🌹 नाबालिग सपने🌹
अंगों के थिरकन की भाषा ये मौन है,
अधरों के कंपन को समझे वो कौन है।
डरती हूं इस धड़कन की धड़क से,
प्रेम हुआ मुझको ये समझेगा कौन है।
बचपन की देहरी पर आ गई जवानी है
अल्हड़ नदी से मुझमें आई रवानी है।
बह जाऊं संग तेरे मन यही चाहे रे,
यौवन का पंछी अब करता किल्लोल है।
अधरों के कंपन को समझे वो कौन है।
सांसों की कोयलियां प्रीत गीत गाए रे,
सोंधी- बयार मुझे हर पल महकाए रे।
बाहों में तेरी बिन पंख उड़े जाती हूं,
सतरंगी सपने सजे मेरे रोम रोम है।
अधरों के कंपन को समझे वो कौन है।
भंवरों की गुनगुन अब रस घोले कान में,
मस्ती में झूंमू जब मिल के आऊं जान से।
कैसे खोल दूं मैं दिल के गहरे सारे भेद रे,
मीठे लगे आलिंगन बाकी सब गौड़ है।
अधरों के कंपन की भाषा ये मौन है।
नाबालिग सपने हैं प्यार बहुत गहरा,
प्राण हुए बगिया कांटो का इसपें पहरा।
मनभावन पिया संग फूलों में बस जाऊं,
शहद जैसे लगने लगे प्रेम भरे बोल हैं।
प्रेम हुआ मुझको यह समझेगा कौन है।
नर्तकी सा नाचे मन जब से छुआं ये तन,
जेठ की दुपहरियां में भी खिल गया यौवन।
सपनों की सेज सजी मिलन अब पास है,
साजन की बाहों में शब्द हुए मौन है।
अंगो के थिरकन की भाषा ये मौन है,
अधरों के कंपन को समझे वो कौन है
डरती हूं इस धड़कन की धड़क से,
प्रेम हुआ मुझको ये समझेगा कौन है।
डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"
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