सोमवार, 13 जुलाई 2020

करामाती गड्ढा / सुभाष चंदर




कहानी एक करामाती गड्ढे की

सुभाष चंदर

यह कहानी एक गड्ढे की है । एक ऐसे  करामाती गड्ढे की जिसके बारे में मशहूर था कि उसे सीता मैया का वरदान प्राप्त था कि वह हमेशा  पानी से भरा रहेगा। जेठ की तपती धूप में जब नदियां तक जल की कमी का रोना रोती थी उस समय भी गड्ढे में पानी बना रहता  था । यह भी होता था कि कई बार पानी का स्तर धूप और गर्मी के कारण नीचे चला जाता  ।  ऐसे हालात में शाम तक ऐसी ही स्थिति दिखाई देती थी पर सीता मैया के प्रताप से सुबह को फिर गड्ढा  भरा हुआ मिलता था। सीता मैया के इसी प्रताप के कारण वहां एक मंदिर भी बन गया था - सीता मैया का मंदिर। उसमें एक  पंडितजी भी नियुक्त हो गए थे जो सीता माता की पूजा के माहात्म्य के साथ,  उनकी गड्ढे पर कृपा की भी कहानी सुनाते थे ।  यह कह सकते हैं  कि इस करामाती गड्ढे की कृपा से आसपास की बस्ती काफी चर्चित हो गई थी। गड्ढे के कई उपयोग भी थे। गर्मी के दिनों में गली के बच्चे मौका  पाते ही गड्ढे में कूद जाते थे और स्विमिंग पूल का पूरा मजा लेते थे। उनकी स्नान क्रिया के कारण कई बार उन्हें आंखों की बीमारी, खुजली आदि गिफ्ट के रूप में मिल जाती थी । गड्ढे के पानी के कारण मच्छरों को भी स्थाई रूप से आवास की सुविधा मिली हुई थी सो सामान्य रूप से मलेरिया की फसल बिना किसी खास परिश्रम के बारहों महीने उगा करती थीं।  बारिश वगैरह के मौसम में  डेंगू ,चिकनगुनिया आदि  बीमारियों का भी ब्योंत बना रहता था। चूंकि बीमारियों की तो कोई परेशानी थी ही नहीं। इसी कारण मोहल्ले के इकलौते डॉ डॉक्टर चड्ढा हमेशा व्यस्त रहते थे।
   ऐसा नहीं है  कि इस गड्ढे को भरने के यतन नहीं हुए। नगर पालिका ने कई बार कोशिश की । एक दो बार गड्ढा मिट्टी से  भरा गया । पर जाने क्या हुआ कि दिन में गड्ढा मिट्टी से भरा जाता, रात तक भरा रहता । पर सुबह होते ही सारी मिट्टी बाहर हो जाती। मिट्टी की जगह पानी ले लेता। दो बार ऐसा हुआ । तीसरी बार में  उम्मीद थी कि गड्ढा पूरी तरह भर जाएगा। उस दिन पंडित जी  ने   अपनी कथा में  भक्तों को ज्ञान दिया कि साक्षात सीता मैया अपने अनुचरों के साथ गड्ढे पर आती हैं  और अपनी देखरेख में भरे हुए  गड्ढे को खाली करवा जाती हैं ।   उन्होंने आगे कहा कि सीता मैया ने उन्हें सपने में दर्शन देकर कहा है कि अगली  बार ऐसा हुआ तो गड्ढा भरने वाले को सीता मैया का श्राप लगेगा। सपने की यह कहानी बड़े गोपनीय ढंग से अलग अलग लोगों द्वारा नगरपालिका के सुपरवाइजर के कानों तक ट्रांसफर कर दी गई।  घबराकर  सुपरवाइजर ने गड्ढे को भरने का विचार त्याग दिया , बात भी ठीक थी ,सीता मैया के क्रोध के सामने कौन पड़े ? इस प्रकार गड्ढा भरा ना जा सका।अपितु रात को सीता मैया की कृपा से उसकी मिट्टी बाहर निकल गई। मिट्टी की  जगह वहां पानी का बंदोबस्त हो गया। कहते हैं उस सुबह को भक्तों की आस्था सीता मैया पर और बढ़ गई।नतीजतन मंदिर की आमदनी भी बढ़ गई।
 सामान्य तौर पर गली के सब लोग इस गड्ढे के प्रताप से परिचित थे और उस पर श्रद्धा रखते थे।पर मन्नू जो था , वह इस गड्ढे के प्रति द्वेष रखता था और मौका लगते ही  सीता मैया से एडवांस में माफी मांगकर, गड्ढे को गलिया भी लेता था। उसके ऐसा पाप करने के पीछे  बड़ा सॉलिड कारण था। बात यह थी कि जब भी वह किसी काम पर लगने का जुगाड बिठाता, वह बीमार पड़ जाता।कभी खाज़ खुजली,कभी मलेरिया ,कभी कुछ।सरकारी अस्पताल वाला कंपाउडर  उसका रिश्तेदार था जो उसकी बीमारी का दोष उसकी गली की गन्दगी,उस न  भरने वाले गड्ढे को देता था।  हर बार वह गोलियों की पुड़िया के साथ यह सलाह मन्नू को थमा देता था कि " बेटे , फ्री की दवाई  चाहे जित्ती खा लो पर जब तक गड्ढे से  मुक्ति ना पाओगे,तब तक परमानेंट ठीक होने वाले ना हो।" किस्सा कोताह यह कि मन्नू धीरे धीरे  ये मानने लगा था कि परचून की दुकान से लेकर पेट्रोल पम्प तक की उसकी नौकरियां  गड्ढे के कारण होने वाली बीमारियों के कारण गई थी।सो मन्नू  को उस गड्ढे से खासी खुंदक थी।वह चाहता था कि यह नौकरीखाऊ गड्ढा किसी तरह सूख जाए।  इसके लिए वह हर रविवार को सीता मैया के मंदिर में प्रसाद चढ़ाता था और गड्ढे के भरने की प्रार्थना करता था। पर कुछ न हो रहा था ।आखिर एक दिन सीता मैया ने उसकी सुन ली।  उन दिनों गर्मी बहुत ज्यादा थी । गड्ढे में पानी काफी कम हो गया था । दो चार दिन ऐसे ही  चलता तो गड्ढे के सूखने की नौबत आ सकती थी।सो मन्नू की दिलचस्पी गड्ढे के सूखने में बढ़ रही थी। बस डर यही था कि कहीं ऐसा ना हो कि सीता मैया गड्ढे के प्रति दया ना दिखा जाएं और उसे रात को पानी से भरवा दें।  ऐसा हो गया तो सारा किया कराया पानी में मिल जाएगा। सो उसने तय किया कि वह अब से रात को गड्ढे की पहरेदारी करेगा।मन में यह भी था कि क्या पता सीता मैया गड्ढा भरवाने आएं तो उनके दर्शन भी हो जाएंगे  और वह वहीं उनसे डायरेक्ट विनती कर लेगा कि वह इस गड्ढे को उसके हाल पर छोड़ दें ताकि वह तसल्ली से कहीं नौकरी कर सके।  सो  उस रात वह  बारह बजे के बाद ही रामू के ठेले के पीछे छिपकर बैठ गया।
रात के तीन बजे तक वह ऐसे ही ऊंघता रहा । पर मैया तो दूर  कोई चिड़िया  तक दिखाई ना दी। उसे लगा कि उसकी रात बरबाद हो गई ।   यह सोचकर  वाह वापस घर जाने ही वाला था था कि तभी उसे एक आहट सुनाई दी। उसने आहट का पीछा किया किया तो  देखा कि दूर से लाल साड़ी में एक महिला  आती दिखाई दे रही है। उसके पीछे चार-पांच लोग और आते दिखाई दे रहे हैं। उत्कंठा के कारण उसके रोंगटे खड़े हो गए । उसने सोचा कि आज तो सीधे-सीधे मैया के दर्शन हो जाएंगे । उसने अपने आप पर गर्व का अनुभव भी किया ।थोड़ी देर वह इसी अवस्था में रहा। फिर उसने देवी मैया और उनके अनुचरों के ऊपर दृष्टि डाली। पर यह क्या ,जैसे ही लाल साड़ी वाली मैया और उनके अनुचर पास आए तो वह भौचक्का रह गया। देवी मैया के हाथ में बाल्टी थी,उसने मैया के अनुचरों की ओर देखा तो उनके हाथों में भी बाल्टियां विद्यमान थीं। सबके हाथों में बाल्टियां थीं  और वे गड्ढे की ओर बढ़ रहे थे । गड्ढे के पास जाते ही उन्होंने बाल्टियां से उसमे पानी डालना शुरू कर दिया । अब मन्नू के लिए रुकना असंभव था। वह तेजी से गड्ढे की ओर लपका ताकि निकट से देवी मैया के दर्शन कर सके। साथ ही उन्हें गड्ढे में पानी डालने से भी रोक सके। पर वह जैसे ही उनके निकट पहुंचा तो देखा कि लाल साड़ी में  देवी मैया  न होकर साक्षात डॉ चड्ढा की श्रीमती जी थीं।उनके ठीक पीछे स्वयं डॉक्टर साहब उपस्थित थे। डॉक्टर साहब के पीछे उनके तीनों सपूत और उनकी इकलौती कन्या थी जो सबके साथ   जल भरो अभियान में अपना योगदान दे रही थी।
अब जितना मन्नू चौंका,उतना ही डॉक्टर परिवार चौंका। उन्होंने कुछ कुछ उस वाक्य को भी चरितार्थ किया जिसे सनाका खा जाना कहते हैं। डॉक्टर साहब  पहले मिमियाए,फिर रेंकियाए और अंत में रिरियाने पर उतर आये। इस सारी प्रक्रिया का लब्बो लुआब सिर्फ इतना था कि जो चाहे ले लो पर किसी को  मत बताना। वरना सब बर्बाद हो जाएगा।पर मन्नू ने उनकी इन सरी क्रियाओं पर ध्यान नहीं दिया । वह अभी किसी और मूड में था। वह पहले सारा किस्सा जानना चाहता था।उसने डॉक्टर साहब  से गड्ढे के प्रति इस दरियादिली का असली कारण पूछा तो डॉक्टर ने  पहले अगर मगर , किन्तु परन्तु की टोपियां घुमाई । पर मन्नू नहीं माना । हारकर डॉक्टर साहब ने  उन्हें अपनी  एक  कविता सुनाई जो कुछ यूं थी:
गली में गड्ढा है
गड्ढे में पानी है
पानी से गन्दगी है
गंदगी से दाद खुजली है
पानी में मच्छर हैं
मच्छरों से मलेरिया है
मलेरिया हैं तो क्लीनिक है
क्लिनिक है तो बीवी के गहने हैं
अपनी दारू पत्ती है
सो जब तक सूरज चांद रहेगा
गड्ढे में पानी भरा रहेगा
बात है अपनी तय
सीता मैया की जय
 कविता बेशक नई थी पर वह गड्ढे की बदबू की तरह मन्नू के दिमाग में घुसकर बैठ गई। उन्हें डॉक्टर साहब  की प्रतिभा के प्रति श्रद्धा हो आईं। सो उन्होंने डॉक्टर साहब के चरण पकड़ लिए। फिर बाकायदा लमलेट हो गए।बोले -  गुरुदेव,अपना शिष्य बना लो।  मैं भी  भवसागर पार हो जाऊंगा। डॉक्टर साहब ने प्रसन्न होकर अपना हाथ  उनके सिर पर और बाल्टी उनके फैले हुए हाथों में थमा दी।      कालांतर में मन्नू उनके कंपाउंडर की गति को प्राप्त हुए। काफी दिनों तक उन्होंने यह कार्य संपन्न किया।  दिन में वह कंपाउंडर की ड्यूटी बजाते ,जरूरत पड़ने पर रात को गड्ढा भरो अभियान में योगदान देते। कुछ दिनों बाद वह डॉक्टर साहब की कन्या से लव - लव खेलने लगे। थोड़े दिनों की मशक्कत के बाद वह डॉक्टर साहब के दामाद की पदवी को प्राप्त हुए। डॉक्टर साहब के गुजर जाने के बाद उनका प्रोमोशन खुद कम्पाउन्डर से डॉक्टर के पद पर हो गया।  अलबत्ता उन्होंने अल्ल सुबह बाल्टी की कलम और पानी की रोशनाई से गड्ढे पर कविता लिखना नहीं छोड़ा।उनकी और पत्नी की कृपा से गड्ढा   पानी से लबालब भरा रहा ।
 सीता मैया जैसी तुमने मन्नू पे कृपा करी ,ऐसी सब भक्तों पर करियो।



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