दिनेश श्रीवास्तव:
कुण्डलिया छंद
*शिव*
(१)
करते वंदन राम भी,जिनके हैं दिन रात।
वही हमारे नाथ हैं,सीधी-सच्ची बात।।
सीधी- सच्ची बात,वही हैं देव हमारे।
भोले-भाले नाथ,सभी देवों में न्यारे।।
कहता सत्य दिनेश,त्रिविध कष्टों को हरते।
श्रावण भर जो भक्त,ध्यान आराधन करते।।
(२)
करिए श्रावण मास में,यजन-भजन शिव नाम।
इस विपदा के काल में,आएँगे शिव काम।।
आएँगे शिव काम,नाम अति पावन प्यारा।
धारण करते माथ, मातु गंगा की धारा।।
कहता सत्य दिनेश,चरण-रज माथे धरिए।
अति पवित्र यह माह,भजन शिव का नित करिए।।
(३)
होना जीवन में नहीं,प्यारे कभी उदास।
धर्म ध्वजा धारण करो,पाओ शिव को पास।।
पाओ शिव को पास,सदा हैं मंगलकारी।
उनसे रहते दूर, शम्भु, जो रहें विकारी।।
जिनके प्रभु हैं साथ,उन्हें क्या है फिर खोना।
कहता सत्य दिनेश,सदा मंगल ही होना।।
ॐ नमः शिवाय🙏
दिनेश श्रीवास्तव
[7/9, 22:09] DS दिनेश श्रीवास्तव: कुण्डलिया-
*सावन*
(१)
आया सावन झूम के,मन हो गया वसंत।
इस मन का मैं क्या करूँ,पास नहीं जब कंत।
पास नहीं जब कंत, प्यास कैसे बुझ पाए।
शीतल मंद फुहार,अगन सा तन झुलसाए।
कहता सत्य दिनेश,सजन बिन कभी न भाया।
निर्मोही फिर आज,यहाँ सावन क्यों आया।।?
(२)
झूला सखियाँ डालकर,गातीं कजरी गीत।
मुझको तो भाए नहीं,नहीं पास में मीत।
नहीं पास में मीत, गीत कैसे मैं गाऊँ।?
किसको मैं संगीत,यहाँ पर आज सुनाऊँ।?
मैं प्रियतम से दूर,गीत मुझको है भूला।
आएँगे प्रिय पास,तभी झूलूँगी झूला।।
(३)
डाली पर झूले पड़े,सावन गाए गीत।
नहीं पास साजन यहाँ, रूठ गए मनमीत।
रूठ गए मनमीत,नहीं अबकी हैं आए।
और नहीं संदेश,आज तक हमें पठाए।
नहीं बची अब शेष,बदन पर कोई लाली।
झूला बिन मनमीत,पड़ेगा कैसे डाली।।?
( ४)
सावन मनभावन लगे,बरसत रहत फुहार।
पर विरहन के गात पर,लगता ज्यों अंगार।।
लगता ज्यों अंगार,तपन से गात झुलसता।
सजन नहीं जब पास,जिया भी नहीं हुलसता।।
कहता सत्य दिनेश,विरह में क्या मनभावन।?
लगे महीना जेठ,अगन बरसाता सावन।।
दिनेश श्रीवास्तव
९४११०४७३५३
ग़ाज़ियाबाद
[7/9, 22:10] DS दिनेश श्रीवास्तव: कुण्डलिया-
*रिम-झिम*
( १)
सावन में भींगा बदन,रिम- झिम पड़ी फुहार।
खिला रूप अनुपम निरख,मन में उठा विचार।।
मन में उठा विचार,प्रेम आमंत्रण पाऊँ।
विरह व्यथा को भूल,मिलन का गीत सुनाऊँ।।
कहता सत्य दिनेश,रूप इतना मनभावन।
दिखा गया है आज,बरसता मुझको सावन।।
(२)
आया सावन झूम के,जगा गया मन प्यार।
रिम-झिम बूँदों ने मुझे,दिया एक उपहार।।
दिया एक उपहार,मिलन की आशा जागी।
जगा दिया उर प्यास,निराशा मन से भागी।।
कहता सत्य दिनेश,विरह का तपन बुझाया।
मधुर मिलन की आस,जगाने सावन आया।।
दिनेश श्रीवास्तव
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