बुधवार, 22 जुलाई 2020

संथाली कविता


निर्मला पुतुल की एक संथाली कविता

" वे दबे पाँव आते हैं तुम्हारी संस्कृति में
वे तुम्हारे नृत्य की बड़ाई करते हैं
वे तुम्हारी आँखों की प्रशंसा में कसीदे पढ़ते हैं
वे कौन हैं ? सौदागर हैं वे ..
समझो ....पहचानो , उन्हें बिटिया मुर्मू
पहचानो .

ये वो लोग हैं जो हमारे बिस्तर पर
करते हैं हमारी बस्ती से बलात्कार
और हमारी ही जमीन पर खड़े होकर
पूछते हैं हमारी औकात .

दिल्ली की गणतंत्र झांकियों में
अपनी टोली के साथ
नुमाइश बना कर कई कई बार
पेश किये गए तुम
पर गणतंत्र नाम की कोई चिड़िया
कभी आकर बैठी
तुम्हारे घर की मुंडेर पर ?

1 टिप्पणी:

प्रवीण परिमल की काव्य कृति तुममें साकार होता मै का दिल्ली में लोकार्पण

 कविता के द्वार पर एक दस्तक : राम दरश मिश्र  38 साल पहले विराट विशाल और भव्य आयोज़न   तुममें साकार होता मैं 💕/ प्रवीण परिमल   --------------...