग का पिता और देवपुरुष बोले, “अब वाक़ई में यह आख़री शर्त होगी।"

जो कोयले के टुकड़ों तथा मिट्टी के कुलड़े को सबसे दूर फेंकेगा, वही तामांग का पति होगा।

तामांग ने इस बार अपनी बुद्धि से काम लिया। उसने आबूतानी के कुलड़े के अंदर शहद लगा दिया और अपनी पालतू मधुमक्खियों को कोयले के चूरे से लथपथ कर दिया।

एक-एक करके तीनों देवपुरुषों ने कुलड़े फेंके और बाद में कोयले के टुकड़े। अब बारी आई आबूतानी की। उसने पूरे ज़ोर से मिट्टी का कुलड़ा दूर फैका जो तीनों के कुलड़ों से अधिक दूर गिरा। फिर उसने... मधुमक्खियों को मुट्ठी में पकड़कर हवा में फँका। शहद की ख़ुशबू से कुलड़े तक पहुंचीं, जबकि देवपुरुषों के कोयले के टुकड़े उनके कुलड़ों तक भी नहीं गए। लोगों ने आबूतानी की जय-जयकार करी। “कल सुबह इसी जगह तामांग का विवाह मैं आबूतानी से रचाऊंगा। सब लोग निमंत्रित हैं।” तामांग के पिता ने ऐलान किया।

सुबह दुल्हन के वेश में तामांग जब मैदान में पहुंची, तब हैरान हो गई। आबूतानी के रूप में चार जने खड़े थे। यह भी चाल थी।

“पहचानो कौन है पति, और उसे माला पहनाओ,” तामांग के पिता ने कहा।

तामांग ने थोड़ी देर आंखें मीची। फिर बोली, “मैं सबसे पहले हाथ मिलाऊंगी और फिर ही माला पहनाऊंगी।"

“बहुत खूब," तीनों देवपुरुष खुश होकर बोले। पर तामांग ने देखा, असली आबूतानी चुप खड़ा था। पहले देवपुरुष से जब तामांग ने हाथ मिलाया तो उसने ज़ोर से दबाया और आंख मारी। तामांग ने गुस्से से हाथ छुड़ाया। दूसरे देवपुरुष के पास पहुंचकर तामांग ने मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो वह इतना पगला गया कि बांहें पसारकर आगे बढ़ने लगा। तामांग खिसककर निकल गई। तभी तीसरे देवपुरुष ने उतावला होकर हाथ आगे बढ़ाया और तामांग का हाथ पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगा। बड़ी मुश्किल से तामांग ने अपना हाथ छुड़ाया। अब वह चौथे यानी असली आबूतानी के पास पहुंची। उसने आबूतानी से हाथ मिलाया। उसके परिचित स्पर्श तथा उसकी आंखों से छलकते प्यार से वह निश्चित हुई। उसे पूरा विश्वास हुआ और उसने आबूतानी को वरमाला पहनाई। तामांग के पिता और तीनों देवपुरुष शर्म से गर्दन झुकाए लोगों की झिड़कियां सुनते रहे। लोगों ने ख़ुशी से पुष्पवर्षा करके विवाह की रस्म पूरी कर दी।

(सुरेखा पाणंदीकर)

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