रविवार, 26 जुलाई 2020

सावन में ज़ब याद आये / सुधेन्दु ओझा


यूँ ही........(सावन में जब याद तुम्हारी आई)

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यूँ ही....सावन में जब याद तुम्हारी आई

बेताबी थी
तुम आओगी
बढ़ती गई परछाईं
तुम नहीं आई ।

एक सुगंध
जो पहचानी थी
मिलने हम से आई
तुम नहीं आई ।

आम्र पत्तियां
द्वारे लटकीं
वन्दनवार पर
आंखें अटकीं
अभिनन्दन की
ऋचा भी गाई
तुम नहीं आई ।

विस्मृतियों के
पृष्ठों पर बिखरी
छवि सामने
फिर से उतरी
मन प्रांतर में
झंकृत हो गई
मीठी सी शहनाई
तुम नहीं आई ।

तुलसी हँसी
नीम हर्षाया
प्रथम प्रहर
कागा चिल्लाया
दांयीं पलक लेती रह गई
बार-बार अंगड़ाई
तुम नहीं आई ।

पाहुन घर आएगा अपने
आंखों में उतरे सब सपने
मरी पड़ी आशाओं में
चेतनता लहराई
तुम नहीं आई ।

विश्वास नहीं कि
छल जाओगी
बोला था कि
कल आओगी
बुरा समय आया तुम
नहीं पड़ीं दिखलाई
तुम नहीं आई!!!!

सुधेन्दु ओझा
9868108713/7701960982

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