रविवार, 26 जुलाई 2020

माया महामाया नारी


नारी मात्र महामाया का स्वरुप है। यही उद्भव है,विकास है,संहार भी है। नारी के बिना नर का अस्तित्व ही क्या है ? शिवा रहित शिव शव हैं—यह केवल शिव के लिए ही नहीं कहा गया है।नारी नव दलकमला है जबकि पुरुष अष्ठ दल कमल युक्त है।पुरुष नारी संभव है नारी पुरुष संभव नहीं है

अब हम उसके समर्पण-भाव की बात करते हैं। सच पूछा जाय तो एक स्त्री जितना सहज समर्पति हो सकती है,पुरुष कदापि नहीं। पुरुष के अहं के विसर्जन में बहुत समय लगता है,जब कि स्त्रियां मौलिक रुप से समर्पित होती है। यही कारण है कि स्त्रियों के लिए शास्त्र के बहुत से नियम ढीले हैं। उन्हें न उपवीती होने की आवश्यकता है और न गायत्री दीक्षा की । वे तो साक्षात महामाया की परम चैतन्य-जाग्रत विभूति हैं, फिर वाह्याडम्बर क्यों ! पवित्री धारण भी उनके लिए नहीं है। जवकि पुरुष की क्रिया उपवीत,गायत्री और पवित्री के वगैर अधूरा है। वह विविध मन्त्रों के बन्धन में बन्धा हुआ है। पुरुष के लिए बात-बात में नियम-आचार-विचार है और वाध्यता भी है। पुरुष के लिए मुण्डन अनिवार्य है- मरणाशौच में और जननाशौच में भी। अन्यान्य लौकिक-पारलौकिक क्रियाकलापों में भी मुण्डन को अत्यावश्यक कहा गया है। जबकि स्त्रियों के लिए सधवावस्था में केश-छेदन भी वर्जित है। मात्र नख-छेदन करके स्त्री शुद्ध हो जाती है। पुरुष सचैल(वस्त्र सहित) शिरोस्नान के वगैर कदापि शुद्ध नहीं हो सकता। जबकि स्त्रियां मात्र अधोवस्त्र परिवर्तन करके भी सायंकालीन क्रिया सम्पन्न कर सकती है। सचैल शिरोस्नान उसके लिए अनिवार्य नहीं है।

स्त्री का अध्वांग सर्ग-विस्तार क्षेत्र है,तो उर्ध्वांग सर्ग-सम्पालन क्षेत्र। स्त्री की पवित्रता और गरिमा इतनी है कि महादेवी पृथ्वी ने भी विष्णु से वचन लिया था कि वह सबकुछ सहन कर सकती है, किन्तु नारी भार को कदापि सहन नहीं कर सकती । यही कारण है कि स्त्रियों के लिए पेट के बल लेटकर साष्टांग विष्णुजी को प्रणाम नहीं करती केवल पंचांग नमस्कार करती है।केवल मस्तक दोनो करकमल और चरण भूमि पर लगते हैं पूरा शरीर नहीं।

कुल परम्परा-रक्षण में भी इसी मातृका-शक्ति का सर्व विध मान रखा गया है। स्त्रियों को विशेषाधिकार दिये जाने के पीछे एक और कारण है- क्रिया को सरल,सहज बनाना। किन्तु कहीं-कहीं अज्ञानवश या प्रमादालस्यवश कुलदेवी पूजन को गृहस्थ कृत्य की वरीयता सूची से ही निकाल फेंकते हैं और इसका प्रत्यक्ष-परोक्ष दुष्परिणाम भी भुगतते रहते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...