शनिवार, 18 जुलाई 2020

सुखी राजकुमार / ऑस्कर वाइल्ड





नगर के सबसे ऊँचे स्थान पर, एक लम्बे स्तंभ पर खड़ा था सुखी राजकुमार का बुत । ऊपर से नीचे तक उस पर खरे सोने की बारीक पर्त चढ़ाई गई थी, आँखों के स्थान पर थीं दो दमकती हुई नीलमणियाँ, और एक बहुत बड़ा लाल माणिक्य चमचमाता था उसकी तलवार की मूठ पर ।
वास्तव में, वह बहुत प्रशंसित था, “वह बात-सूचक जैसा सुन्दर है” एक नगर-पार्षद ने कहा जो अपने कलात्मक अभिरुचि सम्पन्न होने की प्रतिष्ठा अर्जित करने की इच्छा रखता था, ‘‘ बस अधिक लाभ का नहीं है,’’ डरते हुए कि कहीं लोग उसे अव्यावहारिक ही न समझ लें, उसने बात को आगे बढ़ाया, भले ही वह अव्यावहारिक था नहीं।
‘तुम सुखी राजकुमार जैसे क्यों नहीं हो सकते ?’ एक समझदार माँ ने अपने नन्हे बालक से पूछा जो चाँद माँग रहा था । “सुखी राजकुमार कभी कुछ नहीं माँगता।"
“मुझे ख़ुशी है कि दुनिया में एक आदमी तो ऐसा है जो क़ाफ़ी ख़ुश है,” एक निराश व्यक्ति अद्भुत बुत को ताकते हुए बुदबुदाया।
“वह बिल्कुल किसी देवदूत-सा लगता है!” चमकदार सिन्दूरी चोगों पर उजले सफ़ेद एप्रन पहने हुए, चर्च से लौटते हुए चैरिटी स्कूल के बच्चों ने कहा ।
“तुम्हें कैसे जानते हो ?” गणित अध्यापक ने पूछा, “तुमने तो कभी देवदूत को नहीं देखा,” “हाँ, हमने देखा है, अपने सपनों में,”बच्चों का जवाब था, और गणित अध्यापक की भृकुटी तन गई और वह बहुत कठोर दिखाई देने लगा क्योंकि उसे बच्चों का सपने देखना पसन्द नहीं था।
एक रात शहर में एक नन्हा अबाबील उड़ आया। उसके मित्र छ: सप्ताह पहले मिस्र जा चुके थे, लेकिन वह रुक गया था क्योंकि उसे एक अत्यन्त सुन्दर सरकण्डी से प्रेम हो गया था ।

वह उसे वसन्त ऋतु के आरम्भ में मिला था जब वह नदी के ऊपर उड़ रहे एक बड़े पीले पतंगे का पीछा कर रहा था और सरकण्डी की पतली कमर पर इतना मंत्र-मुग्ध हो गया कि उससे बात करने के लिए वहीं रुक रह गया था।
“क्या मैं तुमसे प्यार कर सकता हूँ ?” बिना लाग लपेट के अपनी बात कहने वाले अबाबील ने कहा था, और सरकण्डी ने भी उसे झुककर अभिवादन किया था। अत: वह सरकण्डी के इर्द गिर्द मण्डराता रहता था, पानी को अपने परों से छू्ते हुए, और नदी में चाँदी-सी लहरें उठाते हुए। यही था उसका प्रणय निवेदन और यह ग्रीष्म ऋतु तक चला था ।
“यह तो हास्यस्पद लगाव है", अन्य अबाबीलों ने चहकते हुए कहा, “सरकण्डी के पास कोई धन तो है नहीं है, और ऊपर से रिश्तेदारी भी बहुत है, ” : और सचमुच नदी तो सरकण्डों से अटी पड़ी थी । इसलिए पतझड़ के आते ही सब अबाबील फुर्र हो गए । उनके चले जाने के बाद उसने अपने आप को बहुत अकेला पाया, और अपनी प्रेयसी से भी उकताने लगा था । “यह वार्तालाप तो करती ही नहीं है, मुझे डर है यह कहीं छिनाल तो नहीं क्योंकि यह तो सदा हवा से ही चुहलबाज़ी करती रहती है ।” और यह तो सच था ही कि हवा चलती तो सरकण्डी अत्यन्त शालीन अभिवादन करती हुई दिखाई देती थी । “मैं मानता हूँ वह बहुत घरेलू है.” उसने कहा, “लेकिन मुझे तो घूमना-फिरना पसन्द है, और परिणामस्वरूप मेरी पत्नी को भी घूमना-फिरना पसन्द होना ही चाहिए।”
“क्या तुम मेरे साथ चलोगी?” अन्तत: उसने उससे कहा; लेकिन सरकण्डी ने सर हिला दिया क्योंकि उसे अपने घर से बहुत लगाव था।
“तुम मेरे साथ खिलवाड़ करती आई हो,” रोते हुए उसने कहा, “मैं पिरामिडों के देश जा रहा हूँ,” और उड़ गया ।
वह सारा दिन उड़ता रहा, और रात को वह शहर पहुँचा । “मैं रहूँगा कहाँ?" उसने कहा: “मुझे आशा है शहर ने मेरे रहने की तैयारी की है।”
तभी उसे ऊँचे स्तम्भ पर बुत दिखाई दिया।
“वहाँ रहूँगा मैं,” वह चिल्लाया;“बहुत बढ़िया जगह है यह, ख़ूब ताज़ा हवादार, इसलिए उसने सुखी राजकुमार के पैरों के ठीक बीचों-बीच अपनी अपनी उड़ान को विश्राम दिया ।
“मेरा शयन-कक्ष तो सुनहरा है” चारों ओर देखते हुए उसने अपने-आप से कहा और सोने की तैयारी करने लगा; लेकिन वह अपना सर अपने परों में छुपाने ही वाला था कि पानी की एक बूँद उस पर गिरी । “विचित्र बात है!” वह चिल्लाया,“आसमान में एक भी बादल नहीं, तारे चमक रहे हैं, और फिर भी बारिश हो रही है। उत्तरी यूरोप का मौसम तो सचमुच में भयानक है। सरकण्डी को भी बारिश बहुत पसन्द थी, लेकिन वह तो केवल उसका स्वार्थ था।” तभी एक और बूँद गिरी।
“अगर बारिश से भी न बचा सके तो बुत किस काम का?” उसने सोचा, “मैं कोई अच्छा चिमनी पॉट ढूँढता हूँ।” और उसने वहाँ से उड़ जाने का निर्णय किया ।
लेकिन पंख पसारते ही, तीसरी बूँद भी उस पर गिरी, और उसने ऊपर देखा, और देखा- आह ! क्या देखा उसने ?
सुखी राजकुमार की आँखें आँसुओं से भरी हुई थी, और आँसू उसके सुनहरी गालों तक लुढ़क आए थे. चाँदनी में उसका चेहरा इतना दपदपा रहा था कि अबाबील को उस पर दया आ गई ।
“तुन कौन हो?" उसने पूछा।
“मैं हूँ प्रसन्न राजकुमार।”
“फिर तुम रो क्यों रहे हो?” अबाबील ने पूछा, “तुमने तो मुझे काफ़ी भिगो दिया है।”
“जब मैं जीवित था और मेरे पास मानव हृदय था,” बुत ने कहा, “मैं जानता भी नहीं था कि आँसू क्या होते हैं,क्योंकि मैं ‘चिंता-रहित महल’ में रहता था, जहाँ दु:ख को प्रवेश की अनुमति नहीं होती। मैं दिन में अपने संगी साथियों के साथ उद्यान में खेलता रहता था और शाम को ग्रेट हॉल में नृत्य का नेतृत्व करता था। उद्यान के चारों ओर एक बहुत ऊँची दीवार थी, लेकिन मैंने कभी जानना ही नहीं चाहा कि दीवार के उस पार क्या था, मेरे आस -पास सब कुछ इतना सुन्दर था । मेरे दरबारी मुझे सुखी राजकुमार कह कर पुकारते थे, और मैं सचमुच बहुत प्रसन्न भी था, अगर आराम ही प्रसन्नता है तो । मैं सुख में जिया, सुख में ही मरा भी । और अब जबकि मैं मर चुका हूँ तो उन्होंने मुझे इतनी ऊँचाई पर स्थापित कर दिया है कि मैं अपने शहर की सारी कुरूपता और दयनीयता को देख सकता हूँ, और भले ही मेरा हृदय सिक्के से निर्मित है, फिर भी मेरे पास रोने के अतिरिक्त कोई चारा ही नहीं है ।
“क्या! क्या वह असली सोना नहीं है?” अबाबील ने अपने-आप से कहा । वह इतना विनम्र था कि कोई व्यक्तिगत टिप्पणी ज़ोर से कर ही नहीं पाता था ।
“दूर,” बुत ने अपने ऊँचे संगीतमय स्वर में अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, “बहुत दूर एक छोटी-सी गली में एक छोटा-सा घर है । उस घर की एक खिड़की खुली है, जिसमें से मैं एक स्त्री को मेज़ पर बैठे हुए देख पा रहा हूँ। उसका चेहरा छोटा और थका-माँदा है। उसके खुरदरे लाल हाथ सुइयों से हर जगह बिँधे पड़े हैं, क्योंकि वह एक दर्ज़िन है । वह रानी की विशेष परिचारिकाओं में सबसे सुन्दर एक परिचारिका के साटिन के चोगे जो उसे दरबार में होने वाले नृत्य के अवसर पर पहनना है, पर उमंगों के फूल काढ़ रही है । कमरे के कोने में एक बिस्तर पर उसका नन्हा बालक बीमार पड़ा है। उसे बुख़ार है, और वह सन्तरे माँग रहा है। उसकी माँ के पास उसे देने के लिए नदी के पानी के सिवाए कुछ भी तो नहीं है,इसलिए वह रो रहा है। अबाबील, अबाबील, नन्हे अबाबील, क्या तुम मेरी तलवार की मूठ वाला माणिक्य उस दर्ज़िन को नहीं दोगे? मेरे पैर तो इस आधार से बँधे हुए हैं और मैं तो हिल भी नहीं सकता । ”
“मिस्र में मेरी प्रतीक्षा हो रही है,” अबाबील ने कहा । “मेरे मित्र नील नदी पर ऊपर नीचे उड़ रहे हैं और बड़े बड़े कमल-फूलों से बतिया रहे हैं । जल्दी ही वे महान राजा के मक़बरे में सोने चले जाएँगे। राजा अपने रंग-रोग़न किए हुए ताबूत में लेटा हुआ है । वह पीले वस्त्रों में लिपटा हुआ है, उसके सारे शरीर पर जड़ी-बूटियों का लेप किया गया है, उसके गले में हल्के पीले संगयशब की माला है, और उसके हाथ मुर्झाए हुए पत्तों जैसे हैं। ”
“अबाबील, अबाबील, नन्हे अबाबील,” राजकुमार बोला, “क्या तुम एक रात मेरे साथ नहीं रुकोगे और मेरे सन्देशवाहक नहीं बनोगे? वह बालक इतना प्यासा है और माँ इतनी उदास है।”
“मुझे नहीं लगता कि मुझे बालक अच्छे लगते है,” अबाबील बोला, “पिछली गर्मियों में मैं नदी के किनारे ठहरा हुआ था, वहाँ चक्की वाले के दो अशिष्ट बालक थे जो हमेशा मुझे पत्थर मारते रहते थे। वे कभी मुझे चोट तो नहीं पहुँचा पाए, बेशक; हम अबाबील कहीं ज़्यादा अच्छे उड़ लेते हैं, और मैं तो हूँ भी एक ऐसे परिवार से जो अपने फुर्तीलेपन के लिए प्रसिद्ध है, परन्तु फिर भी हमें पत्थर मारना निरादरपूर्ण तो है ही।”
“परन्तु प्रसन्न राजकुमार इतना उदास दिखाई देने लगा कि अबाबील भी दुखी हो गया। “सर्दी बहुत है यहाँ,” उसने कहा, “लेकिन मैं एक रात तुम्हारे साथ रुकुँगा और तुम्हारा सन्देशवाहक बनूँगा।”
“शुक्रिया, नन्हे अबाबील,” राजकुमार ने कहा ।
अबाबील ने राजकुमार की तलवार से माणिक्य निकाला उसे चोंच में दबाए शहर की छतों के ऊपर से होता हुआ उड़ गया।
वह चर्च के ऊँचे बुर्ज के पास से गुज़रा जहाँ देवदूत सफ़ेद काँच में प्रतिमाबद्ध थे । वह राजमहल के ऊपर से गुज़रा और उसने नृत्य की ध्वनियाँ सुनीं। एक सुन्दर लड़की अपने प्रेमी संग बाल्कनी पर आई। “कितने अद्भुत हैं सितारे!” उसने कहा, “और कितनी अद्भुत है प्रेम की शक्ति!” “मुझे उम्मीद है कि शाही नृत्य के लिए मेरी पोषाक समय पर तैयार हो जाएगी,” लड़की ने उत्तर दिया, “मैंने उस पर उमंगों के फूल काढ़ने के लिए कहा है लेकिन दर्ज़िनें सुस्त भी तो बहुत होती हैं ।”
वह नदी के ओपर से गुज़रा, जहाँ नौकाओं के मस्तूलों पर लाटेन लतके हुए थे। वह यहूदियॊ की बस्ती के ओपर से गुज़रा जहाँ मोल-भाव करते हुए यहूदी तांबे के तराज़ुओं में धन तोल रहे थे। और अन्तता: वह उस दरिद्र घर में आ पहुँचा और उसने अन्दर देखा। बुखार में तपा हुआ वह बालक अपने बिस्तर पर छटपटा रहा था,और माँ गहरी नींद में थी, क्योंकि वह थकावट से चूर थी। उछल कर वह भीतर चला गया और उसने बड़ा माणिक्य दर्ज़िन के अंगुश्ताने के पास रख दिया। फिर हौले-से वह बालक के तपते हुए सर पर अपने पंखों से हवा देते हुए उसके बिस्तर के इर्द-गिर्द उड़ने लगा । “कितना आराम मिल रहा है मुझे,” बालक ने कहा, “मैं ज़रूर अच्छा हो जाने वाला हूँ”: और वह मीठी नींद सो गया।
अबाबील फिर उड़ा और सुखी राजकुमार के पास लौट आया, और उसने जो किया था राकुमार को बता दिया। “यह विचित्र है,” उसने कहा, “इतनी सर्दी है लेकिन मैं अपने-आप को गर्म अनुभव कर रहा हूँ।‘’
“ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि तुमने एक अच्छा काम किया है,” राजकुमार ने कहा । और नन्हा अबाबील चिन्तन करने लगा और सो गया । चिन्तन सदा उसे सुला देता था। पो फटते ही वह जाकर नदी में नहाया । “कितनी विचित्र घटना है,” पक्षी-विज्ञान के एक प्रोफ़ेसर ने पुल पार करते हुए कहा, ““अबाबील, और सर्दियों में !”और उसने इस विषय पर एक लम्बा पत्र स्थानीय समाचार पत्र के लिए लिखा ।” सबने इस पत्र को उद्धृत किया, इस पत्र में इतने शब्द थे कि लोग इसे समझ ही नहीं पाए।
आज रात मैं मिस्र चला जाउँगा,” अबाबील ने कहा, और वह वहाँ से अपने चले जाने की संभावना से अत्यन्त उत्साहित था। उसने सभी सार्वजनिक स्मारक देखे, और बहुत देर तक चर्च के मीनार पर बैठा रहा । वह जहाँ भी जाता, चिड़ियाँ चहचहातीं और एक दूसरी से कहतीं, “कितना विशिष्ट अजनबी है!” और उसे बड़ा मज़ा आ रहा था ।
“चाँद निकलते ही वह सुखी राजकुमार के पास जा उड़ा । “क्या मिस्र मिस्र में करने के लिए तुम्हारे पास कोई काम है? वह चिल्लाया; मैं अभी जाने वाला हूँ ।“
“अबाबील, अबाबील, नन्हे अबाबील,” राजकुमार बोला, “क्या तुम एक और रात मेरे साथ नहीं रुकोगे?”
“मैं मिस्र में प्रतीक्षित हूँ,” अबाबील ने उत्तर दिया। कल मेरे मित्र दूसरे महाजल प्रपात को उड़ जाएँगे।
दरियाई घोड़ा नरकुलों में आराम करता है, और एक बहुत बड़े ग्रेनाइट सिंहासन पर मेम्नॉन देवता बैठते हैं । रात भर वे सितारों पर दृष्टि रखते हैं और सूर्योदय होते ही वे आनन्द के मारे चिल्ला उठते हैं, और फिर चुप्पी साध लेते हैं। दोपहर को पीले शेर नदी के किनारे पानी पीने आते हैं। उनकी आँखे हरी लहसुनिया की तरह होती हैं और उनका गर्जन झरने के गर्जन से भी ऊँचा होता है।"
“अबाबील, अबाबील, नन्हे अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “शहर से बहुत दूर एक घर की सबसे ऊपरी मंज़िल पर मुझे एक युवक दिखाई दे रहा है, वह क़ाग़ज़ों से अटी एक डेस्क पर झुका हुआ है, और पास ही एक गिलास में मुर्झाए हुए नील-पुष्प हैं । उसके बाल भूरे और घुँघराले हैं, उसके होंठ अनार –से लाल हैं, उसकी आँखें बड़ी बड़ी और स्वप्नीली हैं। वह मंच निर्देशक के लिए एक नाटक पूरा करने का प्रयास कर रहा है लेकिन सर्दी के मारे वह और लिख पाने में अक्षम है ।उसके कमरे में आग भी नहीं है। और भूख ने उसे मूर्छित कर दिया है ।“
“मैं एक रात और तुम्हारे साथ रुक जाऊँगा,” सचमुच अच्छे दिल वाले अबाबील ने कहा, “क्या मैं दूसरा माणिक्य उसे भी दे दूँ ?’’
“अफ़सोस! अब मेरे पास दूसरा माणिक्य नहीं है,” राजकुमार ने कहा, अब तो मेरे पास बस आँखें ही बची हैं, वे भारत से हज़ारों वर्ष पूर्व आयातित दुर्लभ नीलमणियों से निर्मित हैं । तुम एक निकालो और उसके पास ले जाओ। वह इसे जौहरी को बेच देगा, अपना खाना और आग ख़रीदेगा और अपना नाटक पूरा कर लेगा।”
प्यारे राजकुमार,” अबाबील ने कहा," मैं यह नही कर सकता ”; और वह रोने लगा।
“अबाबील, अबाबील, नन्हे अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “मेरे आदेश का पालन करो।”
अबाबील ने राजकुमार की एक आँख निकाली और छात्र की दुछत्ती की ओर उड़ गया । अन्दर जाना बहुत आसान था क्योंकि छत में एक सूराख था जिससे होता हुआ वह तेज़ी से कमरे में चला गया । युवक ने अपना सर अपनी बाहों में दे रखा था, इसलिए वह पंछी के पंखों की फड़फड़ाहट नहीं सुन पाया, और जब उसने सर उठाया तो मुर्झाए हुए नीलपुष्पों में पड़ी नीलमणी को देखा।
“मेरी पहचान बनने लगी है,” वह चिल्लाया; “यह किसी महान प्रशंसक ने भिजवाई है।अब मैं अपना नाटक पूरा कर सकता हूँ,” और वह बहुत प्रसन्न दिखाई दिया।
अगले दिन अबाबील उड़कर बन्दरगाह जा पहुँचा। वह एक बड़े समुद्री जहाज़ के मस्तूल पर बैठ गया और नविकों को बड़े रस्सों की सहायता से बड़ी-बड़ी अल्मारियों को ढोते हुए देखता रहा। हर अल्मारी के ऊपर आते ही वे “हैश्शा!” पुकारते थे। “मैं मिस्र जा रहा हूँ,” अबाबील नें उन्हें पुकार कर कहा, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया, और चाँद निकलते ही वह सुखी राजकुमार के पास लौट गया ।
“मैं तुम्हें अलविदा कहने आया हूँ,” उसने राजकुमार को पुकार कर कहा ।
“अबाबील, अबाबील, नन्हे अबाबील,” बोला, “क्या तुम एक और रात मेरे साथ नहीं रुकोगे?”
“आजकल सर्दियाँ हैं,” अबाबील ने उत्तर दिया, “और बहुत जल्दी ही जमा देने वाली बर्फ़ भी यहाँ गिरने वाली है। मिस्र में खजूर के हरियाले पेड़ों पर गर्म धूप होती है, और घड़ियाल कीचड़ में लेटे-लेटे अपने आस-पास को सुस्ती से निहारते रहते हैं । मेरे साथी बालबेक के मंदिर में घोंसला बना रहे हैं, और गुलाबी और सफ़ेद बतख़ें उन्हें देखकर एक-दूसरे से गुटर-गूँ की भाषा में बतिया रही हैं। प्यारे राजकुमार, अब मुझे तुम्हें छोड़ कर जाना ही होगा लेकिन मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूँगा, और अगली वसन्त ऋतु में मैं तुम्हारे लिए उनकी जगह जो तुमने बाँट दिए हैं, दो ख़ूबसूरत जवाहर वापस लाऊँगा । माणिक्य होगा लाल गुलाब से भी लाल और नीलमणि होगी महासागर-सी नीली।"
“नीचे वाले भवन-समूह में,” सुखी राजकुमार ने कहा, “माचिस बेचने वाली एक नन्ही बच्ची खड़ी है। उसकी माचिसें उसके हाथ से छूट गन्दी नाली में गिरकर कर ख़राब हो गई हैं। उसका पिता उसे पीटेगा अगर वह कुछ पैसे अपने घर नहीं ले जा सकेगी, और वह रो रही है। उसके पास बूट या ज़ुराबें भी नहीं हैं और उसका नन्हा सर भी नंगा है । मेरी दूसरी आँख निकालो और उसे दे दो, और उसका पिता उसे पीटेगा नहीं।”
“मैं तुम्हारे साथ एक रात और ठहर जाऊँगा अबाबील ने कहा “लेकिन मैं तुम्हारी आँख नहीं निकाल सकता । तब तो तुम बिल्कुल अन्धे हो जाओगे । ”
“अबाबील, अबाबील, नन्हे अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “मेरे आदेश का पालन करो।”
उसने राजकुमार की दूसरी आँख निकाल ली, और उसे ले कर तेज़ी से नीचे की ओर उड़ गया।
एक झपटे में उसने नीलमणि बच्ची के हाथ में सरका दी। “कितना सुन्दर काँच का टुकड़ा है,” कहते हुए बच्ची चिल्लाई; और हँसती-हँसती अपने घर को भाग गई।
अबाबील फिर राजकुमार के पास लौट आया । “अब तुम अन्धे हो,” उसने कहा, “इसलिए मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा। ”
“नहीं, नन्हे अबाबील” बेचारे राजकुमार ने कहा, “तुम्हे अवश्य मिस्र को चले जाना चाहिए ।”
“मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा,”कह कर अबाबील राजकुमार के पैरों पर सो गया।”
अगले सारे दिन वह राजकुमार के कन्धे पर बैठा रहा, और उसे अपने देखी हुई अद्भुत जगहों की कहानियाँ सुनाता रहा । उसने उसे नील नदी के लाल बगुलों के बारे में बताया जो खड़े रहकर अपनी चोंच से सुनहरी मछलियाँ पकड़ते रहते हैं ;स्फिंक्स के बारे में बताया जो संसार-सा पुराना है, रेगिस्तान में रहता है, और सर्वज्ञ है; व्यापारियों के बारे म्रें बताया जो अपने ऊँटों के साथ-साथ अपने हाथों में तृण-मणियों की मालाएँ लिए चलते हैं और चाँद के पर्वतों के राजा के बारे में बताया जो आबनूस जैसा काला है और एक बहुत बड़े काँच की अराधना करता है; खजूर के पेड़ पर सोने वाले एक बड़े हरे साँप जिसके पास उसका पेट भरने के लिए बीस पुजारी हैं जो उसे शहद-सने केक खिलाते हैं के बारे में बताया, और एक बड़ी झील के बड़े बड़े चौड़े पत्तों पर तैरने वाले बौनों के बारे में बताया जो सदा तितलियों के साथ युद्ध-रत रहते हैं ।
प्यारे नन्हें अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “तुम मुझे बहुत अद्भुत बातें बता रहे हो, लेकिन कोई रहस्य दु:ख से बड़ा नहीं है। मेरे नगर के ऊपर उड़ो, नन्हे पंछी और बताओ कि वहाँ तुमने क्या देखा । ”
अत: महानगर के ऊपर उड़ा अबाबील और उसने रईसों को अपने घरों में मौज-मस्ती करते हुए देखा, जबकि भिखारी द्वारों पर खड़े थे वह अँधेरी गलियों में उड़ा और उसने काली गलियों को निरुत्साहित निहारते भूखे बच्चों के सफ़ेद चेहरे देखे पुल के कमानीदार रास्ते में सवयं को गर्म रखने की कोशिश में एक-दूसरे से लिपटे हुए नन्हे बालक देखे। “कितनी भूख लगी है हमें!” उन्होंने कहा। “तुम यहाँ नहीं लेटोगे,” चौकीदार चिल्लाया, और वे बारिश में भटकने लगे।
अबाबील वहाँ से उड़ा और उसने जो देखा था राजकुमार को बता दिया।
“मुझपर खरे सोने की पर्त चढ़ी है,”राजकुमार ने कहा, “एक पर्त ले जाओ, और मरे सब ग़रीबों में बाटँ दो, जीवित लोग सदा यह सोचते हैं कि स्वर्ण उन्हें सुखी बना सकता है ।”
राजकुमार के काफ़ी बदसूरत और धूसर दिखाई देने तक अबाबील ने खरे सोने की पर्त निकाली और और पर्त दर पर्त ग़रीबों में बाँट दी, बच्चों के चेहरे और भी गुलाबी हो गए, वे हँसते हुए गलियों में खेलने लगे । “अब हमारे पास रोटी है।” वे चिल्लाए।
और फिर बर्फ़ पड़ गई, और बर्फ़ के साथ आया कोहरा। गलियाँ चाँदी की-सी बनी हुई प्रतीत होने लगीं, वे इतनी चमकदार थीं । काँच की तलवारों जैसे हिमलम्ब घरों की छतों पर लटकते दिखाई देने लगे, सब लोग फ़र पहने घूमने लगे, नन्हे बालक सिन्दूरी लाल टोपियाँ पहने स्केटिंग करने लगे।
बेचारा नन्हा अबाबील सर्द से सर्दतर होता गया, लेकिन वह राजकुमार को छोड़ कर जाने वाला नहीं था वह उससे बहुत प्यार करता था । बेकर की नज़र बचा कर उसने बेकर के दरवाज़े के बाहर पड़े ब्रेड के टुकड़े इकट्ठे कर और अपने पंखों को फड़फड़ाकर अपने - आप को गर्म रखने की कोशिश की ।

परन्तु अन्तत: वह जान गया कि वह मरने वाला है । अब उसमें बस एक बार राजकुमार के कन्धे तक उड़ने की ताक़त बची थी । “अलविदा प्यारे राजकुमार !” वह बुदबुदाया “क्या तुम मुझे अपना हाथ चूमने दोगे? ”
“मुझे ख़ुशी है कि तुम आख़िर मिस्र को लौट रहे हो, नन्हे अबाबील ” राजकुमार ने कहा, “यहाँ तुम बहुत देर तक रुके हो ; लेकिन तुम मुझे होंठों पर चूमो, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ।”
“मैं मिस्र नहीं जा रहा हूँ,” अबाबील ने कहा “मैं तो मरण के घर जा रहा हूँ, मरण नींद का ही तो भाई है, क्यों ? ”
और उसने सुखी राजकुमार को होंठों पर चूम लिया, और उसके पैरों पर मृत गिर गया।
उसी समय बुत के अन्दर से किसी चीज़ के चटकने की अजीब-सी आवाज़ आई मानो अन्दर कुछ टूट गया हो । तथ्य तो यह है कि सीसे से निर्मित दिल के चटक कर दो टुकड़े हो गए थे। निश्चय ही कोहरा बहुत भयानक रूप से निष्ठुर था।
अगली सुबह नगरपिता, नगर पार्षदों के साथ नीचे के भवन समूह में सिअर कर रहा था। स्तंभ के पास से गुज़रते हुए उसने बुत को देखा: “कितना भद्दा दिखाई दे रहा है सुखी राजकुमार! ” उसने कहा।
“सचमुच बहुत भद्दा !” नगर-पार्षद चिल्लाए, क्योंकि वे सदा नगरपिता से सहमत रहते थे; और वे सब उसे देखने वे ऊपर चले गए।
माणिक्य उसकी तलवार से गिर चुका है और उसकी आँखें भी चली गई हैं, और अब वह सुनहरा भी नहीं रहा ।" नगरपिता ने कहा “और वास्तव में वह तो किसी भिखारी से भी गया गुज़रा है !" " भिखारी से भी गया गुज़रा है !" नगर पार्षदों ने कहा ।
"और वास्तव में यह रहा उसके पैरों पर गिरा हुआ मृत पंछी !" नगरपिता ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,"हमें एक उद्घोषणा करवा देनी चाहिए कि पंछियों को इस स्थान पर मरने की अनुमति नहीं है।” और नगर-लिपिक ने उसके सुझाव को नोट कर लिया।
सुखी राजकुमार के बुत को खींच कर गिरा दिया गया । “क्योंकि अब वह सुन्दर नहीं है, इसलिए वह किसी काम का भी नहीं है।" विश्व-विद्यालय के कला प्राध्यापक ने कहा।
बुत को भट्ठी में पिघला दिया गया, और यह निर्णय करने के लिए कि धातु का क्या किया जाए, नगर पिता ने निगम की एक मीटिंग बुलवाई।" बेशक हमें एक और बुत खड़ा करना होगा,” उसने कहा,"और यह बुत मेरा अपना होगा ।"
"मेरा होगा," प्रत्येक नगर पार्षद ने बारी बारी से कहा, और वे झगड़ने लगे, मैंने आख़िरी बार जब उन्हें सुना था तो वे अभी झगड़ ही रहे थे।"
"कितनी अद्भुत बात है! " ढलाई- ख़ाने के कर्मियों के निरीक्षक ने कहा,"यह सीसे से निर्मित टूटा हुआ दिल भट्ठी में नहीं पिघल सकता। हमें इसे फेंक देना होगा।" और उन्होंने उसे धूल के ढेर पर फेंक दिया जहाँ मृत अबाबील भी पड़ा हुआ था ।
“मुझे नगर से दो अमूल्य वस्तुएँ ला कर दो," परमेश्वर ने अपने देवदूतों से कहा; और देवदूत ने परमेश्वर को सीसे का दिल और मृत पंछी लाकर दे दिया।
“तुमने बिल्कुल सही चयन किया है,” परमेश्वर ने कहा “स्वर्ग के मेरे उद्यान में सदा गाता रहेगा यह नन्हा पंछी, और मेरे स्वर्ण- नगर में मेरा गुणगान करेगा सुखी राजकुमार।”
(अनुवाद: द्विजेन्द्र द्विज)

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